DNA ANALYSIS: 135 करोड़ की आबादी वाले भारत के लिए ओलंपिक में 7 मेडल काफी हैं?
ओलंपिक चैंपियन्स की भारत वापसी का देशभर में जश्न मनाया गया. पूरे देश के नाचते-गाते हुए इन खिलाड़ियों का दिल से स्वागत भव्य स्वागत किया. दिल्ली के अशोका होटल में आज केन्द्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर और पूर्व खेल मंत्री किरेन रिजिजू ने इन सभी खिलाड़ियों को सम्मानित भी किया.
नई दिल्ली: भारत में ओलंपिक खिलाड़ियों का जबरदस्त स्वागत देखकर आप सबका दिल खुश हो गया होगा क्योंकि हमारे देश में ऐसा स्वागत या तो क्रिकेट के खिलाड़ियों का होता है या फिर फिल्म अभिनेताओं का होता है. इस हफ्ते लोगों ने इंग्लैंड के खिलाफ भारत के क्रिकेट मैच की बात नहीं की, बल्कि पूरा भारत ब्रिटेन के खिलाफ हुए हॉकी मैच (India-Britain Hockey Match) की बात कर रहा था. ओलंपिक खिलाड़ियों को लेकर भारत में ये उत्साह एक बहुत बड़े बदलाव का सूचक है. लेकिन 135 करोड़ के देश के लिए क्या 7 ओलंपिक मेडल काफी हैं? इसलिए आज हम अपने ओलंपिक खिलाड़ियों की सफलता का जश्न तो मनाएंगे, लेकिन साथ ही ये भी बात करेंगे कि हमें अमेरिका, चीन और जापान जितने मेडल जीतने में कितना समय और लगेगा?
जापान में जय हिंद के बाद भारत में जय-जयकार
जापान में जय हिन्द के बाद आज भारत में हमारे खिलाड़ियों की जय-जयकार हो रही है. दिल्ली एयरपोर्ट पर इन खिलाड़ियों के पहुंचने के बाद लोग नाचते गाते दिखे. दिल्ली ही नहीं, आज पूरा देश इन खिलाड़ियों का दिल से स्वागत कर रहा रहा है. लेकिन हमें डर है कि ये सेलिब्रेशन और इन खिलाड़ियों के प्रति सम्मान की ये भावना कहीं 24 घंटे में ही कहीं खत्म ना हो जाए, और लोग फिर से इन्हें भुला ना दें. दिल्ली के अशोका होटल (Ashoka Hotel) में आज केन्द्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर (Anurag Thakur) और पूर्व खेल मंत्री किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) ने इन सभी खिलाड़ियों को सम्मानित किया.
नीरज को बड़े त्याग के बाद मिला 'गोल्ड'
टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics) इसलिए भी भारत के लिए खास है क्योंकि भारत ने पहली बार एथलेटिक्स (Atheletics) में गोल्ड मेडल जीता है, और ये सपना नीरज चोपड़ा ने पूरा किया है. नीरज चोपड़ा को लंबे बाल रखने का शौक है, लेकिन भाला फेंकते (Javelin Throw) समय ये लंबे बाल उनकी आंखों के सामने आ जाते थे. इनकी वजह से उन्हें पसीना भी ज्यादा आता था, इसलिए उन्होंने अपने लंबे बाल कटवा दिए और वो पिछले एक साल से सोशल मीडिया से भी पूरी तरह दूर थे ताकि वो अपने खेल पर ध्यान केंद्रित कर सकें. नीरज चोपड़ा की इस पूरी मेहनत को समझने के लिए आपको उनका एक वीडियो देखना होगा जो नीरज चोपड़ा के धैर्य और लचीलेपन के बारे में बताती है. ये वीडियो नए भारत के नए सिस्टम पर भी फिट बैठती है, जो अपने खिलाड़ियों के प्रति लचीला होना जानता है. तो धैर्य के साथ उनकी वर्ल्ड क्लास ट्रेनिंग भी करवाता है, और नतीजों का इंतजार करता है. जब खिलाड़ियों के साथ साथ हमारा सिस्टम खुद को संतुलित और मजबूत करता है तो नए भारत का निर्माण होता है और ये तस्वीर इसी का प्रमाण है.
