Chattisgarh: छत्तीसगढ़ में एक व्यक्ति के अपने पिता के शव को दफनाने की मांग उसे कोर्ट तक ले जा पहुंची. मामला इतना गंभीर हो गया कि खुद अदालत में बैठे जज भी सिर पकड़कर बैठ गए. सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों ने बेटे की याचिका पर अलग-अलग फैसला सुनाया, हालांकि शव के 3 हफ्ते तक मोर्चरी पर रहने के कारण मामले का जल्दी निपटारा किया गया. 


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क्या है मामला? 
मामला छत्तीसगढ़ के छिंदवाड़ा गांव निवासी सुभाष बघेल का है. सुभाष बघेल और उनका परिवार आदिवासी से ईसाई में कन्वर्ट हुआ था. 7 जनवरी को सुभाष की मौत हुई. ऐसे में उनके बेटे की मांग थी कि उनके सारे पूर्वजों की तरह ही उनके पिता को भी गांव के कब्रिस्तान में दफनाया जाए. बेटे की मांग थी कि ईसाई में कन्वर्ट होने की वजह से उसके साथ कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए. छिंदवाड़ा गांव के कब्रिस्तान में ही आदिवासी और ईसाई समुदाय के लोगों के अंतिम संस्कार के लिए जगह बनाए गएं है 


गांव वालों ने किया विरोध   
गांव के आदिवासी लोग सुभाष के बेटे की इस मांग का विरोध करने लगे. उनका कहना था कि गांव का कब्रिस्तान हिंदू आदिवासियों का है. ऐसे में ईसाई समुदाय के शव को गांव में कहीं भी दफनाने की इजाजत नहीं दी जा सकती. भले ही वो गांव का कब्रिस्तान हो या निजी जमीन. छत्तीसगढ़ सरकार का भी मत था कि शव को गांव से 20km दूर भले ईसाइयों के अलग से बनाये कब्रिस्तान में ही दफनाया जाना चाहिए ताकि कानून व्यवस्था की स्थिति न बिगड़े. 


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जज ने सुनाया फैसला 
मामले को लेकर जस्टिस नागरत्ना ने फैसले में कहा कि शव को गांव में ही मौजूद परिवार की निजी जमीन पर दफनाने की इजात मिलनी चाहिए. वहीं सरकार को इसके विरोध में शामिल न होकर सुरक्षा मुहैया करवानी चाहिए. उन्होंने गांव के कब्रिस्तान में ईसाई समुदाय के शख्श को दफनाने से इंकार करना दुर्भाग्यपूर्ण, असंवैधानिक और भेदभावपूर्ण बताया. जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने जस्टिस नागरत्ना की राय पर असहमित जताते हुए कहा कि कब्रिस्तान धर्म विशेष के मानने वाले लोगों के लिए तय रहते है. ऐसे में शव को ईसाई धर्म के लिए गांव से 20km दूर बनाए गए कब्रिस्तान पर दफनाना चाहिए. अब चूंकी शव 7 जनवरी से मोर्चरी में पड़ा था ऐसे में जजों ने आर्टिकल 142 का इस्तेमाल करते हुए शव को गांव से 20km दूर  ईसाई समुदाय के कब्रिस्तान में दफनाने का फैसला सुनाया.