Live-in Relationship: लिव-इन कोई अपराध नहीं, इस दौरान जन्मे बच्चे और महिलाओं को मिले हैं ये अधिकार
जब कोई लड़का और लड़की बिना शादी के साथ लंबे समय तक एक साथ एक ही घर में रहते हैं तो उसे लिव-इन रिलेशनशिप कहते हैं. मगर आज के समय में लिव-इन रिलेशनशिप आम बात है. खासकर के बड़े शहरों में, लेकिन इन दिनों लिव-इन रिलेशनशिप चर्चाओं का विषय बना हुआ है.
Live-in Relationship: जब कोई लड़का और लड़की बिना शादी के साथ लंबे समय तक एक साथ एक ही घर में रहते हैं तो उसे लिव-इन रिलेशनशिप कहते हैं. मगर आज के समय में लिव-इन रिलेशनशिप आम बात है. खासकर के बड़े शहरों में, लेकिन इन दिनों लिव-इन रिलेशनशिप चर्चाओं का विषय बना हुआ है. वजह है दिल्ली का श्रद्धा हत्याकांड. क्योंदि श्रद्धा और उसका बॉयफ्रेंड लिव-इन रिलेशनशिप में रहते थे और आफताब अमीन पूनावाला पर ही श्रद्धा के हत्या का आरोप लगा है.
खबरों की मानें तो, 18 मई को शादी की बात पर दोनों में झगड़ा हुआ, जिसके बाद आफताब ने श्रद्धा की हत्या कर दी. हत्या के बाद आफताब ने श्रद्धा के शव के 35 टुकड़े कर दिल्ली के अलग-अलग जगह जाकर फेंक दिए, हत्या के 6 महीने बाद आफताब को पकड़ा गया और पुलिस जांच में जुटी हुई है. एक रिपोर्ट के मुतबिक, 2018 के एक सर्वे में सामने आया था कि 80% लोगों ने लिव-इन रिलेशनशिप को सपोर्ट किया था.
वहीं, इनमें से 26% लोगों ने कहा था कि अगर मौका मिला तो वो भी लिव-इन रिलेशन में रहेंगे. बता दें कि भारत में लिव-इन रिलेशनशिप का कल्चर भी तेजी के साथ बढ़ता जा रहा है. वैसे तो हमारे देश में लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर किसी भी तरह का कोई कानून नहीं बनाया गया है, लेकिन लिव-इन रिलेशनशिप में रहना कोई अपराध नहीं है. मगर सुप्रीम कोर्ट और अदालतों के फैसलों ने लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता दे रखी है.
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लिव-इन में रहने के अधिकार और लिव-इन में रहना अपराध क्यों नहीं?
आज भी समाज लिव-इन रिलेशनशिप यानी की शादी से पहले एक साथ रहने वाले लड़के-लड़की को गलत नजरों से देखते है. दोनों के चरित्र पर लोग सवाल उठाते है. मगर आज से 16 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि 'बालिग होने के बाद व्यक्ति किसी के साथ भी रहने या शादी करने के लिए आजाद है.' और कोर्ट के फैसले के बाद ही लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता मिली थी. कोर्ट ने अपने फैसले में आगे कहा था कि 'कुछ लोगों की नजर में ये अनैतिक हो सकता है, लेकिन ऐसे रिलेशन में रहना अपराध के दायरे में नहीं आता.'
इसी के साथ अगर कोई शादीशुदा व्यक्ति बिना तलाक के किसी और के साथ लिव-इन में रहता है तो इसे गैर-कानूनी माना जाता है. मगर बीते साल पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने एक मामले में फैसला लेते हुए कहा था कि शादीशुदा होने के बावजूद लिव-इन में रहना कोई जुर्म नहीं है और इससे भी फर्क नहीं पड़ता कि पुरुष ने तलाक की प्रक्रिया शुरू की है या नहीं.
