आजादी का अमृत महोत्सव: हरियाणा की उन शेरनियों की कहानी, जिनसे थर-थर कांपते थे अंग्रेज
देश की आजादी के लिए पुरुषों के साथ महिलाएं भी कंधे से कंधा मिलाकर आजादी की जंग में शामिल हुईं. हरियाणा की कई वीरांगनाओं ने आंदोलन में शामिल होकर जेल की सजा काटी.
Independece Day 2022: भारत देश की आजादी के लिए संघर्ष करने वाले लोगों की लिस्ट लंबी है. 1857 की क्रांति के बाद समूचे देश में आजादी की ज्वाला धधक उठी थी, इसमें देश के पुरुषों के साथ महिलाओं ने भी कंधे से कंधा मिलाकर आजादी में अपना योगदान दिया. आज के इस आर्टिकल में हम आपको स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाली हरियाणा की उन वीरांगनाओं की कहानी बताने वाले हैं, जिन्होंने ये साबित करके दिखाया कि महिलाएं किसी से कम नहीं है.
इनका रहा प्रमुख योगदान
आजादी के आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाने वाली महिलाओं में- चांदबाई, तारावती, गायत्री देवी, कस्तूरी देवी, लक्ष्मीबाई आर्य, मोहिनी देवी, मन्नोदेवी, सोहाग रानी, सोमवती, शन्नो देवी, कस्तूरीबाई का महत्वपूर्ण योगदान रहा.
चांदबाई और तारावती
आजादी के लिए आंदोलन करने वाली महिलाओं में सबसे पहला नाम चांदबाई का आता है, वो हिसार के सत्याग्रही बाबू श्यामलाल की पत्नी थीं, उन्होंने कटला रामलीला मैदान हिसार में युद्व विरोधी नारे लगाए थे, इस दौरान उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया. वो हिसार की पहली महिला थी जिन्होंने असहयोग आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. अपनी सास के कदम से कदम मिलाकर चलने वाली तारावती ने भी गर्भवस्था में विरोध प्रदर्शन में भाग लिया था.
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गायत्री देवी और कस्तूरी देवी
गायत्री देवी ने 1930 के नमक सत्याग्रह आंदोलन में महिलाओं का नेतृत्व किया था, इसी साल रोहतक की कस्तूरी देवी ने भी कांग्रेस की सदस्यता लेकर आंदोलन में एक सक्रिय सदस्य के रूप में अपनी भूमिका निभाई थी. जेल सामने धरना प्रदर्शन से लेकर महिलाओं को आजादी की जंग के लिए घर की दहलीज से बाहर लाने तक कस्तूरी देवी ने कई कार्यों में अपना महत्वपूर्ण योगदान निभाया.
सोमवती और मोहिनी देवी
1930 में नमक सत्याग्रह में भाग लेने वाले लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था, इसमें सोमवती और मोहिनी देवी ने सक्रिय भूमिका निभाते हुए आजादी की जंग के लिए जेल भी गईं.
लक्ष्मीबाई आर्य और सोहाग रानी
रोहतक की लक्ष्मीबाई आर्य ने अपने पति की मौत के बाद अपना सारा जीवन देश की आजादी के लिए समर्पित कर दिया. महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम में कपड़े की दुकान पर पिकेटिंग करते हुए पकड़े जाने पर इन्हें 6 महीने की सजा दी गई थी. जेल से वापस आते ही लक्ष्मीबाई ने आजादी की जंग फिर शुरुकर दी. सोहाग रानी सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया. भगत सिंह की फांसी का विरोध करने पर इन्हें 9 महीने की सजा सुनाई गई थी.