Savitribai Phule Jayanti 2024: दिल्ली के सामाजिक कल्याण और एससी/एसटी (अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति) कल्याण मंत्री राज कुमार आनंद ने अपने निवास स्थान पर सामाजिक बुद्धिजीवियों और बहुजन समाज के लोगों के साथ माता सावित्री बाई फुले का जन्मदिवस धूम-धाम से मनाया. इस कार्यक्रम में पूर्व विधायक श्रीमती वीणा आनंद सहित कई अन्य लोग शामिल हुए. 


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डॉ. सीपी सिंह ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए कहा कि माता सावित्री बाई फुले ने जिस दौर में महिलाओं के पढ़ने-लिखने के द्वार खोले उस दौर में न आज के जैसे साधन थे न ही संसाधन. फिर भी फुले दंपति ने फातिमा शेख के साथ मिलकर महिलाओं के लिए पहला स्कूल खोला.ये सावित्री बाई फुले की ही देन है कि आज की महिलाएं इस काबिल हैं कि वो पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं. 


मंत्री राज कुमार आनंद ने एक शेर के माध्यम से अपनी बात शुरू करते हुए कहा कि 'सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जाना' 19 शताब्दी तक महिलाओं के पढ़ने लिखने के सभी मार्ग बंद थे. वह अपने पढ़ने-लिखने के सपनों को मार चुकी थी. जब अशिक्षा, छुआछूत, सतीप्रथा, बाल- विवाह जैसी कुरीतियों को महिलाएं नियति मानकर चुपचाप झेला करती थीं. उस दौर में महिलाओं के लिए अगर पहली बार किसी ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के नारे को सशक्त तौर पर सार्थक कर दिखाया तो वह हैं वीरांगना माता सावित्री बाई फुले. यह सब माता सावित्री बाई फुले ने तब संभव कर दिखाया जब पेशवाई संस्कृति चरम पर थी, बाल विवाह की परंपरा समाज में व्यापकता से फैली थी. उस समय सावित्री बाई फुले ने अपनी आवाज उठाई और नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया.


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बाल विवाह और वेश्यावृति के कारण महिलाओं पर होने वाले ज़ुल्म के खिलाफ माता सावित्री बाई फुले ने आवाज उठाई. उन्होंने कहा कि जिस विधवा का कोई नहीं उसके लिए सावित्री बाई है. छोटी उम्र में मां बनने वाली बच्चियों का जीवन बचाया और उन्हें पढ़ने लिखने के लिए प्रेरित किया.


सावित्रीबाई ने उस दौर में महिलाओं के लिए स्कूल खोले, जब उन्हें खुद पढ़ने-लिखने की मनाही थी. हौसलों से बुलंद माता सावित्री बाई फुले में स्कूल में पढ़ाने जाती तो उनके ऊपर गांव वाले पत्थर और गोबर फेंकते, फिर भी वह आगे बढ़ती रहीं. अपनी बहादुरी से उन्होंने देश की आधी आबादी के अधिकारों और शिक्षा के द्वार खोले व उन्हें मुख्यधारा में ला खड़ा किया. ऐसी समाज सेविका जिन्होंने सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई, क्या उनके योगदान और बलिदान को हम सच्ची श्रद्धांजलि दे पाए? क्या हम उनके सपनों का भारत बना पाए?


अगर माता सावित्री बाई यह सब संभव कर पाई तो उनकी इस हिम्मत के पीछे सिर्फ एक शख्स थे उनके पति ज्योतिबा फुले, जिन्होंने पत्नी को सही मायनों में अपना हमसफर समझा और अपना राजनैतिक, शैक्षणिक राजदार माना. मेरी बहनों और माताओं से यही विनती है कि यदि आप सावित्री बाई जैसी हिम्मत और जज्बा अपने अंदर पैदा कर लें और पुरुष महात्मा फुले जैसा समर्पण खुद से जीवन में आत्मसात कर लें तो हम माता सावित्री बाई फुले और बाबासाहब अंबेडकर के सपनों का भारत बना पाएंगे.


इस दौरान निगम पार्षद रोशन लाल सागर ने सबको संगठित रहकर संविधान बचाने की बात कही. उन्होंने कहा कि जैसे माता सावित्री बाई फुले का साथ फातिमा शेख ने दिया वैसे ही साथ की आज हम सभी को जरूरत है. जब तक हम जातियों में बंटकर बिखरे रहेंगे तब तक हमारा शोषण होता रहेगा.