जानें, क्या हैं लिव-इन में रहने के महिलाओं के अधिकार?
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (NFHS-5) की जारी की गई रिपोर्ट में बताया गया था कि 16 फीसदी से भी ज्यादा महिलाएं अपने बॉयफ्रेंड या एक्स की यौन हिंसा का शिकार हो चुकी है. यौन हिंसा तब होती है जब किसी लड़की को उसकी मर्जी के खिलाफ संबंध बनाने के लिए मजबूर किया जाता है. रिपोर्ट में ये भी खिलासा हुआ था कि 0.2 फीसदी महिलाओं ने मौजूदा बॉयफ्रेंड और 0.1 फीसदी ने एक्स की शारीरिक हिंसा का सामना किया था.
कोर्ट का इस मामले में कहना है कि अगर कोई कपल शादी के बिना पति-पत्नी की तरह कई सालों से साथ रह रहा है तो पुरुष क्रूर हो सकता है और इसलिए अदालत ने लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को घरेलू हिंसा कानून से संरक्षण दिया है. इतना ही नहीं लिव-इन में रहने वाली लड़की के साथ किसी भी तरह का गुजारा हो रहा है तो वो अदालत या फिर पुलिस का दरवाजा खटखटा सकती है.
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क्योंकि, लिव-इन में रहने वाली महिला को भी शादीशुदा औरत की तरह गुजारा भत्ता पाने का हक है और अगर उसका पार्टनर उसकी सहमति के बगैर उसे छोड़ देता है तो वो कानून गुजारा भत्ता पाने का अधिकार रखती है. जानकारी के मुताबिक, 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला को crpc की धारा 125 के तहत भरण पोषण पाने का अधिकार है और महिला को ये कहकर मना नहीं किया जा सकता कि उसने कोई वैध शादी नहीं की थी.
पैतृक संपत्ति में बच्चे को भी अधिकार
इसी के साथ कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि लिव-इन में पैदा होने वाले बच्चों का पिता की पैतृक संपत्ति में पूरा अधिकार है. 2022 में एक केस में कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया था कि अगर एक महिला और पुरुष सालों तक पति-पत्नी की तरह साथ रह रहे हैं, तो माना जा सकता है कि दोनों में शादी हुई होगी और इस आधार पर उनके बच्चे का पैतृक संपत्ति पर भी अधिकार होगा. पैतृक संपत्ति पर उसका भी उतना ही अधिकार होगा, जितना वैध शादी से पैदा हुई संतान का होता है.
लिव-इन कब और कैसे माना जाएगी?
2013 में सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप से जुड़ी गाइडलाइंस जारी करते हुए कहा था कि लिव-इन रिलेशनशिप तभी ही कहलाएगा जब एक लड़का और लड़की काफी लंबे समय से साथ रहे हों. लड़का और लड़की एक ही घर में रह रहे हों, एक ही घर की चीजों का इस्तेमाल कर रहे हों, दोनों बालिग हों. इतना ही नहीं अगर लड़की की उम्र 18 साल और लड़के की 21 साल से ज्यादा है तो वो लिव-इन रिलेशन में रह सकते हैं.
2010 में सुप्रीम कोर्ट ने D वेलूसामी बनाम D पतचईअम्मल के मामले में लिव-इन रिलेशनशिप की शर्तें बताते हुए कोर्ट ने कहा था कि ऐसे रिश्तों में रहने वालों को कपल के तौर पर पेश आना चाहिए और उनकी उम्र शादी के लिहाज से कानूनी तौर पर वैध होनी चाहिए. कोर्ट ने आगे कहा कि अगर एक पुरुष किसी महिला को नौकर के तौर पर रखता है, हर माह एक तय रकम देता है और दोनों के बीच सेक्सुअल रिलेशन है तो उससे लिव-इन रिलेशनशिप नहीं माना जाएगा और ऐसे मामले में घरेलू हिंसा कानून 2005 भी लागू नहीं होगा.