Contribution of Indian Army to Sports: ब्रिटेन के बर्मिंघम में हुए कॉमनवेल्थ खेलों (Commonwealth Games 2022) में भारत ने 22 गोल्ड 16 सिल्वर समेत कुल 61 मेडल जीते हैं और वो लिस्ट में चौथे नंबर पर रहा है. ये सुनहरे मेडल्स इन खिलाड़ियों के संघर्ष, उनकी तपस्या और कठोर अनुशासन का परिणाम हैं. 


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इन सभी खिलाड़ियों ने अपनी ज़िद, अपने हौसले और अपने जीत के जुनून से इस देश को विदेशी धरती पर गर्व करने का मौका दिया है. इन सभी खिलाड़ियों के संघर्ष की अपनी अपनी कहानियां हैं. इनमें से ज्यादातर खिलाड़ी गरीबी से संघर्ष करते हुए इस ऊंचाई तक पहुंचे हैं. लेकिन कामयाबी की इन कहानियों का एक किरदार और भी है. ये किरदार कोई और नहीं हमारी भारतीय सेना (Indian Army) है. 


लोगों के भरोसे का प्रतीक है भारतीय सेना


आज इंडियन आर्मी भरोसे का सबसे बड़ा प्रतीक है. हमारी सेना सिर्फ सरहदों की सुरक्षा ही नहीं करती, वो विपरीत स्थितियों में हमारी मदद करने में भी सबसे आगे रहती है. प्राकृतिक आपदा हो, या फिर किसी भी प्रकार की कठिन स्थिति हो. सेना की मौजूदगी से ही हमारी हिम्मत कई गुना बढ़ जाती है. 


हमारी सेना आज विदेशों में तिरंगे की शान को बढ़ाने का भी काम कर रही है. भारतीय सेना अपने ट्रेनिंग सेंटर्स में ऐसे विश्व स्तरीय खिलाड़ी पैदा कर रही है, जो पूरी दुनिया में भारत का नाम रौशन कर रहे हैं. चाहे वो टोक्यो ओलिम्पिक में गोल्ड जीतने वाले नीरज चोपड़ा हों, या फिर बर्मिंघम में हुए कॉमनवेल्थ खेलों में गोल्ड जीतने वाले जेरेमी लालनिरुंगा हों. इन सभी ने भारत का सीना गर्व से चौड़ा किया है. हर बार की तरह इस बार भी कॉमनवेल्थ खेलों में भी भारतीय सेना (Indian Army) से जुड़े खिलाड़ियों ने जबरदस्त प्रदर्शन किया है. 


सेना के खिलाड़ियों ने जीते 8 मेडल


सेना की तरफ से इस बार 18 खिलाड़ियों को भेजा गया था और उन्होंने 4 गोल्ड, 1 सिल्वर और 3 ब्रॉन्ज मेडल जीते हैं. यही नहीं भारत ने ओलिम्पिक्स में अब तक 35 मेडल्स जीते हैं. इसमें भी लगभग आधे मेडल सेना से जुड़े खिलाड़ियों ने जीते हैं. 


लेकिन सेना के खिलाड़ियों के इस प्रदर्शन के पीछे लगन, मेहनत और अनुशासन की लंबी कहानी है. सेना (Indian Army) ने कम उम्र में ही खिलाड़ियों की प्रतिभा पहचानने और उन्हें विश्वस्तरीय खिलाड़ी बनाने के लिए एक अलग कार्यक्रम भी शुरू किया है. वर्ष 2017 में शुरू किए गए इस कार्यक्रम के तहत सेना के अलग अलग रेजिमेंटल सेंटरों में एक ब्वॉयज स्पोर्ट्स कंपनी बनाई गई है. इसके लिए हर रेजिमेंट अपने इलाके के 8 से 14 साल के बच्चों को ट्रेनिंग के लिए चुनती है और फिर उन्हें इस सेंटर में लाया जाता है. 


सेंटर में लाने के बाद बच्चों की रुचि और उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें किसी एक खेल का प्रशिक्षण दिया जाता है. इस दौरान बच्चों की ट्रेनिंग, उनके रहने, खाने और दूसरी जरूरी चीजों का पूरा खर्च भी सेना ही उठाती है. इन बच्चों को सेना के बेहतरीन कोच प्रशिक्षण देते हैं और उन्हे बड़ी प्रतियोगिताओं में भाग लेना का भी मौका मिलता है. वेटलिफ्टिंग में भारत के लिए गोल्ड जीतने वाले मिजोरम के जेरेमी भी ऐसी ही ब्वॉयज स्पोर्ट्स कंपनी से चुन कर यहां तक पहुंचे हैं. 


ज़ी मीडिया पदकवीरों की नर्सरी में पहुंचा


ज़ी मीडिया भी मेडेलिस्ट पैदा करने वाली सेना की एक ऐसी ही नर्सरी पहुंचा और भविष्य़ के पदकवीरों से मुलाकात की. हम आपको बरेली के जाट रेजिमेंट सेंटर से अपनी इस खास रिपोर्ट के बारे में बताते हैं. 


