Nuh News: आज पूरे देश में मुहर्रम का त्योहार मनाया जा रहा है. वहीं नूंह जिले के पुनहाना खंड के गांव बिछोर में भी मुहर्रम को लेकर सभी तैयारी पूरी कर ली गई है. बिछोर गांव के लोगों ने ताजिया को तैयार कर लिया गया है. बिछोर गांव में पिछले 100 साल से मुहर्रम के त्योहार पर ताजिया का जुलूस निकाला जाता है. 


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क्यों मनाया जाता है मुहर्रम 
मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना माना जाता है. इसी महीने से इस्‍लाम धर्म के नए साल की शुरुआत होती है. मुहर्रम महीने के 10वें दिन हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मातम मनाया जाता है. इस दिन हजरत इमाम हुसैन के अनुयायी खुद को तकलीफ देकर इमाम हुसैन की याद में मातम मनाते हैं.


मुहर्रम के दिन रखा जाता है रोजा
इमाम हुसैन और उनके अनुयायियों की शहादत की याद में दुनियाभर में शिया मुस्लिम मुहर्रम मनाते हैं. इमाम हुसैन पैगंबर मोहम्मद के नाती थे, जो कर्बला की जंग में शहीद हुए थे. इस महीने का 10वां दिन बहुत ही खास माना जाता है. इस दिन को आशूरा के रूप में मनाया जाता हैं. आशूरा को मुस्लिम समुदाय के लोग मातम के रूप में मनाते हैं. इस दिन लोग रोजा भी रखते हैं. 


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मुहर्रम का इतिहास 
इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, आज से 1400 साल पहले कर्बला की लड़ाई में मोहम्मद साहब के नवासे (नाती) हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 साथी शहीद हुए थे. ये लड़ाई इराक के कर्बला में हुई थी. लड़ाई में इमाम हुसैन और उनके परिवार के छोटे-छोटे बच्चों को भूखा-प्यासा शहीद कर दिया गया था. इसलिए मोहर्रम में सबीले लगाई जाती हैं, पानी पिलाया जाता है. भूखों को खाना खिलाया जाता है.


नूंह के सिर्फ बिछोर गांव में मनाया जाता है मुहर्रम 
कर्बला की लड़ाई में इमाम हुसैन ने इंसानियत को बचाया था, इसलिए मुहर्रम को इंसानियत का महीना माना जाता है. वही नूंह के टाई गांव में पहले मुहर्रम का त्योहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता था, लेकिन पिछले 30-35 सालों से मोहरम गांव में नहीं मनाया जाता है. इसके पीछे आपसी मतभेद गांव के लोगों ने बताया. वहीं मुहर्रम को लेकर मुस्लिम धर्मगुरु का कहना है कि यह इस्लामी कैलेंडर के हिसाब से 10 में दिन मनाया जाता है. अब मेवात में सिर्फ बिछोर गांव में ही मुहर्रम मनाया जाता है, लेकिन धीरे-धीरे यह परंपरा खत्म होती जा रही है.


INPUT: ANIL MOHANIA


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