Ghaziabad News: पूरा देश जब होली की खुशियां मना रहा था, उसी समय बचपन बचाओ आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ताओं को किसी ने फोन कर जानकारी दी कि गाजियाबाद के वसुंधरा इलाके में एक घरेलू सहायिका के साथ बर्बरता की गई है और उसकी स्थिति गंभीर है. सूचना के बाद कार्यकर्ता मौके पर पहुंचे और बच्ची को उस घर से मुक्त करा लिया, जहां रोज 20 घंटे काम कराने के बाद जुल्म की हर सीमा तोड़ी जा रही थी. नाबालिग लड़की के दोनों हाथ सूजे हुए थे. कान, चेहरे समेत जिस्म का हर हिस्सा जख्मी था. पीठ पर बेलन से मार पड़ने के निशान थे, जिसकी वजह से वह बमुश्किल अपना दर्द बयां कर पा रही थी. 


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गर्दन पर जले-कटे के निशान के अलावा खौलता हुआ पानी फेंके जाने से लड़की का एक पैर झुलस गया था. बच्ची की शिकायत पर उसकी मालकिन के खिलाफ इंदिरापुरम थाना पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है. बच्ची को मेडिकल जांच के लिए ले जाया गया, जहां उसकी गंभीर हालत को देखते हुए डॉक्टरों ने उसे अस्पताल में भर्ती कर लिया.


पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी की रहने वाली लड़की ने बताया कि वह पिछले एक साल से यहां काम कर रही थी. होली की रात उसकी मालकिन रीना शर्मा ने उसे बेरहमी से पीटा. जब लड़की ने मदद के लिए शोर मचाया तो  रीना उसकी छाती पर बैठ गई. मौका देखकर बच्ची ने जब दरवाजा खुला देखा तो भाग निकली और रात को सीढ़ियों पर छिपी रही. सुबह किसी ने उसे देखा और फिर बचपन बचाओ आंदोलन को सूचना दी. बाद में संस्था के कार्यकर्ता लड़की को लेकर थाने पहुंचे और उसकी मालकिन रीना शर्मा के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई. 


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सुबह 6 से रात 2 बजे तक कराते थे काम 
बच्ची ने बताया कि रीना शर्मा उसकी डंडे से पिटाई करती थी और उससे सुबह छह बजे से लेकर रात को दो बजे तक काम कराया जाता था. नाबालिग ने अपने जले हुए पांव दिखाते हुए बताया कि एक बार वह कोई काम पूरा नहीं कर पाई तो मालकिन ने उसके पैर पर खौलता पानी फेंक दिया. होली से एक दिन पहले भी उसकी पिटाई की गई. 


बच्ची की मां चाय बागान में करती है काम 
बच्ची की मां सिलीगुड़ी के एक चाय बागान में काम करती है. जबकि पैर की चोट के कारण पिता घर पर ही रहते हैं. बच्ची ने बताया कि उसे पखवाड़े में एक बार अपने घर पर फोन करने दिया जाता था. अगर वह इशारों में भी यहां के बदतर हालात के बारे में कुछ बताने की कोशिश करती तो उसे बेरहमी से पीटा जाता था. बच्ची ने बताया कि तनख्वाह के नाम पर उसके हाथ में कभी एक पैसा भी नहीं दिया गया. उससे कहा जाता था कि हर महीने 4,000 रुपये उसके घरवालों को भेजे जाते हैं. बच्ची को एक प्लेसमेंट एजेंसी के जरिये यहां भेजा गया था. 


प्लेसमेंट एजेंसियों की निगरानी की आवश्यकता
बचपन बचाओ आंदोलन के निदेशक मनीष शर्मा ने कहा, शहरी भारतीयों के बढ़ते लालच को पूरा करने के लिए देश के दूरदराज के इलाकों के गरीब व लाचार परिवारों की लड़कियों को ट्रैफिकिंग के माध्यम से लाया जा रहा है. मासूम से उसका बचपन और घर छीन लेना ही काफी नहीं है, इन बच्चों को यातनाएं दी जाती हैं. उन पर अत्याचार किए जाते हैं और उन्हें वीभत्स स्थितियों में रहने को मजबूर किया जाता है. अगर हम अपने बच्चों को शोषण और उत्पीड़न से बचाना चाहते हैं तो हमें और कड़े कानूनों व प्लेसमेंट एजेंसियों की निगरानी की आवश्यकता है. 


RWA सक्रिय भूमिका निभाएं 
अगर देश की सभी रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (RWA) सक्रिय भूमिका निभाएं तो हम बाल मजदूरी और बच्चों की ट्रैफिकिंग पर लगाम कसने में कामयाब हो सकते हैं.