लद्दाख में चीन को आंख दिखाएंगे छत्रपति शिवाजी, 14300 फीट की ऊंचाई पर पैंगोंग लेक के किनारे लहराया परचम
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Chhatrapati Shivaji Maharaj Statue At Pangong Tso: चीन बॉर्डर के पास पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग त्सो (झील) के तट पर, 14,300 फीट की ऊंचाई पर छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा लगाई गई है.
Shivaji Statue At Pangong Lake: भारत की पूर्वी सीमा पर अब छत्रपति शिवाजी महाराज का परचम लहराएगा. लद्दाख में पैंगोंग झील के तट पर, 14300 फीट की ऊंचाई पर शिवाजी की भव्य प्रतिमा लगाई गई है. साथ में मराठा साम्राज्य का ध्वज है जो हिमालय की वादियों में जब लहराता है तो मानों 'छत्रपति' की मौजूदगी का अहसास कराता है. सेना के अनुसार, शिवाजी की यह प्रतिमा वीरता, दूरदर्शिता और अटूट न्याय का विशाल प्रतीक है.
सेना की फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स ने एक बयान में कहा, '26 दिसंबर 2024 को पैंगोंग त्सो के तट पर 14,300 फीट की ऊंचाई पर छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा का अनावरण किया गया. वीरता, दूरदर्शिता और अटूट न्याय के इस विशाल प्रतीक का उद्घाटन फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल हितेश भल्ला (SC, SM, VSM) और कर्नल ऑफ द मराठा लाइट इन्फैंट्री: फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स द्वारा किया गया.'
पैंगोंग के तट पर शिवाजी की प्रतिमा का महत्व
पैंगोंग वह झील है जिसके पानी से होते हुए वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) गुजरती है, जो भारत और चीन की सीमा है. झील का पश्चिमी सिरा भारत के क्षेत्र में हैं और पूर्वी छोर चीन के नियंत्रण वाले तिब्बत में. यह वह इलाका है जिसने 1962 के भारत-चीन युद्ध से लेकर कई बार संघर्ष देखा है. अगस्त 2017 में इसी झील के किनारे पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प हुई थी. मई 2020 में भी करीब 250 सैनिक आमने-सामने आ गए थे.
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अगस्त 2020 में भारतीय सेना ने झील के दक्षिणी किनारे की अहम ऊंचाइयों पर कब्जा कर दिया था. इनमें रेजांग ला, रेक्विन ला, ब्लैक टॉप, गुरुंग हिल, गोरखा हिल आदि शामिल थे. हालांकि, बाद में डिसइंगेमेंट के तहत भारत ने ये इलाके खाली कर दिया. अब वहां शिवाजी की प्रतिमा स्थापित किया जाना चीन को एक संदेश की तरह देखा जा रहा है.
30 फीट से ज्यादा ऊंची यह प्रतिमा मराठा योद्धा की विरासत को सम्मान देने के लिए बनाई गई है. अपनी अद्भुत सुंदरता और सामरिक महत्व के लिए मशहूर पैंगोंग त्सो अब शिवाजी के इस स्मारक का घर बन गइ र् है. यह प्रतिमा देश के गौरव और अपनी संप्रभुता की रक्षा करने की ताकत को दर्शाती है, खासकर उत्तरी सीमा के चुनौतीपूर्ण इलाकों में.