World Cotton Day: जानें विश्व में सबसे ज्यादा कपास कहां पैदा होता है?
वर्ल्ड कॉटन डे का आयोजन पहली बार साल 2019 में किया गया था. इस दिन को संयुक्त राष्ट्र , विश्व खाद्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र व्यापार व विकास सम्मेलन, अंतरराष्ट्रीय व्यापार केंद्र तथा अंतरराष्ट्रीय कपास सलाहकार समिति ने पहली बार मनाया गया था
World Cotton Day 2022: इंसान को जीवन जीने के लिए तीन अहम चीत रोटी, कपड़ा और मकान होता है. इनमें ही शामिल कपड़ा कपास से बनता है. आज कल मार्केट में कई फैब्रिक आ गए हो, लेकिन कॉटन का मुकाबला आज भी कोई नहीं कर सकता है और 7 अक्टूबर को विश्व कपास दिवस (World Cotton Day) के रूप में मनाया जाता है. इस साल के वर्ल्ड कॉटन डे की थीम कॉटन फॉर गुड (Cotton For Good) है. आइए जानते हैं इस दिन से जुड़ी कुछ खास बातें.
इस दिन को संयुक्त राष्ट्र (United Nation), विश्व खाद्य संगठन (World Food Organization), संयुक्त राष्ट्र व्यापार व विकास सम्मेलन (United Nations Conference on Trade and Development), अंतरराष्ट्रीय व्यापार केंद्र (International Trade Center) तथा अंतरराष्ट्रीय कपास सलाहकार समिति (International Cotton Advisory Committee) द्वारा पहली बार मनाया गया था . वर्ल्ड कॉटन डे का आयोजन पहली बार साल 2019 में किया गया था. इसको मनाने का उद्देश्य दुनियाभर में कॉटन अर्थव्यवस्थाओं के सामने आने वाली चुनौतियों को उजागर करना है.
भारत विश्व में प्रथम कॉटन प्रोड्यूसर देश
भारत दुनिया में सबसे ज्यादा कपास उत्पादन वाले देशों में से सबसे आगे है. यहां हर साल लगभग 62 लाख टन कपास पैदा होती है. दुनिया का 38 प्रतिशत कॉटन भारत में ही उगता है. भारत हर साल 6,188,000 टन कॉटन उगाने के साथ दुनिया का सबसे बड़ा कपास उत्पादक है. वहीं चीन 6,178,318 टन सालाना उत्पादन के साथ दूसरे स्थान पर है.
क्यों मनाया जाता है वर्ल्ड कॉटन डे?
वर्ल्ड कॉटन डे इंटरनेशनल कम्युनिटी और निजी क्षेत्र को बताने और कॉटन से जुडे कामों और उसके उत्पादों के प्रदर्शन के लिए एक मंच है. यह उन कामों का मेजबानी करेगा जो किसानों, प्रोसेसर, रिसर्चर्स और व्यवसायों को उजागर करती हैं
क्यों जरूरी है कॉटन?
देशभर में कॉटन का उत्पादन होता है. कॉटन का एक टन साल में 5 लोगों को रोजगार प्रदान करता है औक कपास एक ऐसी फसल है जिसको उगने के लिए ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती, सूखा पड़ने पर भी इसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. यह दुनियाभर में किसानी भूमि का सिर्फ 2.1 प्रतिशत हिस्सा है और फिर भी ये दुनिया के 27 कपड़ों की जरूरत को पूरा करता है.