नई दिल्ली: सोशल मीडिया पर इन दिनों मीडिया का एक वर्ग लगातार मुहिम चलाए हुए है कि एंटी सीएए प्रोटेस्ट में शामिल रही जामिया विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा को पुलिस ने साजिश के तहत गिरफ्तार किया और अब जब वो तिहाड़ जेल में है तो उसके गर्भवती होने के बावजूद भी उसको अदालत से जमानत नहीं मिल पा रही है.


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मीडिया में अपना प्रोपेगंडा चलाने वाला ये वो खास तबका है जो पत्रकारिता की आड़ में अपना एजेंडा सेट करते हैं. क्योंकि कभी भी मीडिया के इस तबके ने किसी गरीब या मजबूर के लिए आवाज नहीं उठाई.


सवाल उठता है कि जिस सफूरा जरगर (Safura Zargar) को दिल्ली पुलिस ने गंभीर धाराओं में गिरफ्तार किया, उसके सिर्फ गर्भवती होने की दुहाई देकर ये लोग, न्यायपालिका , कानून और संविधान का मजाक उड़ा रहे हैं.


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तिहाड़ जेल के अधिकारियों के मुताबिक जमानत देना या ना देना अदालत पर निर्भर करता है लेकिन ऐसा कोई पहली बार नहीं है कि सफूरा जरगर ही ऐसी महिला है जो गर्भवती होते हुए भी जेल में बंद है. सफूरा के साथ साथ तिहाड़ जेल में दो और अन्य महिलाएं भी हैं, जो गर्भवती हैं. जिसका ध्यान तिहाड़ प्रशासन अलग से रखता है.


अगर तिहाड़ जेल के पिछले पांच सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले पांच सालों में जेल में बंद 18 महिला कैदियों ने बच्चों को जन्म दिया है. तिहाड़ प्रशासन प्रसव के वक्त महिला कैदी को दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल ले जाता है. वहां पर डिलीवरी करवाई जाती है.  बाद में महिला को वापस जेल में लाया जाता है. जहां पर उसका ध्यान अलग से रखा जाता है.


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ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर मीडिया के इस वर्ग ने आज तक किसी ओर गर्भवती महिला कैदी की रिहाई या जमानत के लिए इस तरह की मुहिम क्यों नही चलाई, जिस तरह की मुहिम वो सफूरा जरगर के लिए चला रहे हैं. सफूरा को जमानत देर सवेर अदालत दे ही देगी, लेकिन पत्रकारिता के पेशे की आड़ में पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े करने वाले ये तथाकथित पत्रकार बेनकाब जरूर हो जाएंगे.