Delhi High Court News: दिल्ली हाई कोर्ट के एक फैसले के चलते एक शख्स मरने के चार बाद भी पिता बन सकेगा. हाई कोर्ट ने सर गंगाराम अस्पताल को निर्देश दिया है कि वो उस शख्स के फ्रीज किये सीमन सैम्पल को घरवालों का सौंप दे. उस शख्स के माता पिता इस सैंपल से सेरोगेसी के ज़रिए अपने बेटे की विरासत को आगे बढ़ाना चाहता हैं. पहले उन्होंने सीमेन सैंपल पाने के लिए अस्पताल का रुख किया था, लेकिन वहां इसकी इजाज़त न मिल पाने पर हाई कोर्ट का रुख किया. दिल्ली हाई कोर्ट ने इसकी इजाज़त देते हुए अपने फैसले में कहा कि मौजूदा भारतीय क़ानून के तहत अगर सीमेन या एग देने वाले डोनर की सहमति है तो उनके मरने के बाद भी प्रजनन पर रोक नहीं है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

कोर्ट के सामने मामला क्या था


दिल्ली हाई कोर्ट में एक माता-पिता की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि उनका 30 साल का बेटा कैंसर से पीड़ित होने के बाद सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती हुआ. उसे कीमोथेरेपी दी गई. अस्पताल में डॉक्टरों ने सलाह दी कि कीमोथेरेपी के चलते आगे चलकर उसके पिता बनने में मुश्किल आ सकती है. इसलिए बेहतर होगा कि वह अपना सीमेन संरक्षित करवा दें. डॉक्टरों की सलाह के मद्देनजर उसने सीमेन सैम्पल फ्रीज करने को अपनी सहमति दे दी. 27 जून 2020 को अस्पताल में लैब में ये सैम्पल फ्रीज भी कर दिया गया. लेकिन 1 सितंबर 2020 को उसकी मौत हो गई. माता-पिता चूंकि अपने दिवंगत बेटे के वंश को आगे बढ़ाना चाहते थे. इसलिए उन्होंने दिसम्बर 2020 में सीमेन सैम्पल के लिए अस्पताल का रुख किया, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी. अस्पताल ने कहा कि मौजूदा नियमों के चलते सीमेन सैम्पल को बिना कोर्ट की इजाजत के घरवालों को नहीं दिया जा सकता. 


हाई कोर्ट में दलील


इसके बाद शख्स के घरवालों ने दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया. हाई कोर्ट में उनकी ओर से सीनियर एडवोकेट सुरुचि अग्रवाल, एडवोकेट गुरमीत सिंह पेश हुए. वकील ने दलील दी कि इस केस में उनके मुवक्किल सरोगेसी के माध्यम से पैदा होने वाले बच्चे की परवरिश की जिम्मेदारी अपनी बेटियों के साथ मिलकर उठाने को तैयार हैं. 


हाई कोर्ट ने आदेश में क्या कहा


हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ये मामला अपने आप में अनोखा है. अगर मरने वाला शख्स विवाहित होता या उसका कोई जीवन साथी होता तो मामला अलग होता. लेकिन यहां इस केस में उसका कोई जीवन साथी नहीं है. ऐसे में अदालत के सामने सवाल ये है कि क्या मौजूदा क़ानून के तहत मरने के बाद प्रजनन पर कोई रोक है या नहीं! हाई कोर्ट ने कहा कि इस केस में मरने वाला शख्स बखूबी वाकिफ था कि उसका कोई जीवनसाथी नहीं है. सीमेन सैंपल को सुरक्षित रखने के पीछे उसका इरादा भविष्य में बच्चे को पैदा करने का था. उसे कीमोथेरेपी के बाद जिंदा रहने की उम्मीद रही होगी, लेकिन किस्मत ने उसका साथ नहीं दिया. लेकिन सीमेन सैंपल को सुरक्षित रखने के पीछे की वजह उसकी बच्चा पैदा करने की आख़िरी इच्छा मानी जानी चाहिए. सीमेन सैंपल एक जेनेटिक मटेरियल है. अब जब वो गुजर गया तो उसके पहले उत्तराधिकारी होने के नाते उस पर माता-पिता का हक़ बनता है. 


दादा-दादी बनने का सपना खत्म नहीं कर सकते


कोर्ट ने कहा कि मौजूदा वक्त में विज्ञान ने बच्चे पैदा करने में असमर्थ दम्पत्तियों को सन्तान पैदा करने में सक्षम बनाया है. ऐसे में इस केस में दादा-दादी की अपने युवा बेटे की विरासत को आगे बढ़ाने की उम्मीद को खत्म नहीं किया सकता. कोर्ट ने माना कि अगर सेरोगेसी के ज़रिए आगे कोई सन्तान पैदा होती है तो दादा-दादी अपने पोते-पोतियों का पालन पोषण करने में समर्थ हैं. हालांकि कोर्ट ने साथ ही हिदायत भी दी कि इस सीमेन सैंपल का किसी तरह का कमर्शियल इस्तेमाल न हो.