नई दिल्‍ली: आज हम एक ऐसी राजनीति का विश्लेषण करेंगे, जो आज पूरी तरह एक्‍सपोज हो चुकी है. ये राजनीति सबूत मांगने वाले गैंग की है, जो निजी स्वार्थ के लिए देशहित को भी राजनीति की आग में झोंक देता हैं और ये राजनीति उन नेताओं की है, जो आतंकवादियों के साथ हमदर्दी दिखाते हैं और कहते हैं कि आतंकवाद का धर्म नहीं होता. आज हम ऐसे ही नेताओं को एक्‍सपोज करेंगे. 


2008 में हुए एनकाउंटर के 10 साल बाद हुई गिरफ्तारी


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दिल्ली की साकेट कोर्ट ने 13 वर्ष पुराने Batla House Encounter मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादी आरिज खान को दोषी करार दिया है और अब 15 मार्च को इस मामले में उसे सजा सुनाई जाएगी. सोचिए जिस एनकाउंटर को कांग्रेस के नेता फेक बताते थे और जिन आतंकवादियों के साथ उनकी हमदर्दी थी. कोर्ट ने उन्हें आतंकवादी मान लिया है और इस मामले में इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादी आरिज खान को भी दोषी करार दिया है. जिसे वर्ष 2018 में यानी एनकाउंटर के 10 साल बाद नेपाल से गिरफ्तार किया गया था.


ये एनकाउंटर 19 सितम्बर 2008 को हुआ था और इससे ठीक पांच दिन पहले 13 सितम्बर 2008 को दिल्ली में पांच बड़े बम धमाके हुए थे, जिनमें 39 लोग मारे गए थे और 150 से ज्‍यादा लोग घायल हुए थे. पहले बम धमाके के सिर्फ 5 मिनट के बाद ही इंडियन मुजाहिदीन ने इसकी जिम्‍मेदारी ले ली थी, लेकिन इसके बावजूद हमारे देश में इस पर राजनीति हुई और कई नेताओं ने आतंकवादियों के लिए आंसू भी बहाए. 


शहादत पर सवाल क्‍यों?


उस समय बाटला हाउस में कुल पांच आतंकवादी छिपे हुए थे, जिनमें से दो उसी वक्‍त मारे गए थे और दो आतंकवादी फरार होने में कामयाब रहे जबकि एक आतंकवादी पकड़ा गया था. तब इस मुठभेड़ में दिल्ली स्पेशल सेल के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा शहीद हो गए थे, लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने उस समय उनकी शहादत पर सवाल खड़े किए और इस एनकाउंटर को भी फेक बताया था.


मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति 


यानी सबूत गैंग उस समय भी देश में एक्टिव था. बस फर्क इतना है कि उस समय इस गैंग की काफी चलती थी और भारतीय मीडिया भी इन्हें काफी महत्व देता था. उस समय इस एनकाउंटर पर सवाल उठाने वालों में कांग्रेस के बड़े नेता दिग्विजय सिंह शामिल थे.



पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने इसकी जांच की मांग की थी. ममता बनर्जी ने इसे फर्जी बताया था और यहां तक कि अरविंद केजरीवाल ने भी बाद में विधान सभा चुनाव में इसे मुद्दा बना कर मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति की थी.



एनकाउंटर के सिर्फ दो दिन बाद ही कांग्रेस के बड़े नेता दिग्विजय सिंह ने इस पर सवाल खड़े कर दिए थे. तब इसे लेकर उनके क्या शब्द थे,  वो हम आपको बताते हैं, उन्होंने कहा था कि ये एनकाउंटर फेक है और आतंकवादियों के सिर में लगी गोलियां से साफ है कि इसे एनकाउंटर की तरह दिखाने की कोशिश हुई है. तब दिग्विजय सिंह ने इसकी न्यायिक जांच की भी मांग की थी.


वर्ष 2012, 2013 और 2016 में दिए अपने बयानों में उन्होंने यही बातें फिर से दोहराईं और बाटला हाउस एनकाउंटर को फेक बताया. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन ने 2009 में ही इस एनकाउंटर के फेक होने के दावों को खारिज कर दिया था,  लेकिन इसके बावजूद सबूत गैंग की ये राजनीति समाप्त नहीं हुई.


इस राजनीति को आगे बढ़ाने वाले दूसरे नेता हैं पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद,  जिन्होंने वर्ष 2012 में ये कहा था कि एनकाउंटर के बाद आतंकवादियों की तस्वीरें देख कर सोनिया गांधी की आंखों में आंसू आ गए थे. तब उन्होंने ये भी कहा था कि सोनिया गांधी ने इस मामले में जांच के लिए उनसे कहा था.


