कैसे खोलने चाहिए दिल्ली के स्कूल, मनीष सिसोदिया ने HRD मंत्री को दिए ये सुझाव
बदलाव के लिए हम खुद आगे बढ़कर पहल करें, न कि विदेशों में कोई नई चीज होने का इंतजार करें और फिर उसकी नकल करें.
नई दिल्ली: आज हर मां-बाप बच्चों की पढ़ाई को लेकर चिंतित हैं. ऐसे में बंद स्कूलों को भी दोबारा खोलना जरूरी है. इस बीच दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) ने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल (Ramesh Pokhriyal) को पत्र लिखकर स्कूलों को फिर से खोलने से पहले कुछ बड़े बदलाव करने के सुझाव दिए हैं. सिसोदिया ने लिखा- अब पुराने तरीके से पढ़ाई नहीं चल सकती है. बदलाव के लिए हम खुद आगे बढ़कर पहल करें, न कि विदेशों में कोई नई चीज होने का इंतजार करें और फिर उसकी नकल करें.
सिसोदिया ने सुझाव दिया है कि सिलेबस को थोड़ा कम करके स्कूली शिक्षा पर जोर देने की बजाय, बच्चों के अंदर पढ़ने की, पढ़े हुए को समझने की, अपनी बात कहने की, लिखने की योग्यता विकसित की जाए.
उपमुख्यमंत्री ने लिखा है कि सबसे पहले, हमें हर बच्चे को भरोसा दिलाना होगा कि वह हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं. अपने स्कूल के भौतिक और बौद्धिक परिवेश पर सबका समान अधिकार है. केवल ऑनलाइन क्लास से शिक्षा आगे नहीं बढ़ सकती है. केवल बड़े बच्चों को स्कूल बुलाना और छोटे बच्चों को अभी घर में ही रखने से भी शिक्षा को आगे बढ़ाना असंभव होगा.
उन्होंने लिखा है कि NCERT और CBSE को यह निर्देश दिए जाएं कि स्टूडेंट्स को सिलेबस आधारित रटंत-परीक्षा के चंगुल से मुक्त करवाएं. NCERT सिलेबस में 30 फीसदी की कटौती करे. बच्चों को बड़ा सिलेबस नहीं बल्कि मुद्दों को गहराई से समझने के अवसर देना चाहिए. दसवीं और बारहवीं की परीक्षाओं को वर्ष के अंत में एक बड़ी परीक्षा के मॉडल से निकालकर कम सिलेबस के साथ कंटीन्यूअस इवेलुएशन पर काम करें. कंटीन्यूअस इवेलुएशन के लिए ऑनलाइन टेस्ट करवाया जाए.
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उपमुख्यमंत्री ने लिखा कि हमारे टीचर्स को मॉडर्न तरीके से पढ़ाने की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए. हमें अपने टीचर्स को अंतर्राष्ट्रीय स्तर की ट्रेनिंग देने के साथ-साथ दुनिया में हो रहे आधुनिक प्रयोगों से भी रूबरू करवाना होगा. टीचर ट्रेनिंग के लिए जहां हम सिंगापुर के मॉडल से कुछ सीख सकते हैं, वहीं परीक्षा के लिए आई. बी. बोर्ड के तरीकों पर गौर किया जा सकता है.
पत्र में लिखा गया है कि शिक्षा की वर्तमान व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव करते हुए बच्चों की 3 से 14 वर्ष की उम्र (नर्सरी से आठवीं कक्षा) का सही इस्तेमाल बच्चों में सीखने की बुनियादी क्षमता विकसित करने में किया जाना चाहिए, ताकि बच्चा इसके आधार पर अपने पूरे जीवन में सीखते समझते हुए जी सके. इस दौरान हमें विशेष प्रयास करके बच्चे के अंदर हैप्पीनेस माइंडसेट विकसित करने का लक्ष्य हासिल करने का प्रयास करना चाहिए. उसके अंदर जिम्मेदारी से व्यवहार करने के गुण विकसित करना भी हमें इस अवस्था की शिक्षा के लक्ष्य में रखना चाहिए.
मनीष सिसोदिया ने लेटर में आगे लिखा कि ऑनलाइन शिक्षा को स्कूल में सीखने की प्रक्रिया की एक पूरक व्यवस्था के तौर पर देखा जाना चाहिए. यह उसका विकल्प नहीं हो सकती है. स्कूलों को खोलने के लिए जो भी दिशा-निर्देश जारी हों, उसमें हर उम्र और हर वर्ग के बच्चे को बराबर अवसर देना होगा. यह ध्यान रखा जाए कि हमारा अगला कदम बड़े बच्चों को छोटे बच्चों के ऊपर प्राथमिकता देने के पूर्वाग्रहों पर आधारित न हो. एक बच्चे के लिए हर उम्र में सीखने का काम बहुत महत्वपूर्ण होता है, भले ही वह बोर्ड की परीक्षाओं की तैयारी कर रहा हो या अभी पढ़ना-लिखना सीख रहा हो.
सिसोदिया ने लिखा कि अगर हमें कोरोना के साथ जीना सीखना है, तो इसे सीखने के लिए भी स्कूल से बेहतर जगह और कोई नहीं हो सकती है. इसमें भी नर्सरी से लेकर आठवीं क्लास तक की प्राथमिक कक्षाओं में यह और भी महत्वपूर्ण होगा. आईसीएमआर द्वारा किए गए कोविड-19 संबंधी अध्ययनों में यह सामने आया है कि कोरोना वायरस का असर 9 साल से कम आयु वर्ग के बच्चों पर सबसे कम रहा है.
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