121 साल के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन
ओलम्पिक खेलों के पिछले 121 वर्षों के इतिहास में भारत ने इस बार सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है. इस बार भारत ने एक गोल्ड, दो सिल्वर और चार ब्रांज मेडल जीते हैं. हालांकि मेडल्स की ये संख्या और भी ज्यादा हो सकती थी. टोक्यों ओलंपिक खेलों में भारत के 127 खिलाड़ियों में से 55 खिलाड़ी ऐसे रहे, जिन्होंने क्वार्टर फाइनल और उसके बाद के मुकाबलों में प्रवेश किया. इनमें से अकेले 43 खिलाड़ी ऐसे थे, जो सेमीफाइनल मुकाबले में पहुंचे. इनमें पुरुष और महिला हॉकी टीम प्रमुख थी. इसके अलावा 5 खिलाड़ी व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा में गोल्ड मेडल के लिए फाइनल मुकाबलों में पहुंचे. सरल शब्दों में कहें तो कुल 33 खेलों में से 5 खेलों में भारत को गोल्ड मेडल मिल सकता था, लेकिन मिला केवल एक में, और ये एक गोल्ड मेडल भी 13 वर्षों के बाद आया. अगर भारत के खिलाड़ी इन सभी फाइनल मुकाबलों में जीत जाते तो भारत ओलंपिक खेलों की मेडल टैली में 48वें की जगह 17वें स्थान पर होता. हालांकि फाइनल मुकाबलों में भारत की ये एंट्री इस बात का भी संकेत है कि आने वाले ओलंपिक खेलों में हमें और ज्यादा मेडल्स मिल सकते हैं.
मेडल जीतने वाले टॉप 50 देशों में भारत
इसे आप ऐसे समझिए कि 2016 के रियो ओलंपिक (Rio Olympics) में भारत ने अपने 117 खिलाड़ी भेजे थे, जिनमें से केवल 20 खिलाड़ी ही क्वार्टर फाइनल और उसके बाद के मुकाबलों में पहुंच पाए थे. लेकिन अबकी बार ये संख्या 20 से सीधे 55 हो गई है, जो भारत के लिए अच्छी खबर है. इस बार भारत ने 33 खेलों में से 18 खेलों में हिस्सा लिया, और 41 वर्षों के बाद भारत मेडल जीतने वाले टॉप 50 देशों में है. हालांकि इन खेलों के खत्म होने के बाद आज हम आपको ये बताएंगे कि भारत ने टोक्यो ओलंपिक से क्या सीखा और इस बार हमने क्या सही किया? इस बार भले हमने 2016 के रियो ओलंपिक की तुलना में 5 मेडल ज्यादा जीते हों. लेकिन ओलंपिक खेलों में भारत का प्रदर्शन काफी ऊपर नीचे रहा है. 2012 के लंदन ओलंपिक भारत ने 6 मेडल्स जीते थे, और 2008 के बीजिंग ओलंपिक खेलों में हमें 3 मेडल्स मिले थे. लेकिन ये प्रदर्शन बाद में बरकरार नहीं रहा, और हमारे देश को इसी से सीखने की जरूरत है.
