Vinayak Damodar Savarkar and Tipu Sultan: क्या सावरकर वीर (Veer Savarkar) नहीं थे, क्या वो कायर थे या फिर वो अंग्रेजो के कृपापात्र थे? क्या वीर सावरकर और टीपू सुल्तान के बीच कोई तुलना हो सकती है? ऐसे कई सवाल आपके मन में अक्सर चलते होंगे. सोमवार को जब देश आज़ादी की 75वीं सालगिरह मना रहा था, तभी देश के एक हिस्से में इस विषय पर विवाद खड़ा हुआ था. आज़ादी के अमृत महोत्सव पर सावरकर वर्सेस टीपू सुल्तान विवाद क्यों हुआ. आखिर इसके पीछे किस तरह का प्रयोग है. 


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दे दी हमें आज़ादी बिना खडग बिना ढाल. ये गीत आपने भी सुना होगा लेकिन ये भारत की स्वतंत्रता का आधा सच है. बाकी आधा सच ये है कि हमें आजादी बिना मोल चुकाए नहीं मिली. इसके लिए न जाने कितने ही लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की, अपने प्राणों का बलिदान दिया और काले पानी की सजा भी काटी. 


कर्नाटक के शिवमोगा में सांप्रदायिक झड़प


लेकिन हमारे देश में एक वर्ग ऐसा है जो इन महापुरुषों पर भी राजनीति करने से नहीं चूकता. ये वर्ग देश के महापुरुषों की महानता को भी धर्म की कैटेगरी में बांट देता है. कल जब देश स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मना रहा था, तब कर्नाटक के शिवमोगा में ये सियासी संघर्ष सांप्रदायिक झड़प में बदल गया.


वैसे तो कर्नाटक में टीपू सुल्तान की जयंती मनाने और उन्हे राष्ट्रनायक के तौर पर पेश किए जाने का विवाद काफी पुराना है. एक वर्ग के लिए टीपू सुल्तान ऐसे योद्धा हैं, जिसने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी और उन्हें टक्कर दी. दूसरा वर्ग टीपू सुल्तान पर हिंदुओं के कत्लेआम और मंदिरों के विध्वंस का आरोप लगाता है. ये झगड़ा लंबे समय से चला आ रहा है लेकिन 15 अगस्त को इस विवाद में वीर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) को भी घसीट लिया गया.


कर्नाटक के शिवमोगा में हिंदू संगठन से जुड़े कुछ लोग वहां के अमीर अहमद सर्किल पर वीर सावरकर का एक पोस्टर लगाने पहुंचे थे. अमीर अहमद सर्किल शिवमोगा की सबसे चहल-पहल वाली जगह है. लेकिन टीपू सुल्तान को अपना आदर्श मानने वालों के एक समूह को ये बात पसंद नहीं आई और उन्होंने सावरकर का पोस्टर लगाने का विरोध शुरू कर दिया. इन लोगों ने सावरकर की जगह टीपू सुल्तान का पोस्टर लगाने की कोशिश की. इस पर झड़प शुरू हो गई और विवाद इतना बढ़ गया कि पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा. इसके बाद से शिवमोगा में 18 अगस्त तक धारा 144 लगा दी गई है और सुरक्षाबल भी तैनात कर दिए गए हैं.


वीर सावरकर से क्यों चिढ़ती है 'टीपू सेना'


इस टकराव को देखने के बाद आप ये ज़रूर जानना चाहेंगे कि देश में एक वर्ग को वीर सावरकर (Veer Savarkar) से इतनी चिढ़ क्यों है? वो क्यों सावरकर को विलेन साबित करने पर आमादा है? इतनी असहिष्णुता क्यों है कि आजादी की सालगिरह पर वीर सावरकर जैसे स्वतंत्रता सेनानी का पोस्टर लगाने तक की आजादी नहीं है?


आज हम वीर सावरकर और आजादी में उनके योगदान का ज़िक्र करेंगे. हम आपको बताते हैं कि सावरकर पर लगने वाले आरोप क्या हैं. हम क्यों कह रहे हैं कि भारत की आज़ादी में उनका योगदान किसी से कम नहीं है.


विनायक दामोदर सावरकर को अपने राजनीतिक विचारों के लिए पुणे के फरग्यूसन कालेज से निष्कासित कर दिया गया था. इसके बाद वो लंदन चले गए और वहां भी देश की स्वतंत्रता के लिए काम करते रहे. वर्ष 1910 में उन्हें नासिक के कलेक्टर की हत्या की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था. इसके बाद वो करीब 15 वर्षों तक अंग्रेजों की कैद में रहे. इसमें भी 10 साल उन्होंने काला पानी की सजा काटी, जो उस वक्त सबसे भयानक जेल मानी जाती थी. इसके अलावा वो महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले में 13 साल तक नजरबन्द भी रहे. 


28 साल जेल में रहे थे वीर सावरकर


अब आप खुद सोचिए जिस स्वतंत्रता सेनानी ने देश की आजादी के लिए अपने लगभग 28 साल भयानक यातनाओं में गुजारे, क्या उसकी देशभक्ति पर शक किया जा सकता है? दुर्भाग्य की बात ये है कि कालापानी की सजा काटने वाले वीर सावरकर को तो हमारे देश का एक वर्ग कायर और अंग्रेजों का चापलूस बताता है, लेकिन जिन नेताओं ने स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान अपनी मनपसंद जेलों में सुविधाओं के साथ दिन बिताए, उन्हें वीर क्रान्तिकारी बताया जाता है.


