`अलादीन का चिराग` नहीं रोकेगा चाइल्ड ट्रैफिकिंग, सामूहिक प्रयास से ही खत्म होगा ये सिलसिला

Child Trafficking : दिल्ली में ही पिछले माह दो नाबालिग बहनों को एक अमीर परिवार के घर से रेस्क्यू किया गया था. यहां इन बहनों से 14-14 घंटे काम करवाया जाता था और खाने के नाम पर बचा खुचा खाना मिलता था.
World Day Against Trafficking 2022 : 30 जुलाई को पूरी दुनिया वर्ल्ड डे अगेंस्ट ट्रैफिकिंग मना रही है यानी ये दिन मानव दुर्व्यापार रोकने के लिए दुनिया को जागरूक करने के लिए मनाया जाता है. पूरी दुनिया में यह घृणित व्यापार वैश्विक रूप से एक विशाल कारोबार का रूप ले चुका है. ड्रग्स और हथियारों की तस्करी के बाद यह तीसरा सबसे बड़ा कमाई वाला गैरकानूनी कारोबार है. इसका सबसे भयावह और चिंताजनक पहलू यह है कि मानव दुर्व्यापार करने वाले अपराधियों की निगाह सबसे अधिक कमजोर और समाज के शोषित वर्ग से आने वाले बच्चों पर होती है. खासकर नाबालिग लड़कियों पर.
हमारे देश में भी ह्यूमन ट्रैफिकिंग की स्थिति काफी भयानक है. इसके प्रमुख कारणों में से गरीबी और अशिक्षा भी है. बिहार, झारखंड, असम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और उत्तर प्रदेश से आए दिन चाइल्ड ट्रैफिकिंग की घटनाएं सामने आती रहती हैं. गरीब और शोषित वर्ग के बच्चों को काम और पैसों का लालच देकर दिल्ली, मुंबई, बेंगलूरु जैसे महानगरों में लाया जाता है. इसके बाद शुरू होता है शोषण और प्रताड़ना का अंतहीन सिलसिला। अधिकांश मामलों में बच्चों के गांव के ही लोग, जो ‘दलाल’ का काम करते हैं, उन्हें शहर लाकर बाल मजदूरी के दलदल में झोंक देते हैं.
कोरोनाकाल में पलायन के दौर ने चाइल्ड ट्रैफिकिंग में और अधिक इजाफा किया है. लोगों का रोजगार छिन गया और इसके चलते उनके बच्चों को भी काम करना पड़ा। वे ट्रैफिकर्स के लिए आसान शिकार बन गए. अब सवाल है कि आखिर बच्चों की ट्रैफिकिंग ही क्यों?
इसका सीधा सा जवाब है ये है कि बाल मजदूरी के रूप में सस्ता श्रम मिलता है और इनका इस्तेमाल बंधुआ मजदूरों के रूप में करना आसान रहता है. इन बच्चों को चूड़ी के कारखाने, प्लास्टिक निर्माण फैक्ट्रियों में, लौह निर्माण कारखानों में, खदानों में और खेती-बाड़ी के कामों में लगा दिया जाता है. लड़कियों की स्थिति तो और भी अधिक खौफनाक व डरावनी तस्वीर पेश करती है. इनकी ट्रैफिकिंग सबसे अधिक वेश्यावृत्ति, स्पा सेंटर, मसाज पार्लर और घरेलू नौकरानी के रूप में काम करने के लिए होती है. घरेलू नौकरानी के रूप में न केवल इनसे घंटों काम करवाया जाता है, बल्कि इनका शारीरिक शोषण भी किया जाता है. देश की राजधानी दिल्ली में ही पिछले माह दो नाबालिग बहनों को एक अमीर परिवार के घर से रेस्क्यू किया गया था. यहां इन बहनों से 14-14 घंटे काम करवाया जाता था और खाने के नाम पर बचा खुचा खाना मिलता था. बीमार होने पर दवा के नाम पर पिटाई कर दी जाती थी.
