Who is Shubhankar Sarkar: कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल के पार्टी संगठन में बड़ा फेरबदल करते हुए शुभंकर सरकार को नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है. वे अभी तक कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव पद पर नियुक्त थे. उन्हें अधीर रंजन चौधरी को हटाकर इस पद पर बिठाया गया है, जो ममता बनर्जी और टीएमसी की राजनीति के कट्टर विरोधी थे. तो क्या माना जाए कि अधीर को हटाकर अब कांग्रेस ममता बनर्जी से अपने रिश्ते सुधारने के संकेत दे रही है. क्या राज्य की राजनीति में दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन की राह खुल जाएगी या अब भी दोनों में टकराहट बनी रहेगी. ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब अगले कुछ हफ्तों में धीरे- धीरे सामने आ सकते हैं.


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राहुल गांधी के नजदीकी हैं शुभंकर सरकार!


बहरहाल, अगर शुभंकर सरकार के सियासी की बात की जाए तो वे पार्टी नेता राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं. शुभंकर सरकार कॉलेज के दिनों में ही कांग्रेस से जुड़ गए थे. वे वर्ष 1993 से लेकर 1996 तक NSUI के राष्ट्रीय महासचिव और प्रवक्ता रहे. इसके बाद वे 2004 से लेकर 2006 तक भारतीय युवा कांग्रेस के महासचिव रहे. 


छात्र जीवन के बाद उन्होंने 2007 में कांग्रेस की मुख्यधारा में प्रवेश किया और 2009 तक पश्चिम बंगाल कांग्रेस कमेटी के प्रदेश सचिव रहे. इसके बाद 2013 में उन्हें पश्चिम बंगाल कांग्रेस कमेटी का महासचिव बनाया गया. शुभंकर को वर्ष 2013 से 2018 तक कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव और ओडिशा के प्रभारी की जिम्मेदारी भी दी गई. 


ममता के विरोधी अधीर की हुई पद से छुट्टी


उनकी निष्ठा और पार्टी के प्रति समर्पण को देखते हुए उन्हें अगस्त 2024 में कांग्रेस ने राष्ट्रीय सचिव पद पर बरकरार रखने के साथ ही तीन राज्यों मेघालय, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश के प्रभारी का जिम्मा भी सौंपा. उनकी नियुक्ति का सर्कुलर पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने जारी किया. इस पत्र में वेणुगोपाल ने अधीर रंजन चौधरी के योगदान की सराहना भी की. 


शुभंकर सरकार की राजनीति की बात की जाए तो टीएमसी से कांग्रेस के गठबंधन के समर्थक माने जाते हैं. शुभंकर का मानना है कि राज्य में पार्टी अभी इस हालत में नहीं है कि वह अपने दम पर टीएमसी या बीजेपी को टक्कर दे पाए. लिहाजा उसे टीएमसी के साथ मिलकर ही अपने लिए स्थान बनाना होगा. वहीं अधीर रंजन चौधरी इस विचार के विरोधी रहे हैं. उनका मानना है कि यह कदम खुद के पांवों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा. अगर पार्टी ने ऐसा किया तो वह राज्य में बचा- खुचा जनाधार भी खो देगी और उसकी हालत दया पर निर्भर छोटे से दल के बराबर हो जाएगी. 


क्या कांग्रेस के लिए पिघलेगा ममता का मन?


लोकसभा चुनाव के दौरान जब कांग्रेस और टीएमसी के बीच गठबंधन की बात चली तो अधीर रंजन चौधरी ने इसका विरोध किया था. इसे लेकर खरगे ने उनसे नाराजगी भी जताई थी. तभी से माना जा रहा था कि चुनावों के बाद उन्हें पद से हटाया जा सकता है. इत्तेफाक से अधीर लोकसभा चुनाव हार गए. इससे पार्टी नेतृत्व को उन्हें हटाने का बढ़िया मौका मिल गया और हाईकमान ने उन्हें हटाकर शुभंकर सरकार को प्रदेश अध्यक्ष के पद पर बिठा दिया. अब देखने वाली बात होगी कि ममता बनर्जी कांग्रेस के इस दांव को किस रूप में लेती हैं और क्या दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन की आगे कोई संभावना बनेगी.