Opposition Meeting: पटना में सीएम नीतीश कुमार के आवास पर हुई विपक्ष की बैठक में अध्यादेश को लेकर कांग्रेस ने एक बार फिर चुप्पी साध ली, जिसके बाद दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल राजनीतिक दलों की प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल नहीं हुए. बाद में आम आदमी पार्टी की ओर से एक बयान जरी किया गया. पार्टी का कहना है कि अध्यादेश पर जब तक कांग्रेस अपनी राय स्पष्ट नहीं करती, तब तक विपक्ष की किसी भी बैठक में आप का शामिल होना मुश्किल है.


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पार्टी ने कहा है कि केंद्र सरकार के काले अध्यादेश का उद्देश्य न केवल दिल्ली में निर्वाचित सरकार के लोकतांत्रिक अधिकारों को छीनना है, बल्कि यह भारत के लोकतंत्र और संवैधानिक सिद्धांतों के लिए भी एक खतरा है. यदि इसे चुनौती न दी गई, तो यह खतरनाक प्रवृत्ति अन्य सभी राज्यों में भी अपनाई जा सकती है. इसका परिणाम यह होगा कि जनता द्वारा चुनी गई दूसरे राज्य सरकारों से भी सत्ता छीनी जा सकती है, इसलिए इस काले अध्यादेश को राज्यसभा में पास होने से रोकना बहुत ही जरूरी है.



पटना की बैठक में समान विचारधारा वाली 15 पार्टियां शामिल हुईं. इनमें से 12 का प्रतिनिधित्व राज्यसभा में है. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को छोड़कर राज्यसभा में प्रतिनिधित्व वाली अन्य सभी 11 दलों ने काले अध्यादेश के खिलाफ अपना रुख साफ कर दिया है और इन पार्टियों ने कहा है कि वे राज्यसभा में अध्यादेश का विरोध करेंगी. कांग्रेस लगभग सभी मुद्दों पर एक स्टैंड लेती है, लेकिन कांग्रेस ने अभी तक काले अध्यादेश को लेकर अपना रुख सार्वजनिक नहीं किया है। वहीं, कांग्रेस की दिल्ली और पंजाब यूनिट्स ने घोषणा की है कि पार्टी को इस मुद्दे पर मोदी सरकार का समर्थन करना चाहिए.


आज पटना में समान विचारधारा वाली पार्टी की बैठक के दौरान कई दलों ने कांग्रेस से काले अध्यादेश की खुले तौर पर निंदा करने का आग्रह किया, लेकिन कांग्रेस ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. कांग्रेस की ये चुप्पी उसके इरादों पर संदेह पैदा करती है. व्यक्तिगत चर्चाओं में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने संकेत दिया है कि उनकी पार्टी अनौपचारिक या औपचारिक रूप से राज्यसभा में अध्यादेश पर मतदान की प्रकिया से दूर रह सकती है. 


अध्यादेश के मुद्दे पर कांग्रेस को मतदान से दूर रहने से भाजपा को आगे भी देश के लोकतंत्र पर हमला करने में काफी मदद मिलेगी. यह काला अध्यादेश संविधान और संघवाद विरोधी होने के साथ ही पूरी तरह से अलोकतांत्रिक है. इसके अलावा यह अध्यादेश सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पलटने के साथ-साथ न्यायपालिका का भी अपमान करता है. विशेष तौर पर अध्यादेश के मुद्दे पर कांग्रेस की झिझक और टीम भावना के रूप में कार्य करने से इनकार करने से आम आदमी पार्टी के लिए किसी भी गठबंधन का हिस्सा बनना बहुत मुश्किल हो जाएगा, जिस गठबंधन में कांग्रेस भी शामिल है.


जब तक कांग्रेस सार्वजनिक रूप से काले अध्यादेश का विरोध नहीं करती है और ये घोषणा नहीं करती है कि उसके सभी 31 राज्यसभा सांसद राज्यसभा में अध्यादेश का विरोध करेंगे, तब तक आम आदमी पार्टी के लिए समान विचारधारा वाले दलों की भविष्य में होने वाली बैठकों में भाग लेना मुश्किल होगा, जिसमें कांग्रेस भी हिस्सा ले रही है. अब समय आ गया है कि कांग्रेस ये तय करे कि वो दिल्ली की जनता के साथ खड़ी है या मोदी सरकार के साथ. 


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