भारत में स्पोर्टिंग कल्चर पर विश्वास नहीं
ओलंपिक खेलों में जब भारत को मेडल नहीं मिलता तो हमारे देश के बहुत से लोगों का इस पर एक ही सवाल होता है और वो ये कि हम जीते क्यों नहीं? हमारे देश के लोग ऐसे मौकों पर अपने खिलाड़ियों की आलोचना करना पसंद करते हैं. हालांकि ये आलोचना भी कुछ ही दिनों तक रहती है और फिर सब इस मुद्दे को भूल जाते हैं. लेकिन आज हम आपसे एक सवाल पूछना चाहते हैं और वो ये कि आपमें से कितने लोग अपने बच्चों को स्पोर्ट्स की कोचिंग में भेजना चाहते हैं? आपमें से बहुत से लोगों का सवाल नहीं में होगा. भारत में माता-पिता अपने बच्चों को मैथ्स (Maths), साइंस (Science) के ओलंपियाड में तो भेजते हैं, लेकिन वो उन्हें खेलों के ओलंपियाड में नहीं भेजना चाहते. हमारे देश में बच्चों के जन्म पर माता पिता ये तो कहते हैं कि उनका बच्चा बड़ा होकर डॉक्टर, इंजीनियर या आईएएस ऑफिसर बनेगा, लेकिन कोई ये नहीं कहता कि वो बड़े होकर देश के लिए मेडल लाएगा. यानी हमारे देश में लोगों को नीरज चोपड़ा जैसे चैंपियन तो चाहिए लेकिन वो चैंपियन उन्हीं के घर से हों, वो इसके लिए तैयार नहीं हैं. इसका सबसे बड़ा कारण है भारत में खेल संस्कृति (Sporting Culture) पर लोगों का विश्वास नहीं होना.
29 ओलंपिक में भारत को मिले 35 मेडल्स
हमारे देश ने अब तक के 29 ओलंपिक खेलों में केवल 35 मेडल्स जीते हैं, और ये संख्या गोल्ड, सिल्वर और ब्रांज तीनों मेडल्स को मिलाकर है. इनमें 7 मेडल भारत ने इस बार जीते हैं, जबकि अमेरिका (America) ने इस बार के खेलों में अकेले 39 गोल्ड मेडल जीते हैं, और वो कुल 113 मैडल्स के साथ इस बार की मैडल टैली में पहले स्थान पर हैं. दूसरे स्थान पर चीन (China) है, जिसने 88 मेडल जीते हैं, जिनमें 38 गोल्ड मेडल हैं. इस सूची में जापान (Japan) तीसरे स्थान पर है, जिसने 58 मेडल जीते हैं. जापान की कुल आबादी लगभग साढ़े 12 करोड़ है, यानी उत्तर प्रदेश की आबादी से भी आधी है. लेकिन एक छोटा देश होते हुए भी ओलंपिक खेलों में उसका प्रदर्शन कई बड़े देशों से अच्छा है, और इसकी सबसे बड़ी वजह है कि वहां का स्पोर्टिंग कल्चर.
भारत के खराब प्रदर्शन की क्या वजह?
1. खेलों में निवेश की कमी
2. कमजोर इन्फ्रास्ट्रक्चर
3. खिलाड़ियों को ज्यादा प्रोत्साहन नहीं मिलना
4. क्रिकेट के प्रति लोगों का जुनून
खराब प्रदर्शन की ये सब वजह तो हैं और इन्हें नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता. लेकिन उससे भी बड़ा कारण है कि भारत में खेलों के प्रति लोगों का नजरिया. हमारे देश में स्पोर्टिंग कल्चर नहीं है, और इसे आप कुछ उदाहरणों से समझ सकते हैं. केन्या (Kenya) की कुल आबादी लगभग साढ़े 5 करोड़ है और वहां बहुत गरीबी है, वहां खिलाड़ियों के पास ज्यादा संसाधन और महंगे कोच नहीं है, और ना ही आधुनिक कोचिंग सेंटर्स हैं. इसके बावजूद केन्या ओलंपिक खेलों में हर बार अच्छा प्रदर्शन करता है. भारत के 35 मेडल्स की तुलना में केन्या अब तक 103 मेडल्स जीत चुका है, और इस बार भी 10 मेडल्य के साथ केन्या 19वें स्थान पर है. केन्या की तरह ब्राजील (Brazil) में भी काफी गरीबी है. वहां की 21 करोड़ आबादी में से डेढ़ करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं, लेकिन इसके बावजूद खेलों की अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में ब्राजील कई देशों से आगे है. ब्राजील अब तक फूटबॉल के 5 वर्ल्ड कप (Football World Cup) जीत चुका है, और ओलंपिक खेलों में उसके पास 150 मेडल्स हैं. इस बार भी वो 21 मेडल्स जीतकर 12वें स्थान पर रहा है.
'पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब खेलोगे...'
ये वो दोनों देश हैं, जहां खिलाड़ियों के पास ज्यादा संसाधन नहीं हैं, लेकिन स्पोर्टिंग कल्चर होने की वजह से ये देश खेलों की दुनिया में अपना दबदबा रखते हैं. जबकि भारत में ऐसा नहीं है. हमारे देश में बच्चों को खेलने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है. पहले वो समाज के तानों से संघर्ष करते हैं, लोग कहते हैं कि खेल कर क्या होगा? फिर वो अपने परिवार के खिलाफ संघर्ष करते हैं क्योंकि अक्सर माता-पिता भी अपने बच्चों को कहते हैं कि वो खेलकूद कर अपना जीवन बर्बाद कर लेंगे, और रही सही कसर स्कूलों में पूरी हो जाती है. भारत में बच्चों को छोटी उम्र में ही ये अहसास कर दिया जाता है कि खेलों में कुछ नहीं रखा. अगर उन्हें कुछ करना है तो पढ़ाई लिखाई ही काम आएगी. हमारे देश में एक कहावत भी काफी बोली जाती है. वो कहावत है कि पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब खेलोगे कूदोगे तो बनोगे खराब.
स्पोर्टिंग कल्चर को बढ़ावा देने की जरूरत
भारत में खेलों का नहीं बल्कि गणित और विज्ञान के विषय के बारे में पढ़ने और पढ़ाने का कल्चर है. स्टीफन हॉकिंग (Stephen Hawking) ने एक बार कहा था कि भारत के लोग गणित और भौतिक विज्ञान में माहिर होते हैं. इसी तरह दुनियाभर में वैज्ञानिकों की संख्या में भारत दूसरे स्थान है. भारत के लगभग 1500 वैज्ञानिक दुनियाभर में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. यानी इन ओलपिक खेलों से जो हमें सीख मिलती है वो ये कि भारत में स्पोर्टिंग कल्चर को बढ़ावा देने की जरूरत है, और ये तभी संभव होगा जब स्कूल और कॉलेज स्तर पर ही खेलों का बढ़ावा दिया जाएगा. ये विषय स्कूल के एक पीरियड तक सीमित नहीं रहेगा. इसे भी आप कुछ उदाहरणों से समझ सकते हैं.
जीतने वाले खिलाड़ी को मिलते हैं 5 करोड़
टोक्यो ओलंपिक खेलों में अमेरिका के 613 खिलाड़ियों के दल ने हिस्सा लिया, जिनमें से लगभग 75 प्रतिशत यानी 463 खिलाड़ी स्कूल और कॉलेज से यहां तक पहुंचे. इसी तरह रूस (Russia) और चीन के भी ज्यादातर खिलाड़ी, स्कूल और कॉलेज स्तर से ही ओलंपिक खेलों तक पहुंचे हैं. यहां एक बड़ी बात ये है कि मेडल इनाम राशि से नहीं जीते जाते, क्योंकि अगर ऐसा होता तो सिंगापुर (Singapore) को सबसे ज्यादा मेडल मिलते. सिंगापुर की सरकार गोल्ड मेडल जीतने वाले खिलाड़ी को पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा लगभग साढ़े 7 लाख डॉलर यानी साढ़े 5 करोड़ रुपये इनाम में देती है. लेकिन इसके बावजूद उसे टोक्यो ओलंपिक में एक भी गोल्ड मेडल नहीं मिला.
