Cancer Research: एक ब्लड टेस्ट से हो सकेगी 50 तरह के कैंसर की पहचान, लोग नहीं गंवाएंगे जान
Cancer Research: भारत में हर साल कैंसर के मरीज तेजी से बढ रहे हैं. ICMR के आंकड़ों के मुताबिक देश में कैंसर से पीड़ित लोगों की अनुमानित संख्या करीब 25 लाख है. 7 लाख से अधिक कैंसर के नए मरीज प्रतिवर्ष आ रहे हैं और इससे होने वाली मौतों की संख्या 5,56,400 है.
Cancer Reserch: कैंसर का नाम सुनते ही हम सभी के मन में एक डर बैठ जाता है, वो है मौत का. इस जानलेवा बीमारी की सबसे बड़ी परेशानी ये है कि ज्यादातर मामलों में मरीज को कैंसर के बारे से तब पता चलता है, जब इसका इलाज लगभग नामुमकिन हो जाता है या कई मामलों में आखिरी स्टेज में पहुंचकर मरीज को बताया जाता है कि अब उसके पास जिंदगी के लिए चंद दिन ही बचे हैं. इसलिए दुनियाभर में इस पर रिसर्च चल रही है कि क्या कोई तरीका है, जिससे कैंसर को वक्त रहते पहचाना जा सके और बिना ज्यादा चीरफाड़ किए कैंसर इसकी जांच हो सके.
इस मामले में अब अमेरिका के हाथ बड़ी कामयाबी लगी है. शिकागो में कैंसर पर आयोजित सबसे बड़ी कांफ्रेंस में एक रिसर्च पेपर शेयर किया गया, जिसमें दावा किया गया है कि एक ब्लड टेस्ट से 50 तरह के कैंसर का पता लगाया जा सकता है. उससे भी बड़ी बात ये है कि ये टेस्ट उन मरीजों में कैंसर की पहचान कर सकता है, जिन्हें अभी तक पता नहीं है कि उन्हें कैंसर है या नहीं.
25 लाख लोग कैंसर की चपेट में
भारत में हर साल कैंसर के मरीज तेजी से बढ रहे हैं. ICMR के आंकड़ों के मुताबिक देश में कैंसर से पीड़ित लोगों की अनुमानित संख्या करीब 25 लाख है. 7 लाख से अधिक कैंसर के नए मरीज प्रतिवर्ष आ रहे हैं और इससे होने वाली मौतों की संख्या 5,56,400 है.
कैंसर के कारण (Reason Of Cancer)
हमारे शरीर में मौजूद सेल्स रोजाना मरते हैं और नए सेल्स यानी कोशिकाएं पैदा होती रहती हैं. कैंसर तब होता है, जब शरीर में कोशिकाएं (Cells) असामान्य रूप से बढ़ने और विभाजित होने लगती हैं. कैंसर की सबसे बड़ी वजहों में खराब लाइफस्टाइल वाली आदतें शामिल हैं जैसे धूम्रपान, तंबाकू और शराब का सेवन, मोटापा, शरीर में पोषण की कमी और एक्सरसाइज न करना. डॉक्टरों के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है कैंसर को पहचानना और यह पता लगाना कि कैंसर शरीर के किन-किन हिस्सों में फैला है.
DNA की संरचना पर किया गया अध्ययन
आज से लगभग एक वर्ष पहले वैज्ञानिकों ने ब्लड टेस्ट वाली तकनीक पर काम करना शुरू किया. दरअसल हमारे शरीर के सेल्स जब मरते हैं तो उन सेल्स में मौजूद डीएनए कई बार खून में मिल जाते हैं. इन्हें Cell Free DNA कहा जाता है. वैज्ञानिकों ने ब्लड टेस्ट के जरिये इन डीएनए की सीक्वेंसिंग शुरू की और ये चेक करने की कोशिश की कि क्या ऐसे DNA भी हैं जो अपनी शक्ल या व्यवहार बदल रहे हैं यानी म्यूटेट हो रहे हैं. ऐसा आमतौर पर किसी गंभीर बीमारी के मामले में ही होता है कि DNA की संरचना या आदतें बदल जाएं.
वैज्ञानिकों ने ऐसे DNA पहचानने की कोशिश की जिसमें ट्यूमर वाली ग्रोथ का पता चल सके. इसके लिए लेटेस्ट मशीनों के जरिये next generation sequencing की गई. शुरुआती रिसर्च में डॉक्टरों ने स्वस्थ लोगों के रैंडम सैंपल लिए. 6000 लोगों के सैंपल में से 92 लोगों में भविष्य में कैंसर होने का शक जताया. लंबे समय के फॉलोअप में पता चला कि इन 92 लोगों में से 35 को सच में कैंसर पाया. इन नतीजों के बाद वैज्ञानिकों ने दिशा बदली। अब उन्होंने ऐसे 5461 लोगों के सैंपल लिए, जिनमें ऐसे लक्षण थे. उन्हें कैंसर पहचानने वाले टेस्ट कराने की सलाह दी गई. वैज्ञानिकों ने ब्लड सैंपल के आधार पर 328 लोगों में कैंसर होने की पुष्टि की. इन मरीजों के रुटीन टेस्ट भी हो रहे थे. कैंसर के लिए किए जाने वाले टेस्ट जैसे बायोप्सी और PET Scan में 363 में कैंसर की पुष्टि हुई थी यानी इस बार कुछ पॉजिटिव मरीज ब्लड टेस्ट में पकड़ में नहीं आ सके, लेकिन कोई गलत नतीजा नहीं ब्लड टेस्ट ने नहीं दिया. 85 प्रतिशत मरीजों में ब्लड टेस्ट के आधार पर वैज्ञानिकों ने ये भी बता दिया कि शरीर के किस हिस्से में कैंसर फैला हुआ है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने कैलिफोर्निया की कंपनी ग्रेल के साथ मिलकर ये रिसर्च की है.
समय पर हो सकेगी कैंसर की पहचान
भारत में सरकारी और निजी मिलाकर गिनती के 5-6 अस्पताल ऐसे संवेदनशील ब्लड टेस्ट कर रहे हैं. दिल्ली में सर गंगाराम अस्पताल के रिसर्चर इस दिशा में काम कर रहे हैं. हेमेटोलॉजी की प्रमुख डॉ ज्योति कोतवाल के मुताबिक आने वाले वर्षों में कैंसर को सही समय पर पहचानने के लिए लंबा इंतजार नहीं करना होगा. इस तरह के ब्लड टेस्ट भारत में भी किए जाएंगे।
बीमारी की पहचान करना अभी बहुत महंगा
अभी भारत में जो मशीनें हैं वो कुछ तरह के कैंसर की पहचान इसी सीक्वेंसिंग के आधार पर कर पा रही हैं, लेकिन ये तकनीक बहुत महंगी है और चुनिंदा अस्पतालों में ही मौजूद है. American Society of Clinical Oncology के वैज्ञानिकों के मुताबिक इस दिशा में थोड़ी और रिसर्च के जरिये नतीजे और पुख्ता किए जा सकते हैं, जिसके बाद इसे दुनियाभर में मरीजों के लिए अपनाया जा सकता है.