Moon Surface Soil:  चांद की सतह पर विक्रम लैंडर (vikram lander soft landing) बिना किसी चूक के लैंड कर सके इसके लिए इसरो के वैज्ञानिकों ने खास टेस्ट किए थे. चंद्रयान 3 मिशन के लिए किसी तरह की बाधा ना हो उसके लिए मुकम्मल तैयारी हुई. कंप्यूटर की मदद से विक्रम को बार बार उतार कर आने वाली सभी तरह की चुनौतियों से पार पाने की कोशिश हुई. यहां आपके मन में सवाल उठेगा कि चांद की सतह (Moon Surface Soil) जैसी मिट्टी को इसरो के वैज्ञानिक कहां से लाए होंगे. अब इस सवाल का जवाब हासिल करने के लिए आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है. 


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नामक्कल की मिट्टी चांद की सतह जैसी


चेन्नई से करीब 400 किमी दूर नामक्कल जिले (Namakkal soil) की मिट्टी चांद की सतह की मिट्टी की तरह है. इसरो के वैज्ञानिकों ने उस मिट्टी के नमूने को लिया और चांद की सतह (Moon surface bed) जैसा बेड बनाया. नामक्कल से लाई गई मिट्टी पर बार बार विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर (vikram lander testing) की टेस्टिंग की गई ताकि अंतिम रूप से जब चंद्रयान 3 को लांच किया जाए तो चांद पर इसरो के ऑपरेशन में किसी तरह की मुश्किल ना आए. इस संबंध में पेरियार यूनिवर्सिटी के जियोलॉजी विभाग के निदेशक एस अंबझगान ने बताया कि तमिलनाडु में कुछ जगहों पर चांद की सतह जैसी मिट्टी मिलती है. खासतौर से दक्षिण ध्रुव पर (moon south pole) मिट्टी की तरह की संरचना यहां मिलती है, चांद के दक्षिणी ध्रुव पर एंथ्रोसाइट की मात्रा अधिक है. यह एक तरह की इंट्रूजिव इग्नीयस रॉक होती है.



चंद्रयान 2 मिशन में अमेरिका से मंगाई गई थी मिट्टी


चंद्रयान 2 (chandrayaan 2 mission) के पूर्व निदेशक रहे मिलस्वामी अन्नादुरई ने बताया था कि इसरो (isro) को उस तरह की मिट्टी की जरूरत थी जो चंद्रयान मिशन के लिए जरूरी था. काफी तलाश के बाद खोज तमिलनाडु के नामक्कल में जाकर पूरी हुई. उन्होंने बताया कि 2010 में इसरो को 10 किग्रा मिट्टी की जरूरत थी जिसे अमेरिका से 150 डॉलर प्रति किलो के दर में खरीदा गया था और उसका उपयोग चंद्रयान 2 मिशन की टेस्टिंग में किया गया. बाद में इसरो को 60 से 70 किलोग्राम और सैंड की जरूरत हुई जिसे अमेरिका (soil purchasing from america) से खरीदा गया लेकिन बाद में इसरो ने दूसरे विकल्पों पर भी काम करना शुरू किया. काफी खोजबीन के बाद जब हमने नामक्कल जिले में सीतमपूंडी और कुनामलाई गांव के आसपास की चट्टानों को देखा और परखा. तमिलनाडु के सलेम में उन चट्टानों को क्रश किया और यह पाया कि वह मिट्टी चांद की सतह से पूरी तरह मिलजुल रही थी. यहां ध्यान देने वाली बात है 2020 में लूनर मिट्टी के लिए पेटेंट हासिल किया गया.