Haryana Education: एक स्कूल ऐसा भी, न बिल्डिंग न कमरे! गेट पर लगता ताश खेलने वालों का जमावड़ा
Haryana Education: पढ़ेगा इंडिया तो बढ़ेगा इंडिया, इस विजन को लेकर केंद्र और राज्य सरकार लगातार शिक्षा क्षेत्र में बदलाव कर रही है. यहां तक कि नई शिक्षा नीति को भी लागू करने की बात सरकार द्वारा की जा रही है. स्कूल ड्रॉप आउट को सुधारने के लिए शिक्षा विभाग कसरत करने में लगा है.
Haryana Education: एक स्कूल ऐसा भी, न बिल्डिंग न कमरे-गर्मी, सर्दी, धूप बरसात और आंधी में पेड़ के नीचे बैठ कर पढ़ते हैं बच्चे, वॉटर कूलर के लिए बनाए 2&2 के शैड के नीचे बैठ बच्चे पढ़ने को मजबूर, गांव के चौपाल में लगता है स्कूल, पिछले 7 वर्षों से इसी हालत में पढ़ने को मजबूर हैं मासूम बच्चे और चैन की नींद सोया हुआ है विभाग.
पढ़ेगा इंडिया तो बढ़ेगा इंडिया, इस विजन को लेकर केंद्र और राज्य सरकार लगातार शिक्षा क्षेत्र में जरूरी बदलाव कर रही है. अच्छी और बेहतर शिक्षा हर बच्चे तक पहुंचे इसके लिए तमाम दावे और वादे भी किए जा रहे हैं. यहां तक कि नई शिक्षा नीति को भी लागू करने की बात सरकार द्वारा की जा रही है. स्कूल ड्रॉप आऊट को सुधारने के लिए शिक्षा विभाग कसरत करने में लगा है.
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लेकिन, इसके विपरित फतेहाबाद के गांव बड़ोपल में एक ऐसा स्कूल भी हैं, जिसकी न तो अपनी कोई बिल्डिंग है न ही बच्चों के बैठने के लिए कमरे, सर्दी हो गर्मी, धूप हो या बरसात मासूम बच्चे खुले आसामन के नीचे पेड़ की छांव में बैठ कर शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर हैं. वहीं स्कूल के बाहर ताश खेलने वालों का जमघट रहता है. गांव का यह प्राथमिक विद्यालय फिलहाल गांव की हरिजन चौपाल में चलाया जा रहा है.
स्कूल की हालत अगर देख लेंगे तो आप भी दंग रह जाओगे. बच्चों के पानी-पीने के लिए बनाए गए शैड के नीचे कक्षा लग रही है. स्कूल के प्रांगण में लगे पीपल के पेड़ के नीचे टाट-पटी बिछा कर कक्षाएं लगाई जा रही हैं. हरिजन चौपाल में चल रहे इस स्कूल में केवल दो कमरे ही हैं, जिसमें से एक में मिड-डे मिल का सामान रखा है तो दूसरे में स्कूल मुख्याध्यापक का कार्यालय है.
करीब 150 से अधिक की विद्यार्थियों की संख्या वाले इस स्कूल की हालत क्या होती होगी अंदाजा लगाना कोई मुश्किल काम नहीं है. ऐसा ही नहीं है कि विभाग को इस स्कूल की हालत के बारे में पता नहीं है. स्कूल पिछले 7 वर्षों से इसी हालत में है. दरअसल, गांव के प्राथमिक स्कूल के पास अपनी शानदार इमारत थी.
मगर गांव में केंद्रीय विद्यालय की स्थापना के बीच इस शर्त पर स्कूल केंद्रीय विद्यालय को सौंप दिया गया कि 2 वर्षों के भीतर केंद्रीय विद्यालय अपनी इमारत का निर्माण करवा लेगा, मगर सरकारी कार्यों की रफ्तार जगजाहिर है, केवल कागजों में दौड़ती योजनाओं के आगे स्कूल निर्माण का कार्य शुरु ही नहीं हो पाया, अब हालत यह हो गई है कि केंद्रीय विद्यालय, प्राथमिक विद्यालय की इमारत खाली करने को तैयार नहीं है और प्राथमिक विद्यालय के मासूम बच्चे विपरित परिस्थितियों में पढ़ने को मजबूर हो रही हैं.
स्कूल प्रशासन का कहना है कि इस बारे में कई बार विभाग और प्रशासन से बात की जा चुकी है, मगर कोई हल नहीं निकल रहा है. वहीं शिक्षा विभाग के जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी का कहना है कि शिक्षा विभाग बच्चों की परेशानी को देखते हुए वैकल्पिक व्यवस्था करने में लगा हुआ है और शीघ्र ही बच्चों को किसी अन्य जगह शिफ्ट कर दिया जाएगा. बहरहाल, 7 वर्षों के बाद अब शिक्षा विभाग की नींद खुली है अब देखना होगा कि इस स्कूल और बच्चों के अच्छे दिन कब आएंगे.
(इनपुटः अजय मेहता)