सावरकर (Veer Savarkar) को कायर और अंग्रेजों का चापलूस घोषित करने के लिये आधार के तौर पर जेल से लिखे गये उनके माफीनामों का जिक्र किया जाता है. सावरकर ने जेल से कुल 6 चिट्ठियां लिखीं थी जिसमें उन्होंने अंग्रेज़ों से उन्हें रिहा किये जाने की अपील की थी. सावरकर ने अपनी छठी और आखिरी याचिका महात्मा गांधी के सुझाव पर अंग्रेज सरकार को भेजी थी. लेकिन इस अर्जी को भी बाकी अर्ज़ियों की तरह खारिज कर दिया गया था. 


महात्मा गांधी की कोशिशों पर उठते रहे हैं सवाल


25 जनवरी की अपनी चिट्ठी में महात्मा गांधी ने वीर सावरकर के छोटे भाई को बताया था कि वो भी सावरकर की रिहाई के लिए प्रयास कर रहे हैं. इसके लिए उन्होंने 26 मई 2020 को Young India अखबार में एक लेख लिखा था, जिसका शीर्षक था 'Savarkar Brothers'.


लेकिन हमारे देश के डिजायनर इतिहासकारों ने जिस चश्मे से वीर सावरकर की क्षमा याचिका को देखा, उस चश्मे से कभी महात्मा गांधी के फैसलों का अध्ययन नहीं किया. आज भी हमारे देश में यही हो रहा है. सोचिए इस देश को आजाद कराने के लिए जिन वीर क्रान्तिकारियों ने दशकों तक अत्याचार सहा, आज उन्हीं पर हमारे देश में गन्दी राजनीति हो रही है.


सावरकर हिंदुत्व के मुद्दे पर भी एक वर्ग के लिए विलेन हैं. वर्ष 1923 में जेल में रहते हुए वीर सावरकर (Veer Savarkar) ने एक किताब लिखी 'Hindutva: Who Is a Hindu?' और इस किताब में पहली बार हिंदुत्व शब्द का प्रयोग किया गया. इसमें सावरकर ने हिंदुत्व का अर्थ भी समझाया. लेकिन इस किताब के आधार पर कुछ इतिहासकार और राजनेता सावरकर पर साम्प्रदायिक होने और 'टू नेशन थ्योरी' का जनक होने का आज भी आरोप लगाते हैं. अब इस आरोप में कितनी सच्चाई है, वो भी आपको बताते हैं.


सर सैयद अहमद खान ने दिया था द्वि-राष्ट्र का सिद्धांत


सावरकर ने Two Nation Theory नहीं दी थी. मुस्लिम समाज सुधारक और शिक्षाविद सर सैयद अहमद खान को Two Nation Theory का संस्थापक माना जाता है. सर सैयद अहमद खां (Sir Syed Ahmed Khan) ने 28 दिसंबर 1887 को एक भाषण में Two Nation Theory की बात कही थी. सर सैयद ने कहा था कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग कौम हैं और ये दोनों कौम कभी एक साथ नहीं रह सकतीं. इसलिए इनके लिए अलग-अलग देश बनना चाहिए. अगर आप चाहें तो काजी मुहम्मद अदील अब्बासी की किताब खिलाफ़त आंदोलन के Page Number 26 पर सर सैयद का भाषण पढ़ सकते हैं. 


सर सैयद की Two Nation Theory को बाद में मुस्लिम लीग ने अपना लिया. प्रसिद्ध शायर मुहम्मद इक़बाल और मुस्लिम विचारक चौधरी रहमत अली ने मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग उठाई. बाद में मोहम्मद अली जिन्ना ने इसी Two Nation Theory के आधार पर पाकिस्तान की मांग की.


उस वक्त के मुस्लिम विद्वान खुद ही अपने आपको एक अलग कौम मान रहे थे. तब Two Nation Theory पर अपने विचार रखते हुए सावरकर ने भी हिंदू और मुसलमानों को अलग राष्ट्र कहा था. लेकिन उन्होंने देश को बांटने की बात कभी नहीं कही थी. सावरकर (Veer Savarkar) ने हमेशा अखंड भारत का ही समर्थन किया. वर्ष 1924 में भी जब उन्हें नजरबंदी से रिहा किया गया तो उन्होंने अपना पूरा ध्यान हिंदू नवजागरण पर लगाया. सावरकर ने हिंदू धर्म में छुआ-छूत खत्म करने के लिए अभियान चलाए और अनुसूचित जाति और सवर्ण जातियों के लोगों के सह-भोज यानी एक साथ भोजन करने पर विशेष जोर दिया.


देश के एक तबके को हजम नहीं होते वीर सावरकर


हालांकि सावरकर की छवि को उस समय बहुत धक्का लगा जब 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन वर्ष 1949 में वो इस आरोप से बरी हुए और उन्हें बाइज्ज़त बरी कर दिया गया. लेकिन अदालत से निर्दोष साबित होने के बावजूद एक राजनीतिक वर्ग ने उन्हें हमेशा कठघरे में खड़ा रखा और आज़ाद भारत में विलेन साबित करने का पूरा प्रयास किया. उनकी विरासत को भी अंधकार में डालने के पूरे-पूरे प्रयास किये गए.


आज आपको दुनिया में शायद ही कोई ऐसा उदाहरण मिले जो क्रांतिकारी कवि भी हो, साहित्यकार भी हो और बहुत अच्छा लेखक भी हो. सावरकर के विचारों से किसी के मतभेद हो सकते हैं, ये वैचारिक स्वतंत्रता का विषय है. लेकिन आजादी के लिये उनके तप और त्याग को भूल जाना बल्कि उसे कमतर आंकना. इसे अन्याय ही कहा जा सकता है. उनके इसी तप को भारत रत्न एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने कविता के रूप में गढ़ा था. 


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