नई दिल्ली: देश में बेरोजगारी क्यों है, रविवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने इसका असली कारण बता दिया. उन्होंने कहा है कि श्रम के प्रति सम्मान की भावना का कम होना देश में बेरोजगारी के मुख्य कारणों में से एक है. भागवत ने कहा, सरकारी नौकरियां केवल करीब 10 प्रतिशत हैं, जबकि अन्य नौकरियां लगभग 20 प्रतिशत. दुनिया का कोई भी समाज 30 प्रतिशत से अधिक नौकरियां उत्पन्न नहीं कर सकता. उन्होंने युवाओं से अपील की कि सभी तरह के काम का सम्मान करें और नौकरियों के पीछे भागना बंद करें.


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नौकरी के पीछे भागना बंद करें 
मुंबई में आयोजित एक कार्यक्रम में मोहन भागवत ने कहा, काम के लिए चाहे शारीरिक श्रम की आवश्यकता हो या बुद्धि की, चाहे इसके लिए कड़ी मेहनत की आवश्यकता हो या सॉफ्ट स्किल की, सभी का सम्मान किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, हर कोई नौकरी के पीछे भागता है. सरकारी नौकरियां केवल करीब 10 प्रतिशत हैं, जबकि अन्य नौकरियां लगभग 20 प्रतिशत। ऐसे में लोगों को इनके पीछे भागना नहीं चाहिए.


श्रम को नहीं मिलता अब भी सम्मान 
आरएसएस के सरसंघचालक ने कहा कि जिस काम में शारीरिक श्रम की जरूरत होती है, उसे अब भी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता है. भागवत ने कहा कि जब कोई जीविकोपार्जन करता है, तो समाज के प्रति उसकी जिम्मेदारी बनती है. जब हर काम समाज के लिए हो रहा है तो वह छोटा या बड़ा या एक-दूसरे से अलग कैसे हो सकता है. उन्होंने कहा कि ईश्वर की दृष्टि में हर कोई समान है और उसके सामने कोई जाति या सम्प्रदाय नहीं है. 


देश में स्किल की कोई कमी नहीं 
उन्होंने यह भी कहा कि देश में ऐसे बहुत से किसान हैं जो खेती से बहुत अच्छी आय अर्जित करने के बावजूद विवाह करने के लिए संघर्षरत हैं.  भागवत ने कहा कि भारत की विश्व में स्थिति ‘विश्वगुरु’ बनने के अनुकूल है. देश में कौशल की कोई कमी नहीं है, लेकिन हम दुनिया में प्रमुखता हासिल करने के बाद अन्य देशों की तरह नहीं होंगे.


संघ प्रमुख ने कहा, ‘‘इस्लामी आक्रमण से पहले अन्य हमलावरों ने हमारी जीवनशैली, हमारी परंपराओं और चिंतन प्रक्रिया को प्रभावित नहीं किया, लेकिन मुस्लिम हमलावरों का एक तर्क था. पहले, उन्होंने हमें अपनी ताकत के दम पर पराजित किया और फिर उन्होंने हमें मनोवैज्ञानिक दृष्टि से दबाया. उन्होंने कहा कि  डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर जैसे जाने माने लोगों ने समाज में व्याप्त छुआछूत का विरोध किया. अस्पृश्यता से परेशान होकर, डॉ. अंबेडकर ने हिंदू धर्म छोड़ दिया लेकिन उन्होंने किसी अन्य धर्म को नहीं अपनाया और गौतम बुद्ध द्वारा दिखाए गए मार्ग को चुना. उनकी शिक्षाएं भारत की सोच में भी बहुत गहराई तक समाई हुई हैं.