दयाशंकर मिश्र


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हमारी असफलता का सबसे बड़ा दुश्‍मन कौन! जब भी हम ऐसे लोगों को याद करने बैठते हैं तो कुछ नाम मिटाते हैं, तो कुछ जोड़ते हैं. ऐसा इसलिए क्‍योंकि जिसे आज हम दुश्‍मन बता रहे हैं, कभी न कभी हमारा दोस्‍त जरूर रहा होगा.  कभी अपरिचित दुश्‍मन हुआ है! दुश्‍मन होने के लिए पहली शर्त भूतपूर्व दोस्‍त होना है.


कभी आप जिनके निकट रहे होंगे, बाद में उनसे ही तो दूर हुए. जिसके कभी पास ही नहीं थे, उनसे तो दूर हुआ ही नहीं जा सकता. हम अक्‍सर अपनी नाकामयाबी के लिए ऐसे ही 'कथित' दुश्‍मनों को कोसते हुए जिंदगी गुजार देते हैं. हर असफलता के लिए हमें ऐसा किरदार चाहिए जिस पर हम सारी बातें थोप सकें. अपना मूल्‍यांकन करने की जगह दूसरे पर कारण थोपने को जगह महत्‍व देते हैं. इसलिए हर बात के लिए जिम्‍मेदार व्‍यक्‍ति को तलाशते रहते हैं.  


हमारे आसपास ऐसे लोगों की विशाल जनसंख्‍या है, जिसके पास हर बात के लिए एक पूरी योजना (बहाना) है. बल्कि ऐसा भी कह सकते हैं कि बहाने का पूरा ग्रंथ है. जिसकी हर कड़ी एक दूसरे से इस तरह खूबसूरती से जुड़ी है कि आप कह ही नहीं सकते कि यह बहाना है. 


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यह 'बहानेसाइटिस' एक गंभीर मनोवैज्ञानिक बीमारी है. 'बहानेसाइटिस' लंबे समय तक बहानों के साथ रहने से होने वाली बीमारी है. जिसमें आपके पास हर बात का एक बहाना है. ऑफिस देर से पहुंचने से लेकर काम नहीं होने, परिणाम नहीं देने तक का. यहां तक कि नींद अच्‍छी नहीं आने, देर से उठने तक के अनूठे कारण मौजूद हैं. चूंकि हर बात के लिए कोई दूसरा जिम्‍मेदार है, इसलिए ऐसे लोगों की असफलता में वह अपना थोड़ा भी दोष नहीं मानते. दोष परिस्‍थि‍तियों, भाग्‍य का है.


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यह भाग्‍य बनता कहां से है. इसकी फैक्‍ट्री कहां है. कहां से इसे अपने अनुकूल बनाया जा सकता है. इन सभी बातों का उत्‍तर बस दो शब्‍दों में है. निरंतर, प्रयास. हार नहीं मानने तक, लड़ना. हर उस चीज़ से जो हमारे सपनों के आड़े आ रही हो. महान वैज्ञानिक एडिशन जो कभी पेपर बांटने का काम करते थे, नेपोलियन जिनका नंबर कक्षा में पीछे से सबसे पहले आता था. बीथोवीन जो बहरे थे. कबीर और तुलसी जिनके जीवन से मुश्किलें लड़ कर हार गईं.


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इन सबके जीवन, उससे मिलने वाली शिक्षा से ही भाग्‍य को 'अनलॉक' किया जा सकता है. भाग्‍य को पढ़ना उतना मुश्किल नहीं है, जिनका आलस्‍य के समर्थकों ने ढिंढोरा पीट रखा है. हमारे सपनों के आगे सबसे बड़ी बाधा क्‍या है. थोड़ा ठहरकर सोचें. तो हम खुद. जिसे अपनी योजना पर यकीन नहीं होता. उस पर दूसरा कौन और किसलिए यकीन करेगा. आलस मनुष्यता का सबसे बड़ा शत्रु है. इसलिए शत्रुओं की सूची में बस इसका नाम रखिए, बाकी सब मिटा दीजिए. जिंदगी हल्‍की, खूबसूरत ,जीवंत हो जाएगी.     


(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)


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