Supreme Court on Collegium System:  कॉलेजियम सिस्टम की पारदर्शिता पर सवाल उठते रहे हैं. वकीलों के एक धड़े का मानना रहा है कि जजों की नियुक्ति के लिए जिस सिस्टम को बनाया गया है वो सही नहीं है. हालांकि इस विषय पर सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़(cji d y chandrachud) ने विस्तार से राय रखी. राम जेठमलानी मेमोरिया लेक्चर में अपनी बात रखते हुए कहा कि जजों के चयन की प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी है. न्याय में किसी तरह की विसंगति ना हो इसका खास ख्याल किया जाता है. बता दें कि किरेन रिजिजू जब कानून मंत्री थे उस दौरान न्यायपालिका (indian judicial system)और उनके में टकराव की स्थिति बनी थी. यहां हम बात करेंगे कि कॉलेजियम सिस्टम कहां से आया और जजों की नियुक्ति कैसे की जाती है.


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1993 के बाद आया कॉलेजियम का कंसेप्ट


वरिष्ठ वकील फली एस नरीमन (f s nariman)ने सवाल उठाते हुए कहा था कि कॉलेजियम जब सुप्रीम कोर्ट के जजों के बारे में विचार करती है तो उसमें जानकारी की कमी होती है. एक तरह से चयन प्रक्रिया अस्पष्ट नजर आती है. बता दें कि देश में कॉलेजियम सिस्टम का 1993 में मशहूर द सेकेंड जजेज से सीधा संबंध है.इसमें नरीमन को जीत हासिल हुई थी और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम लाया गया.


50 से अधिक संख्या पर विचार


सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति में कॉलेजियम की भूमिका पर सीजेआई ने कहा कि उच्चतम न्यायालय में जज की हर एक पोस्ट के लिए पांच सदस्यों वाली कॉलेजियम हाईकोर्ट के 50 वरिष्ठ जजों के बारे में मूल्यांकन करती है. इसमें जजों की फैसले की गुणवत्ता के साथ साथ व्यक्तिगत पहलू पर भी खास ध्यान दिया जाता है. उन्होंने कहा कि यह कहना सही नहीं है कि सिर्फ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस(highcourt chief justice) और 20 सीनियर जजों के नाम पर विचार करते हैं, बल्कि 50 नाम पर विचार होता है. यही नहीं 50 का मतलब सिर्फ 50 भी नहीं है यह संख्या बढ़ भी सकती है, इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अगर कोई जज जूनियर लेकिन योग्य है तो उसके नाम पर भी विचार किया जाता है.