Omar Abdullah Divorce Case: दिल्ली हाइकोर्ट ने तलाक मामले में उमर अब्दुल्ला को तगड़ा झटका दिया है. अदालत के सामने उन्होंने फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील की थी. दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट के सामने उन्होंने क्रूरता का हवाला देकर अपनी पत्नी से तलाक की अर्जी दायर की थी. लेकिन अदालत ने निचली अदालत ने भी उनकी अर्जी को खारिज कर दी थी. उसके बाद उमर ने ऊपरी अदालत का दरवाजा खटखटाया था.न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा की अध्यक्षता वाली उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा, जिसने उमर अब्दुल्ला को अपनी पत्नी से तलाक देने से इनकार कर दिया था.


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अब्दुल्ला के तर्क से अदालत नहीं हुई राजी
खंडपीठ को फैमिली कोर्ट के आदेश में कोई खामी नहीं मिली.हाई कोर्ट फैमिली कोर्ट के आदेश से सहमत था कि उमर अब्दुल्ला द्वारा पायल अब्दुल्ला के खिलाफ क्रूरता के आरोप अस्पष्ट हैं.हाई कोर्ट ने कहा, “उमर अब्दुल्ला पायल अब्दुल्ला द्वारा क्रूरता के किसी भी कृत्य को साबित करने में विफल रहे, चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक. हमें अपील में कोई योग्यता नहीं मिली. इसे खारिज किया जाता है.दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट के आदेश में कोई खामी नहीं. क्रूरता के आरोप भी साफ नहीं थे कि आखिर पायल किस तरह से उन्हें परेशान करती थीं. जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विकास महाजन की पीठ ने कहा कि अपील में कोई मेरिट नहीं थी. 


अब्दुल्ला ने क्रूरता को बनाया था आधार

अब्दुल्ला ने अलग रह रही पत्नी पायल अब्दुल्ला से इस आधार पर तलाक मांगा  था कि उनकी पत्नी ने क्रूरता की है. 30 अगस्त 2016 को ट्रायल कोर्ट ने अब्दुल्ला की तलाक की मांग वाली याचिका खारिज कर दी थी. ट्रायल कोर्ट ने कहा था कि अब्दुल्ला क्रूरता या परित्याग के अपने दावों को साबित नहीं कर सके हैं  जो कि तलाक की डिक्री देने के लिए उसके द्वारा कथित आधार थे. इससे पहले, दिल्ली उच्च न्यायालय ने नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता को निर्देश दिया था कि वह अंतरिम भरण-पोषण के रूप में पायल को हर महीने 1.5 लाख रुपए का भुगतान करें. यही नहीं दोनों बेटों की शिक्षा के लिए हर महीने 60 हजार रुपए भी देने के निर्देश दिया था.


अदालत का आदेश पायल और दंपति के बेटों की 2018 की निचली अदालत के आदेशों के खिलाफ याचिकाओं पर आया, जिसमें लड़कों के वयस्क होने तक 75 हजार और 25 हजार अंतरिम गुजारा भत्ता दिया गया था. उमर अब्दुल्ला ने उच्च न्यायालय के सामने कहा था कि वो बच्चों के भरण-पोषण की अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं. उनकी पत्नी लगातार अपनी वास्तविक वित्तीय स्थिति को गलत बता रही हैं. लेकिन अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि बेटे के वयस्क होने से पिता को अपने बच्चों के भरण-पोषण की जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं होना चाहिए. पालन-पोषण के खर्च का बोझ केवल मां ही नहीं उठा सकती है.