चंडीगढ़: लंगर बाबा के नाम से मशहूर चंडीगढ़ के रहने वाले जगदीश लाल आहूजा को भी इस बार पद्म श्री से नवाजा जाएगा. जगदीश लाल आहूजा चंडीगढ़ में पीजीआई के बाहर लंगर लगाते हैं और उनको लंगर सेवा करते हुए करीब 39 वर्ष हो चुके हैं. हालांकि 84 वर्षीय जगदीश लाल आहूजा इन दिनों कैंसर और सर्वाइकल जैसी गंभीर बीमारियों से पीड़ित होकर खुद पिछले दो महीने से यह सेवा करने से लाचार हो चुके हैं लेकिन फिर भी उनकी गाड़ी लंगर बांटने हर रोज जा रही है.


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पद्म श्री मिलने की खबर सुनकर जगदीश लाल आहूजा ने बस यही कहा कि वो खुद को इस काबिल नहीं समझते. लंगर बाबा के नाम से मशहूर चंडीगढ़ के रहने वाले जगदीश लाल आहूजा इस बार पद्म श्री से नवाजे जाएंगे. चंडीगढ़ पीजीआई में जगदीश लाल आहूजा की वजह से कोई भी मरीज या फिर उनका तीमारदार भूखा नहीं सोता.


जगदीश लाल पिछले करीब बीस साल से चंडीगढ़ पीजीआई के बाहर लंगर लगाते आ रहे हैं जबकि इससे पहले उन्होंने करीब उन्नीस वर्ष सब्जी मंडी में गरीब और जरूरतमंदों का पेट भरने के लिए लंगर लगाया. इसीलिए लोग इनको लंगर बाबा के नाम से बुलाते हैं. जगदीश लाल आहूजा के अनुसार जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाने का सारा खर्च वो खुद उठाते हैं और इसके कारण अपनी जमीन जायदाद तक बेच चुके हैं.


हालांकि अब 84 वर्ष की उम्र पार कर चुके जगदीश लाल आहूजा कैंसर और सर्वाइकल जैसी शारीरिक परेशानियों से जूझने की वजह से पिछले करीब दो महीने से खुद लंगर सेवा करने नहीं जा पाते मगर फिर भी उनकी गाड़ी पीजीआई और सेक्टर 32 के अस्पताल के बाहर निरंतर लंगर सेवा करने पहुंचती है.


इसके बावजूद भी लंगर बाबा को अपनी शारीरिक परेशानी से अधिक कष्ट लंगर सेवा में खुद ना पहुंचने का हो रहा है. चंडीगढ़ पीजीआई और सेक्टर 32 के अस्पताल में दूर दूर विदेशों तक से इलाज के लिए आए कई मरीज और उनके तीमारदार तो कई कई महीने तक यहीं रहते हैं जिनको यदि दो जून का खाना पैसे देकर खरीदना पड़े तो महीने का खर्च ही हजारों रुपया हो जाए.
 बिहार, उतर प्रदेश और अन्य कई दूर दूर स्थान से अपने मरीजों के साथ आए कई तीमारदारों ने बताया कि चंडीगढ़ जैसे महंगे शहर में एक वक़्त के खाने का खर्च वहन करना भी गरीब व्यक्ति के लिए मुश्किल होता है और यदि जगदीश लाल आहूजा जैसे लोग आगे ना आएं तो कई गरीब लोगों को कई कई दिन भूखे पेट अस्पतालों और पीजीआई में धक्के खाने पड़ें.


भारत पाक बंटवारे के समय जगदीश लाल आहूजा करीब बारह साल की आयु में पंजाब के मानसा में आ गए और गुजारे के लिए उनको रेलवे स्टेशन पर नमकीन और दाल तक बेचनी पड़ी. कुछ दिनों बाद जगदीश लाल आहूजा पटियाला चले गए और यहां भी गुड़ फल बेच कर गुजर बसर किया.


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वर्ष 1951 में जगदीश लाल आहूजा चंडीगढ़ पहुंचे तो उनके पास महज चार रूपये पंद्रह पैसे जेब में थे. चंडीगढ़ आकर जगदीश लाल आहूजा ने केले की रेहड़ी लगाई और यहीं से उनकी किस्मत चमकी और फल के कारोबार ने उनको करोड़पति बना दिया. लंगर लगाने की प्रेरणा जगदीश लाल आहूजा को अपनी दादी गुलाबी से मिली जो पेशावर में जरूरतमंद लोगों के लिए लंगर लगाती थीं.


वर्ष 1981 में उन्होंने बेटे के जन्मदिन पर लंगर लगाने का क्रम शुरू किया ओर यह सेवा आज तक निरंतर चल रही है. फिलहाल पद्म श्री अवॉर्ड उनकी मानव के प्रति सेवा की एक पहचान जरूर हो सकती है मगर उनकी इस सेवा को किसी पैमाने से आंकना नामुमकिन है.