ये भी पढ़ें : नई आबकारी नीति पर घमासान के बीच पीछे हटी 'कट्टर ईमानदार' सरकार, पुरानी व्यवस्था होगी लागू
आखिर हम कैसे समाज में जी रहे हैं कि हमें अपने बच्चों के सारे अधिकार पता हैं, लेकिन गरीब या शोषित वर्ग के बच्चों के लिए हमारे मन में तनिक भी रहम नहीं आता. अगर बच्चों की ट्रैफिकिंग हो रही है तो इसके लिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैं, क्योंकि हमारे समाज के ही लोग लालच में इन्हें कम पैसे देकर अपने पास रखते हैं या फिर अवैध कामों में इनका इस्तेमाल करते हैं. देश को आजादी मिलने के बाद अंग्रेज तो चले गए लेकिन उनकी मानसिकता को हमने आत्मसात कर लिया. दूसरे के अधिकार की बात करने वाले हमारे देश को आखिर इन बच्चों की मजबूरी, बेबसी क्यों नहीं दिखाई देती ?
ऐसा भी नहीं है कि पूरे देश में इन बच्चों के लिए करने वाला कोई नहीं है. देशभर में कई नागरिक संगठन, गैरसरकारी संगठन, सिविल सोसायटी और सरकारी स्तर पर तमाम प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन समस्या इतनी विकराल हो चली है कि अब सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है. ऐसा ही एक संगठन है ‘बचपन बचाओ आंदोलन। नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित यह संगठन ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ ऐसे ही ट्रैफिकिंग का शिकार हुए बच्चों को समर्पित है. यह संगठन अभी तक एक लाख से ज्यादा बच्चों को रेस्क्यू कर चुका है.
ये भी पढ़ें : दुश्मन का हर दुश्मन दोस्त, BJP को सत्ता से बाहर करने के लिए अखिलेश यादव ने अपनाई ये रणनीति
इनमें से हजारों बच्चे अत्याधिक जोखिम भरे कार्यों में लगाए गए मिले थे. हालांकि चाइल्ड ट्रैफिकिंग रोकना किसी एक के बस की बात है. इसे पूरी तरह खत्म करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है. कैलाश सत्यार्थी पूछते हैं-‘अगर अभी नहीं, तो फिर कब? अगर तुम नहीं तो और कौन? अगर हम इन मौलिक सवालों का उत्तर दे सकें तो शायद हम सब मानव गुलामी का दाग मिटा सकें.
कब तक हम किसी और का इंतजार करते रहेंगे कि कोई ‘अलादीन का चिराग’ मिल जाए और कमजोर व शोषित वर्ग के बच्चों का शोषण और उन पर होने वाला अत्याचार रुक जाए. क्या हम इतने खुदगर्ज हो गए हैं कि अपने आसपास ऐसा अत्याचार, अन्याय व शोषण देखकर भी चुप्पी साधे बैठे हैं. हमें जागना ही होगा एक इंसान के नाते, इंसानियत के नाते। बच्चे ही किसी भी देश का भविष्य होते हैं. इन बच्चों को भी हक है कि वह शिक्षा हासिल करें। उन्हें भी समान अवसर मिले और वे भी देश की प्रगति का हिस्सा बनें. अगर हम एक सभ्य समाज का निर्माण होते देखना चाहते हैं तो जरूरी है कि चाइल्ड ट्रैफिकिंग जैसे मुद्दे पर खुलकर बात करें, साथ आएं और इसके खिलाफ एकजुट होकर जंग का ऐलान करें।
मजबूत एंटी ट्रैफिकिंग बिल लाना जरूरी
याद रखिए कि ईश्वर भी उन्हीं की मदद करता है जो अपनी मदद खुद करते हैं. ये हमारा काम नहीं है, सरकार क्या कर रही है? सरकारी अधिकारी कुछ क्यों नहीं करते? ये सवाल पूछने का समय बीत चुका है. हमें और आपको अपने इंसान होने का फर्ज अदा करना ही होगा. जरूरी हो गया है कि सामाजिक बुराई को खत्म करने के लिए जमीनी स्तर पर साथ मिलकर कुछ ठोस कदम उठाएं. साथ ही जरूरी है कि एक मजबूत एंटी ट्रैफिकिंग बिल लाया जाए जिससे जवाबदेही तय हो सके और इस घृणित कारोबार पर लगाम लग सके.