BR Ambedkar Savita Ambedkar: बाबा साहेब का स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था. एक दिन वह महिला डॉक्टर से मिले और कहा कि उनके दोस्त और करीबी उन पर इस बात का दबाव डाल रहे हैं कि वे दूसरी शादी कर लें. लेकिन योग्य साथी नहीं मिल रहा है. बाबा साहेब ने कहा, मुझे उन लाखों लोगों के लिए जिंदा रहना होगा और इसलिए मुझे उनकी बात को गंभीरता से लेना जरूरी है. जब डॉक्टर शारदा कबीर के आगे बीआर अंबेडकर ने इस तरह से शादी का प्रस्ताव रखा तो वह समझ नहीं पाईं. इसके बादा बाबा साहेब दिल्ली चले गए. कुछ वक्त बाद डॉ शारदा कबीर को एक चिट्ठी मिली, जिसमें लिखा था, 'अगर मेरे खराब स्वास्थ्य और उम्र में अंतर की वजह से तुम मेरा प्रस्ताव ठुकरा भी देती हो तो मुझे अपमानित महसूस नहीं होगा. इस पर सोचकर मुझे बताना.' डॉ शारदा कबीर ने सोच-विचार कर जवाब दिया-हां.


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15 अप्रैल 1948 को डॉ शारदा कबीर और बाबा साहेब शादी के बंधन में बंध गए. इसके बाद लोग डॉ शारदा को सविता अंबेडकर पुकारने लगे. आत्मकथा 'डॉ. अंबेडकरच्या सहवासत' में इस वाक्ये के बारे में सविता अंबेडकर ने लिखा है. 14 अप्रैल 1891 को एमपी के महू जिले में महार परिवार में एक लड़के ने जन्म लिया. घरवाले प्यार से 'भीमा' पुकारते थे.  पिता सेना में थे और पूर्वज महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के अंबाडावे गांव से ताल्लुक रखते थे. उनकी पहली शादी साल 1906 में रामाबाई से हुई. बाबा साहेब की रामाबाई ने पढ़ाई-लिखाई में बहुत मदद की. रामाबाई का 1935 में बीमारी के कारण निधन हो गया था. उनके 5 बच्चे थे, जिसमें सिर्फ यशवंत अंबेडकर ही जिंदा बचे.


18 साल छोटी थीं सविता


वहीं शारदा कबीर का जन्म 27 जनवरी 1909 को हुआ था. वह उम्र में बाबा साहेब से 18 साल छोटी थीं. सारस्वत ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने वाली शारदा के पिता इंडियन मेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार थे. 1937 में मुंबई से शारदा कबीर ने एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की थी. उस जमाने में लड़की का डॉक्टर बनना किसी आश्चर्य से कम नहीं था. डॉक्टर शारदा का परिवार बहुत मॉडर्न था. 


डॉ शारदा से पहली बार 1947 में बाबा साहेब मिले थे. तब वह काफी बीमारियों से परेशान थे. उस दौर में चिट्ठियों के जरिए उनकी बातचीत होती थी. 1953 में डॉ सविता अंबेडकर गर्भवती हुईं तो उनकी ख्वाहिश बेटी की थी. लेकिन कश्मीर दौरे पर अचानक उनको चक्कर आए, उल्टियां हुईं और बाद में मालूम चला कि उनका गर्भपात हो गया है. इस घटना ने बाबा साहेब को भीतर से तोड़कर रख दिया. वह काफी दुखी रहने लगे. 


जिंदगी पर था गहरा असर


बाबा साहेब की जिंदगी पर सविता अंबेडकर का बहुत ज्यादा प्रभाव था. हर हमेशा राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों में उनके साथ खड़ी रहीं. खासकर बाबा साहेब की सेहत की उन्होंने बहुत देखभाल की. अपनी किताब 'बुद्ध और उसके धम्म' में बाबा साहेब ने लिखा है, 'सविता अंबेडकर के कारण ही मैं 8-10 साल ज्यादा जी पाया.'


अपने वक्त में बीआर अंबेडकर से ज्यादा पढ़ा-लिखा व्यक्ति पूरे भारत में नहीं था. उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और कोलंबिया यूनिवर्सिटी से PhD की डिग्री ली थी.  इतना ही नहीं उनको बागवानी का भी शौक था. 


जब मुसलमान बताने पर भी नहीं मिला था पानी


जब बीआर अंबेडकर 9 साल के थे, तब उनको पिता ने खत लिखकर सतारा बुलाया था. पिता ने कहा था कि वह स्टेशन पर किसी को भेज देंगे लेकिन कोई पहुंचा नहीं. स्टेशन पर बाबा साहेब अपने भाई और बहन के साथ खड़े थे. स्टेशन मास्टर ने सोचा कि वे ब्राह्मण के बच्चे हैं और उनसे पूछ लिया कि वे कौन हैं तो अंबेडकर ने कहा कि हम महार हैं. ये सुनकर स्टेशन मास्टर के होश उड़ गए और वह लौट गया. अछूत होने की वजह से कोई भी गाड़ी वाला उनको बैठाने को तैयार नहीं था. ज्यादा पैसे देने के बावजूद कोई चलने को राजी नहीं था. 


एक गाड़ीवाला इस बात पर तैयार हुआ कि वो पैदल चलेगा और बाबा साहेब गाड़ी हांकेंगे. चलते-चलते रात हो गई और उनको रुकना पड़ा. उनके पास खाने के लिए टिफिन तो था लेकिन पानी नहीं. करीब में एक नदी थी, जिसका पानी गंदा था. वह आगे बढ़े तो चुंगी वाले से पानी मांगा. उन्होंने खुद को मुसलमान बताया लेकिन फिर भी चुंगी वाले ने पानी नहीं दिया. इस घटना ने बाबा साहेब को झकझोर कर रख दिया था. 


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