50% से अधिक चैंपियन्स हरियाणा से
आप हरियाणा के उदाहरण से भी इस बात को समझ सकते हैं. पिछले 21 वर्षों में भारत ने ओलंपिक खेलों में कुल 20 मेडल जीते हैं, जिनमें से 11 अकेले हरियाणा के खिलाड़ियों ने जीते हैं. इस हिसाब से देखें तो मेडल जीताने में हरियाणा के खिलाड़ियों का योगदान 50 प्रतिशत से भी अधिक है. इस बार भी व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा (Individual Medals) में जो 6 मेडल मिले हैं, उनमें 3 खिलाड़ी हरियाणा के हैं. एथलेटिक्स में देश को 121 साल के इतिहास में पहला गोल्ड मेडल दिलाने वाले नीरज चोपड़ा भी इसी राज्य से आते हैं. जबकि 41 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद ब्रांज मेडल जीतने वाली पुरुष हॉकी टीम में भी 2 खिलाड़ी हरियाणा के थे. इसलिए आज यहां आपको ये समझना भी जरूरी है कि हरियाणा देश के बाकी राज्यों से क्या अलग कर रहा है?
हरियाणा नंबर-1 क्यों है?
हरियाणा में स्कूल और कॉलेज स्तर पर खेलों को बढ़ावा देने के लिए एक पूरी प्रक्रिया है. हरियाणा में 500 से ज्यादा स्पोर्ट्स नर्सरीज हैं. ढाई करोड़ की आबादी वाले इस राज्य में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI) के 22 केन्द्र हैं. जबकि उत्तर प्रदेश आबादी के लिहाज से हरियाणा से 8 गुना बड़ा है, लेकिन वहां पर SAI के 20 ही सेंटर हैं. वहीं, मध्य प्रदेश में तो स्थिति और भी खराब है. वहां सिर्फ 16 केन्द्र हैं. जबकि राजस्थान में 10 और छत्तीसगढ़ और गुजरात में केवल 3-3 केन्द्र हैं. हरियाणा में स्कूल और कॉलेज स्तर पर राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में मेडल लाने वाले खिलाड़ियों को 6 लाख रुपये तक कैश प्राइज दिया जाता है. ओलंपिक खेलों में भी मेडल लाने वाले खिलाड़ियों पर पैसे की बारिश होती है. गोल्ड मेडल जीतने पर सरकार 6 करोड़ रुपये देती है, सिल्वर जीतने पर 4 करोड़ रुपये देती है और कांस्य पदक जीतने पर ढाई करोड़ रुपये मिलते हैं. इसके अलावा तैयारी के लिए भी खिलाड़ियों को 15 लाख रुपये राज्य सरकार से मिलते हैं. जबकि राजस्थान में खिलाड़ियों को मिलने वाली यही रकम सिर्फ 5 लाख रुपये होती है. यही नहीं, हरियाणा में खिलाड़ी ही नहीं, कोच को भी ट्रेनिंग के लिए विदेशों में भेजा जाता है. जबकि मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और बिहार जैसे बड़े राज्यों में इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं है.
हरियाणा में है सपोर्टिंग कल्चर
हरियाणा के इस स्पोर्टिंग कल्चर के पीछे सरकार का सपोर्टिंग कल्चर (Supporting Culture) भी है. हरियाणा के पिछले तीन साल में खेल बजट औसतन 300 करोड़ रुपये रहा है. केवल इस बार का खेल बजट देखें तो ये 400 करोड़ रुपये के आसपास है. जबकि राजस्थान का खेल बजट केवल 100 करोड़ रुपये है. हालांकि यहां बात सिर्फ बजट की नहीं है. कोई भी खिलाड़ी बजट से नहीं बनता. बजट तो मेडल वाली रेसिपी में सिर्फ एक इंग्रीडिएंट (Ingredient) की तरह है. इस रेसिपी में सबसे जरूरी होता है खेलों के प्रति लोगों का नजरिया. हमारे देश में आज भी बहुत से माता पिता को अगर ये पता लग जाए कि उनका बच्चा दूसरे बच्चों के साथ खेलने गया है, और इसकी वजह से उसने अपनी ट्यूशन की क्लास मिस कर दी है, तो उस बच्चे का बाहर जाना बंद कर दिया जाता है. यानी हम सब अंतर्राष्ट्रीय खेलों में मेडल तो चाहते हैं लेकिन उस मेडल के लिए अपने बच्चों को खेल के क्षेत्र में नहीं भेजना चाहते. इससे पता चलता है कि भारत में सपोर्टिंग कल्चर नहीं है.
