मुंबई: राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की एक विशेष अदालत ने 2008 के मालेगांव बम धमाका मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित और अन्य आरोपियों पर आतंकवाद के आरोपों में मुकदमा चलाने का आदेश देते हुए कहा है कि वह एजेंसी की इस दलील को स्वीकार कर रही है कि वे एक ‘‘हिंदू राष्ट्र’’ बनाना चाहते थे और धमाका दरअसल इसी लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में उठाया गया कदम था.


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विशेष न्यायाधीश एस डी टेकाले ने 130 पन्नों के अपने आदेश में कहा है कि आरोपियों पर महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून (मकोका) के तहत मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं थे.


विशेष अदालत ने कहा कि आरोपियों पर मकोका के तहत तो मुकदमा नहीं चलेगा, लेकिन उन्हें गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून (यूएपीए), आईपीसी और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत मुकदमें का सामना करना पड़ेगा. अभियोजन की ओर से नामजद 13 आरोपियों में से दो अब भी फरार हैं.


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अदालत ने बुधवार को तीन आरोपियों - श्याम साहू, शिवनारायण कलसांगरा और प्रवीण टक्कलकी - को उनके खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों से मुक्त कर दिया था और कहा था कि वह उनके खिलाफ अपर्याप्त साक्ष्य होने के कारण उन्हें मामले से ‘‘मुक्त’’ करने के एनआईए के फैसले को स्वीकार कर रही है.


अदालत ने कहा कि दो आरोपियों - राकेश धावड़े और जगदीश म्हात्रे - पर पुणे एवं ठाणे की अदालतों में सिर्फ शस्त्र अधिनियम के तहत मुकदमा चलेगा.


अपने आदेश में अदालत ने कहा, ‘‘इस शुरुआती चरण में गवाह संख्या 184 के बयान से यह सुरक्षित निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि भोपाल वाली बैठक (जिसमें कथित साजिश रची गई) में प्रसाद पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, रमेश उपाध्याय, समीर कुलकर्णी एवं सुधाकर चतुर्वेदी मौजूद थे.’’ 


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अदालत ने कहा, ‘‘उसमें औरंगाबाद एवं मालेगांव में बढ़ती जिहादी गतिविधियों के बारे में चर्चा हुई और पुरोहित ने उक्त इलाके में अभिनव भारत संगठन का विस्तार कर इस पर रोक लगाने के लिए कुछ करने की राय जाहिर की थी.’’ अदालत ने कहा कि वह एनआईए के वकील की इस दलील को स्वीकार कर रही है कि आरोपियों ने एक ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने की साजिश रची थी और बम धमाके को अंजाम देने की साजिश लक्ष्य की दिशा में एक कदम था.