चंद्रयान-2: इतना बड़ा है चांद, लेकिन दक्षिणी ध्रुव पर ही क्यों उतरेगा विक्रम लैंडर? यहां जानें
chandrayaan-2 : चांद के दक्षिणी ध्रुव पर बड़े और गहरे गड्ढे हैं. यहां उत्तरी ध्रुव की अपेक्षा कम शोध हुआ है.
नई दिल्ली : चंद्रयान-2 मिशन (chandrayaan-2) के तहत भारत आज देर रात चांद पर अपना शोध यान उतारेगा. ऐसा करके भारत चांद पर उतरने वाला चौथा देश बन जाएगा. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) चांद के दक्षिणी ध्रुव पर शोध यान को उतार रहा है. विक्रम लैंडर के साथ प्रज्ञान नामक रोवर भी चांद पर जा रहा है. इसरो का दावा है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहली बार कोई देश कदम रखेगा. चांद तो काफी बड़ा है, लेकिन भारत अपने शोध यान को इसके दक्षिणी ध्रुव पर ही क्यों उतार रहा है? इस सवाल का जवाब आपको यहां मिलेगा.
वैज्ञानिकों के अनुसार चांद के दक्षिणी ध्रुव पर शोध से यह पता चलेगा कि आखिर चांद की उत्पत्ति और उसकी संरचना कैसे हुई. इस क्षेत्र में बड़े और गहरे गड्ढे हैं. यहां उत्तरी ध्रुव की अपेक्षा कम शोध हुआ है.
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दक्षिणी ध्रुव के हिस्से में सोलर सिस्टम के शुरुआती दिनों के जीवाष्म होने के मौजूद होने की संभावनाएं हैं. चंद्रयान-2 चांद की सतह की मैपिंग भी करेगा. इससे उसके तत्वों के बारे में भी पता चलेगा. इसरो के मुताबिक इसकी प्रबल संभावनाएं हैं कि दक्षिणी ध्रुव पर पानी मिले.
इसरो आज देर रात चांद के जिस दक्षिणी ध्रुव पर अपना लैंडर विक्रम उतारेगा, वह कई मायनों में खास है. यहां कई बड़े गड्ढे हैं. इसी हिस्से पर सौर मंडल में मौजूद बड़े गड्ढों (क्रेटर) में से एक बड़ा गड्ढा यहीं मौजूद है.इसका नाम साउथ पोल आइतकेन बेसिन है. इसकी चौड़ाई 2500 किमी और गहराई 13 किमी है. चांद के इस हिस्से के सिर्फ 18 फीसदी भाग को पृथ्वी से देखा जा सकता है. बाकी के 82 फीसदी हिस्से की पहली बार फोटो सोवियत संघ के लूना-3 शोध यान ने 1959 में भेजी थी. तब इस हिस्से को पहली बार देखा गया था.