नीरज की तैयारी में कोच का अहम रोल
यहां एक बड़ी बात ये है कि स्पोर्ट्स यानी खेल राज्यों का विषय है, और इसे बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकारें अपनी नीतियां बनाने के लिए स्वतंत्र हैं और वो इसके लिए खेल के बजट को बढ़ा भी सकती हैं और घटा भी सकती हैं. अलग-अलग खेलों की राज्य समितियां और कमिटी भी राज्य सरकारों के मुताबिक काम करती हैं. और फिर जाकर कहीं केंद्र सरकार का नंबर आता है. इसलिए खेल के क्षेत्र में भारत को अपनी किस्मत बदलनी है तो इसमें राज्य सरकारों को अपना अहम रोल निभाना होगा. इस बार के ओलंपिक खेलों में भारत के लिए कुछ ऐसी बातें भी हैं, जिनसे पता चलता है कि पिछली कुछ गलतियों से हमने क्या सीखा है. इस बार जिन 7 खिलाड़ियों और पुरुष हॉकी टीम ने मेडल जीता, उनमें से 6 के कोच दूसरे देशों के हैं. भारत को भाला फेंकने में गोल्ड दिलाने वाले नीरज चोपड़ा के हेड कोच जर्मनी के उवे हॉन (UWE Hohn) हैं. वो दुनिया के अकेले ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने वर्ष 1984 की एक प्रतियोगिता में 104.8 मीटर दूर तक भाला फेंका था. यानी नीरज चोपड़ा की तैयारी में उनके कोच का बड़ा रोल है. और इसके पीछे भी केन्द्रीय खेल मंत्रालय की कोशिशें हैं. नीरज चोपड़ा ने ये तैयारियां भी स्वीडन में रह कर ही की थीं.
2014 में हुई थी TOPS की शुरुआत
केन्द्रीय खेल मंत्रालय ने सितंबर 2014 में टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम (TOPS) शुरू की थी, जिसका मकसद खिलाड़ियों को ओलंपिक के पोडियम तक पहुंचाना है. इस स्कीम के तहत कमिटी ऐसे खिलाड़ियों की पहचान करती है, जो देश को ओलंपिक खेलों में मेडल दिला सकते हैं. फिर इन खिलाड़ियों को महंगे इक्विपमेंट्स दिलाने में मदद की जाती है. दूसरे देशों के मशहूर कोच के साथ करार किया जाता है. मनोचिकित्सक और सपोर्ट स्टाफ दिया जाता है, और हर महीने खिलाड़ियों को 50 हजार रुपये दिए जाते हैं. 2016 के रियो ओलंपिक खेलों में भारत को दो मेडल मिले थे. इनमें पीवी सिंधु ने सिल्वर मेडल जीता था, और पहलवान साक्षी मलिक ने ब्रॉन्ज मेडल जीता था, और ये दोनों ही खिलाड़ी भारत सरकार की इस स्कीम का हिस्सा थे. इसके अलावा 2016 के पैरालंपिक गेम्स (Paralympic Games) में भी भारत को इस स्कीम के तहत 2 गोल्ड समेत चार मेडल जीतने में सफलता मिली थी.
2024 ओलंपिक के लिए तैयार हो रहे 250 खिलाड़ी
स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के मुताबिक, इस समय 106 खिलाड़ियों को इस स्कीम के तहत तैयार किया जा रहा है, ताकि वो अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में देश के लिए मेडल ला सकें. इस योजना की सफलता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि पिछले साल सरकार ने जूनियर खिलाड़ियों के लिए भी ये स्कीम शुरू कर दी है, जिसके तहत 250 खिलाड़ियों की पहचान की गई है. इन सभी खिलाड़ियों 2024 और 2028 के ओलंपिक खेलों के लिए तैयार किया जा रहा है.
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