ब्रिटेन में हुए कॉमनवेल्थ खेलों (Commonwealth Games 2022) में जब 19 साल के जेरेमी लालरिनुंगा ने सोना जीता तो उसकी सुनहरी चमक उनके चेहरे पर भी बिखर गई. ये जुनून, ये  ज़िद और हार न मानने का ये हौसला, जेरेमी को सेना की पाठशाला में मिला है. खिलाड़ी से पहले वो एक सैनिक हैं. ऐसा सैनिक, जो तिरंगे को देखकर सैल्यूट करना नहीं भूलता. जिसके लिए देश, उसकी शान, सबसे ऊपर सबसे पहले है. 


जेरेमी लालरिनुंगा कहते हैं, 'सैनिक हूं, बॉर्डर पर नहीं हूं तो क्या हुआ. यहां देश के लिए सोना जीत कर नाम ऊंचा किया है.'


खेलों के लिए कम उम्र में ही चुन लेती है सेना


कुछ यही कहानी, सेना (Indian Army) के दूसरे स्वर्णवीर वेटलिफ्टर अचिंता सियुली की है. अचिंता ने भारत के लिए 73 KG कैटेगरी में देश के लिए सोना जीता है. चाहे मणिपुर के जेरेमी हों या पश्चिम बंगाल के अचिंता. सेना में उन्हें न सिर्फ़ अच्छी ट्रेनिंग मिली बल्कि जीत का हौसला भी मिला. 


भारतीय सेना सिर्फ देश के लिए मर मिटने वाले फौजी तैयार नहीं करती. सेना की नर्सरी में देश का नाम रौशन करने वाले बेहतरीन खिलाड़ी भी तैयार होते हैं. सेना बेहद कम उम्र में ही बच्चों को उनकी प्रतिभा के आधार पर चुन लेती है. फिर अनुभवी कोच इन बच्चों को तराशते हैं, निखारते हैं और उन्हे एक विश्व स्तरीय खिलाड़ी बना देते हैं. 


एक अच्छा और विश्व स्तरीय खिलाड़ी बनने के लिए सिर्फ मेहनत और प्रतिभा ही नहीं अनुशासन की भी उतनी ही बड़ी भूमिका होती है. इसीलिए यहां ट्रेनिंग ले रहे हर खिलाड़ी की दिनचर्या फौजियों जैसी ही होती है. 


ट्रेनिंग, रहने और खाने-पीने का सारा खर्चा सेना उठाती है


17 साल के ललित भी जाट रेजिमेंटल सेंटर में कुश्ती के दांवपेच सीख रहे हैं. वो जब ब्वॉयज स्पोर्ट संपनी के लिए चुने गए थे, तब उनकी उम्र सिर्फ़ 12 वर्ष थी. लेकिन सेना (Indian Army) की इस पाठशाला में पांच साल बिताने के बाद उनके चेहरे पर एक अलग तरह का आत्मविश्वास नजर आता है.


यहां इन बच्चों को इंटरनैशनल लेवल के खिलाड़ियों के साथ ट्रेनिंग करने और उनसे सीखने का भी मौक़ा मिलता है. यही नहीं इन सेंटर्स में बच्चों को 12 वीं तक की पढ़ाई भी करवाई जाती है. इसके बाद उन्हे सीधे सेना में भर्ती कर लिया जाता है. इस दौरान उनकी ट्रेनिंग से लेकर डाइट और दूसरी ज़रूरी चीजों का ध्यान भी सेना ही रखती है. 


रेजिमेंटल सेंटर्स में अच्छा प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को और तराशने के लिए सेना के पुणे स्थिति स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट में भेजा जाता है. वहां उन्हें न सिर्फ इंटरनैशल लेवल की ट्रेनिंग दी जाती है बल्कि कई बड़ी प्रतियोगिताओं में खेलने का मौका भी मिलता है. सेना के इस इंस्टीट्यूट ने देश को एक से बढ़ कर एक नगीने दिए हैं. 


कॉमनवेल्थ खेलों में भारत ने जीते 22 गोल्ड


ब्रिटेन के बर्मिंघम में हुए कॉमनवेल्थ खेलों (Commonwealth Games 2022) में भारत ने 22 गोल्ड 16 सिल्वर समेत कुल 61 मेडल जीते हैं. इस लिस्ट में भारत चौथे नंबर पर रहा है. लेकिन सबसे खास बात जो है, वो ये है कि इस बार फिर ग़रीबी और संघर्ष की मिट्टी से तपकर नए खिलाड़ी निकले हैं जिन्होंने देश का नाम रोशन किया है. आपने अक्सर बड़े बुजुर्गों को कहते सुना होगा कि जीवन में अगर अनुशासन है तो व्यक्ति किसी भी लक्ष्य को पा सकता है और अपने जीवन को व्यवस्थित बना सकता है. 


जब बात अनुशासन की आती है तो इस मामले में सेना (Indian Army) से बेहतर कोच कोई दूसरा नहीं हो सकता. इससे पहले भी सेना से जुड़े खिलाड़ियों ने ओलंपिक में, एशियन गेम्स में और दूसरे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी कामयाबी से देश का नाम रोशन किया है. अनुशासन वो पूंजी है जो एक दिन में नहीं कमाई जा सकती. ज्ञान के अलावा अनुशासन ही वो पूंजी है जो आपसे कोई चाहे भी तो छीन नहीं सकता.


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