Haryana News: हरियाणा के महेंद्रगढ की रहने वाली गरिमा को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित किया है. 9 वर्षीय गरिमा यादव 3 साल की उम्र से ही झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को पढ़ाने और उनके लिए पाठ्य सामग्री देने लग गई थी.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

गरिमा एक दृष्टिबाधित लड़की है, जो साक्षर पाठशाला नामक अपनी पहल के माध्यम से वंचित बच्चों को शिक्षा प्रदान कर रही है. वह अब तक 1000 गरीब बच्चों को पाठ्य सामग्री वितरित कर चुकी है. गरिमा को इसकी प्रेरणा उसके पिता और दिल्ली में अध्यापक डॉ. नरेंद्र से मिली.


गरिमा फिलहाल 9 साल की हैं तथा चौथी क्लास में पढ़ती हैं. वह आम बच्चों से अलग है,  क्योंकि गरिमा बचपन से ही दृष्टि बाधित हैं, मगर उसका हौसला बहुत अधिक है. यही कारण है कि वो अब लैपटॉप भी आसानी से चला लेती हैं. मंडी अटेली से करीब 8 किलोमीटर आगे नावदी गांव निवासी गरिमा यादव का जन्म नारनौल के एक निजी अस्पताल में हुआ था.


जन्म के समय से ही गरिमा दृष्टि बाधित है. उनके पिता डॉ. नरेंद्र दिल्ली में अध्यापक के पद पर कार्यरत हैं. वही गरिमा की मां ब्रेल एक्सपर्ट हैं. इसलिए गरिमा 3 साल की उम्र के बाद दिल्ली के ब्लाइंड स्कूल में पढ़ने लग गई थी. पिता से गरिमा को बच्चों को पढ़ाने की प्रेरणा मिली.


वहीं, उनके पिता शुरू से ही सामाजिक कार्यों में रुचि रखते थे. वो झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को पढ़ाने भी जाते थे. यहीं से गरिमा में भी बच्चों को पढ़ाने की प्रेरणा मिली, जिसके बाद गरिमा ने भी अपने पिता के सामने इन बच्चों को पढ़ाने और इनको पढ़ाई के लिए पाठ्य सामग्री वितरित करने की इच्छा जताई.


इसके बाद गरिमा ने भी अपनी पढ़ाई के साथ साथ समय समय पर नारनौल, अटेली और रेवाड़ी की ओर रहने वाले झुग्गियों के बच्चों को पढ़ाना और उनको पाठ्य सामग्री देना शुरू कर दिया. गरिमा अब तक 100 इवेंट कर करीब एक हजार बच्चों को पाठ्य सामग्री वितरित कर चुकी हैं.


गरिमा की इस उपलब्धि पर उनके गांव नावदी में काफी खुशी का माहौल है. ग्रामीणों ने बताया कि गरिमा की इस उपलब्धि पर होने गर्व है गरिमा ने केवल अपने माता-पिता का ही नहीं बल्कि गांव जिला और प्रदेश का नाम भी पूरे देश में रोशन किया है. ग्रामीणों ने कहा कि गरिमा भले ही आंखों से दृष्टि बाधित हो, लेकिन उसने अपनी बड़ी सोच के कारण बहुत बड़ा मुकाम हासिल किया है.


ग्रामीण अशोक नावदी ने बताया कि बेटी गरिमा बचपन से ही सामाजिक कार्यों में जुड़ी रही. उनके पिताजी एक शिक्षक होने के साथ-साथ समाजसेवी की है और उन्होंने यहां आस-पास के इट भट्टों पर रहने वाले बच्चों को कई बार पाठ्य सामग्री वितरित की थी और अब यही काम दिल्ली में रहकर कर रहे हैं.


(इनपुटः कमरजीत विर्क सिंह)