आधे घंटे में दिमाग की सर्जरी करवाएं और काम पर लौट जाएं; ब्रेन ट्यूमर के लिए आई नई टेक्नोलॉजी
Zap x : ब्रेन सर्जरी अब केवल आधे घंटे में ही की जा सकती है. वो भी ऐसे कि सर्जरी के बाद मरीज अपने ऑफिस जाकर काम कर सकता है. यह कमाल किया है, नई टेक्नोलॉजी से लैस एक नई मशीन ने, जो पहली बार भारत आई है. क्या है यह टेक्नोलॉजी, और किन मरीजों के लिए है यह वरदान, देखिए इस रिपोर्ट में.
Brain Tumor Surgery : अगर हम आपसे यह कहें कि दिमाग की मुश्किल से मुश्किल सर्जरी को अब अस्पताल में बिना एडमिशन के केवल आधे घंटे में करवाना मुमकिन है और इस आधे घंटे के बाद मरीज अपने घर या ऑफिस वापस लौट कर काम भी कर सकता है, तो शायद आपको यकीन ना हो, लेकिन अब दिल्ली में ऐसी एक टेक्नोलॉजी आ चुकी है.
इस तकनीक का आविष्कार करने वाले स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर हैं, (Scientist Doctor Adler ) प्रोफेसर एडलर कई सर्जिकल रोबोट बना चुके हैं. ब्रेन ट्यूमर की ही एक और तकनीक cyber knife technique बनाने का श्रेय भी प्रोफेसर एडलर को ही जाता है.
एक सेशन में लगेंगे 30 से 40 मिनट
इस वैज्ञानिक ने एक ऐसी मशीन तैयार की है जो देखने में सीटी-स्कैन या MRI की मशीन जैसी नजर आती है, हालांकि यह मशीन काफी अलग है और इसमें जब मरीज को डाला जाता है तो यही मशीन वैज्ञानिक तरीके से मरीज के ब्रेन ट्यूमर की सर्जरी कर देती है. इसके एक सेशन में 30 से 40 मिनट लग सकते हैं.
एक्सपर्ट्स का दावा है, कि इस मशीन के जरिए दिमाग में मौजूद बिना कैंसर वाले और कैंसर वाले ब्रेन ट्यूमर को भी रेडिएशन देकर जलाया जा सकता है.
सर्जरी के बाद ऑफिस जाकर काम कर सकते हैं.
दिमाग के ट्यूमर की जगह समझने के लिए पहले मरीज को MRI और सीटी स्कैन जैसे टेस्ट करवाने होते हैं उसके बाद इस मशीन को ट्यूमर के हिसाब से प्रोग्राम किया जाता है, मतलब रेडिएशन की कितनी डोज मरीज को दी जानी है किस जगह पर रेडिएशन को टारगेट किया जाना है और कितनी देर के लिए सेशन की जरूरत है इन सब के हिसाब से मशीन को प्रोग्राम करके सेट कर दिया जाता है. उसके बाद केवल आधे घंटे के लिए मरीज को मशीन में डाला जाता है. अपोलो अस्पताल के न्यूरो सर्जन डॉक्टर सुधीर गुप्ता का दावा है, कि इस प्रोसीजर के बाद मरीज चाहे तो ऑफिस जाकर अपना काम भी कर सकता है.
दरअसल, दिमाग में बनने वाले छोटे-छोटे ट्यूमर कई बार ऐसी जगह पर होते हैं जो दिमाग के कामकाज को डिस्टर्ब कर सकते हैं. पहले से मौजूद टेक्निक्स की कई सीमाएं हैं, लेकिन इस मशीन के जरिए दिमाग के किसी भी हिस्से में मौजूद ट्यूमर तक पहुंचा जा सकता है.
इस मशीन से निकलने वाली रेडिएशन केवल उसी हिस्से को टारगेट करती है जहां ट्यूमर मौजूद है. वैज्ञानिक प्रोफेसर एडलर के मुताबिक दिमाग के मामले में इस बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है, कि रेडिएशन दिमाग के किसी भी दूसरे हिस्से को प्रभावित न करें. ऐसे में मरीज की सुनने समझने चलने फिरने की क्षमता जाने का खतरा होता है. यहां तक कि उसे लकवा यानी पैरालिसिस भी हो सकता है.
इस तकनीक के जरिए रेडियो सर्जरी करवाने के लिए मरीज को एडमिट होने की जरूरत नहीं पड़ती. हालांकि इसके इलाज के एक सेशन का खर्च 5 से 6 लाख रुपए आ सकता है और क्योंकि मरीज अस्पताल है भर्ती नहीं होता, इसलिए यह खर्च इंश्योरेंस में फिलहाल कवर नहीं है.
ट्यूमर के इलाज के लिए ये तरीके मौजूद
ट्यूमर के इलाज के लिए फिलहाल दो तीन ही तरीके मौजूद हैं. पहला तरीका है चीर-फाड़ वाला ऑपरेशन यानी कि सर्जरी. इसके कई खतरे हैं मरीज को अस्पताल में लंबे समय तक रहना पड़ता है और उसे रिकवरी में भी समय लगता है.
दूसरा तरीका है रेडियो सर्जरी यानी कि साइबर नाइफ तकनीक (cyber knife) या ऐसी ही दूसरी तकनीक के जरिए रेडियोथैरेपी यानी रेडिएशन के जरिए ट्यूमर को जला देना. इस तकनीक में मरीज के सिर पर एक लोहे का फ्रेम लगाया जाता है जिससे उसे काफी तकलीफ होती है इसके अलावा साइबर नाइफ तकनीक से हर ट्यूमर का इलाज करना मुमकिन नहीं है. हालांकि गुरुग्राम के आर्टिमिस अस्पताल के न्यूरो सर्जन डॉ आदित्य गुप्ता के मताबिक दिमाग के 80% ट्यूमर का इलाज साइबर नाइफ तकनीक से किया जा सकता है बशर्ते एक्सपर्ट सही हो. साइबर नाइफ रोबोट भारत के चुनिंदा अस्पतालों में मौजूद है.
एक्सपर्ट्स के मुताबिक ब्रेन ट्यूमर के अलावा दिमाग की नसों के आपस में उलझा जाने की समस्या और Trigeminal Myalgia जिसमें मरीज के चेहरे और दांतों में एक खास नस के दबने की वजह से बहुत ज्यादा दर्द होता है, इनके इलाज में भी यह मशीन कारगर साबित हुई है. हालांकि, बाकी मामलों की तरह ट्यूमर के फिर से लौट आने का खतरा बना रहता है और दोबारा सेशन की जरूरत पड़ सकती है, लेकिन ज्यादातर मामलों में एक सेशन से ही फायदा हो जाता है.
क्या है मशीन का नाम
इस मशीन का नाम है, Zap x. इस मशीन को फिलहाल जर्मनी यूरोप अमेरिका और जापान में इस्तेमाल किया जा रहा है दक्षिण पूर्व एशिया में भारत पहला देश है और दिल्ली पहला शहर, जहां यह मशीन लगाई गई है.