राजनीतिक फायदे के लिए गलत बयानबाजी


पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी उस समय दिल्ली पुलिस पर कई गंभीर सवाल खड़े किए थे. उन्होंने कहा था कि ये फेक एनकाउंटर है और अगर वो गलत साबित हुईं, तो वो राजनीति से संन्यास ले लेंगी. ये शब्द तब ममता बनर्जी के थे. ऐसे में आज जब कोर्ट ने ये कह दिया है कि ये एनकाउंटर सही था और इसमें मारे गए सभी आतंकवादी थे, तो क्या ममता बनर्जी अपनी बात पर कायम रहते हुए राजनीति छोड़ने के लिए तैयार हैं? क्या वो देश से इसके माफी मांगेंगी? और क्या वो ये मानेंगी कि उन्होंने उस समय राजनीतिक फायदे के लिए गलत बयानबाजी की थी?



हमें लगता है कि ममता बनर्जी ऐसा नहीं कर पाएंगी और कोई भी नेता जिसने उस समय इस एनकाउंटर पर सवाल उठाए और आतंकवादियों के लिए हमदर्दी दिखाई. ऐसा कोई भी नेता इसके लिए माफी नहीं मांगेगा, लेकिन हम चाहते हैं कि ये नेता आज देश से माफी मांगें. ये दिल्ली पुलिस से माफी मांगें और ये शहीद मोहन चंद शर्मा के परिवार से माफी मांगें, जिनकी शहादत पर सवाल खड़े किए गए थे.



हम यहां आज दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का भी जिक्र करना चाहते हैं, जिन्होंने बाटला हाउस एनकाउंटर की जांच की मांग की थी. 2013 में दिल्ली के विधान सभा चुनाव से पहले उन्होंने मुस्लिम समुदाय के लोगों को एक चिट्ठी लिख कर ये भी कहा था कि वो इस मामले में जांच की मांग का समर्थन करते हैं. हम चाहते हैं कि आप इन नेताओं की असली राजनीति को भी पहचानें, जो आतंकवाद से जुड़े मामलों में भी निजी स्वार्थ को नहीं छोड़ पाते.



कोर्ट के फैसले की प्रमुख बातें 


कोर्ट ने इस मामले में जो फैसला दिया है, उसकी प्रमुख बातें क्या हैं, वो भी अब हम आपको बताते हैं.


-सितम्बर 2008 में हुआ बाटला हाउस एनकाउंटर फेक नहीं था. यानी इस एनकाउंटर पर जो भी सवाल उठाए गए, वो राजनीति से प्रेरित थे.


-दिल्ली स्पेशल सेल के इंस्पेक्टर शहीद मोहन चंद शर्मा को एनकाउंटर के दौरान आतंकवादियों ने गोलियां मारी थी.


-बाटला हाउस में छिपे लोग, मासूम लड़के या छात्र नहीं थे, वो आतंकवादी थे और कोर्ट ने माना है कि इन आतंकवादियों के तार दिल्ली में हुए बम धमाकों से जुड़े थे, जिनमें 39 लोग मारे गए थे. 


-कोर्ट के इस फैसले में आपके लिए भी एक सीख छिपी है और वो ये कि ऐसे मामलों में अक्सर कुछ लोग सवाल उठाते हैं और सबूत मांगते हैं और सबूत मांगने वाले ऐसे गैंग से आपको सावधान रहना है.


पुलवामा और बालाकोट एयर स्‍ट्राइक पर भी उठे थे सवाल 


आपको याद होगा कि पुलवामा हमले के दौरान भी इस गैंग ने देश की सेना पर गंभीर सवाल उठाए थे और जब इस हमले के बाद भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान के बालाकोट पर एयर स्‍ट्राइक की, तो इसी गैंग ने फिर इस एयर स्‍ट्राइक के सबूत भी मांगे, जबकि पाकिस्तान ये मान चुका था कि उसके यहां आतंकवादियों के बेस कैम्‍प पर भारत ने कार्रवाई की है, लेकिन इसके बावजूद लोगों को गुमराह करने की कोशिश हुई. 


इससे पहले सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान भी इसी तरह से राजनीति हुई थी और देश की सेना से सबूत मांगे गए थे और जब पिछले वर्ष LAC पर गलवान में भारत और चीन की सीमा के बीच संघर्ष हुआ, उस समय भी इन नेताओं ने देश की सेना का मनोबल तोड़ने की कोशिश की.


बाटला हाउस एनकाउंटर केस ने किया एक्‍सपोज


आप जब ये समझने की कोशिश करेंगे कि इन सभी घटनाओं के दौरान अपने ही देश पर सवाल उठाने की कोशिशें क्यों हुईं, तब आपको ये पता चलेगा कि इसके पीछे एक ऐसी राजनीति है, जिसका देश और देश के लोगों से कोई लेना देना नहीं है. ये राजनीति हर विषय पर होती है. चाहे कोरोना वायरस की वैक्सीन हो या लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों का मुद्दा और जब जब ये राजनीति होती है. तब तब देश पर सवाल उठाए जाते हैं. देश की सेना से सबूत मांगे जाते हैं और देश के लोगों को भड़काया और गुमराह किया जाता है और हमें लगता है कि बाटला हाउस एनकाउंटर मामले में कोर्ट के फैसले ने इस राजनीति को पूरी तरह एक्‍सपोज कर दिया है.