नई दिल्‍ली:  भविष्य के युद्ध ऐसे ही होंगे जिसमें दुश्मन सीमा पर करके नहीं आएगा.  वो तो इंटरनेट पर छिप कर आएगा और देश की बिजली, पानी, परिवहन और इंटरनेट से चलने वाली व्यवस्था को ठप्प कर देगा. ऐसे में हमें सैनिकों से ज्यादा सॉफ्टवेयर बनाने वाले वैज्ञानिकों की जरूरत होगी. पर अफसोस हमारे देश में ऐसे आविष्कार करने वाले वैज्ञानिकों की कमी होती जा रही है. कहने को तो हम वर्ष 1987 से हर वर्ष 28 फरवरी को विज्ञान दिवस मनाते हैं. इसे मनाने की वजह महान वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकट रमन की खोज रमन इफेक्ट है, जिसमें बताया गया था कि प्रकाश के चलने का तरीका माध्यम के हिसाब से बदल जाता है. इसके लिए उन्हें फिजिक्स का नोबेल अवॉर्ड भी दिया गया था.


साइंस के चक्कर में बच्‍चे बन गए रोबोट


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लेकिन सी.वी. रमन के बाद आपको कितने ऐसे भारतीय वैज्ञानिकों का नाम याद है या कितने वैज्ञानिकों का नाम आप बता सकते हैं, जिन्होंने दुनिया को बदलने वाले या देश का नाम रौशन करने वाले आविष्कार किए. यह स्थिति तब है, जब भारत में साइंस की पढ़ाई पर सबसे ज्यादा जोर दिया जाता है. हर बच्चे के माता पिता अपने बच्चों को साइंस पढ़ाना चाहते हैं. बच्चों से कहते हैं, साइंस ले लो. साइंस के चक्कर में हमने बच्चों को रोबोट की तरह बना दिया है. रोबोट बनाने की फैक्ट्रियां भी हमारे देश में खूब फल-फूल रही हैं और वहां से निकलने वाले बच्चे मल्टीनेशनल कंपनियों में कुली की तरह काम कर रहे हैं. लेकिन आज भारत को जरूरत ऐसे रोबोट्स की नहीं है. भारत को जरूरत है रोबोट बनाने वालों की. यानी ऐसे लोग जो रिसर्च के महत्व को समझें, और अपने इनोवेटिव आइडियाज जेनेरेट कर सकें.  रिसर्च और इनोवेशन के क्षेत्र में भारत पिछड़ता हुआ दिख रहा है. भारत क्यों पिछड़ रहा है और दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले भारत की स्थिति क्या है. DNA में आज हम इसका विश्लेषण करेंगे.


भारत के महान वैज्ञानिक सीवी रमन की कहानी


लेकिन सबसे पहले हम आपको बताते हैं सर सीवी रमन के बारे में. भारत के महान वैज्ञानिक सीवी रमन का जन्म 7 नवंबर 1888 को को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में हुआ था. उनके पिता चंद्रशेखर अय्यर गणित और भौतिकी के प्राध्यापक थे. पिता की वजह से ही सीवी रमन को भौतिकी में रुचि हुई. उन्होंने मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज में पढ़ाई की और ऑप्टिक्स और एकोस्टिक्स में रिसर्च किया. 1907 में सीवी रमन भारत सरकार के वित्त विभाग में अकाउंटेट नियुक्त हुए. लेकिन उन्होंने रिसर्च जारी रखी. 1917 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में उन्हें भौतिकी का प्रध्यापक नियुक्त किया गया और 28 फरवरी 1928 को उन्होंने रमन इफेक्ट की खोज की. सीवी रमन को 1930 में नोबेल पुरस्कार मिला. वो पहले एशियाई थे, जिन्हें विज्ञान के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. नोबेल पुरस्कार पाने वाले वो पहले अश्वेत भी थे.



क्‍या है रमन इफेक्‍ट?


अब हम आपको बताते हैं रमन इफेक्ट है क्या. रमन इफेक्ट से पता चलता है कि जब प्रकाश किसी ट्रांसपेरेंट यानी पारदर्शी माध्यम में प्रवेश करता है, तब उसकी वेवलेंथ में बदलाव आ जाता है. सीवी रमन की इस खोज का विज्ञान पर गहरा असर हुआ. ब्रेन में बायस्कोपी से लेकर विस्फोटकों के पता लगाने तक में रमन इफेक्ट का प्रयोग किया जाता है. 


सीवी रमन की विरासत को संभाल पाएं हैं?


सवाल है कि क्या हम सीवी रमन की विरासत को संभाल पाएं हैं, इनोवेशन के मामले में आगे बढ़े हैं या इनोवेशन के मामले में पिछड़ गए हैं?


हमारे देश में बच्चे करीब छह सात वर्ष की उम्र में विज्ञान से परिचित होते हैं और धीरे-धीरे उन्हें विज्ञान का चस्का लगता है या लगा दिया जाता है. इसके लिए वो ट्यूशन करते हैं. हाई स्कूल में या फिर 12वीं क्लास में विज्ञान की पढ़ाई का यह चस्का इतना बढ़ जाता है कि बच्चे कोचिंग क्लासेज का रूख करते हैं और इसकी वजह से कोचिंग क्लासेज का धंधा खूब चमका है खासतौर पर कोटा में. कोटा राजस्थान का एक शहर है, जहां हर सार डेढ़ से दो लाख छात्र साइंस पढ़ने जाते हैं. हालांकि देश भर में इस तरह की कोचिंग चल रही है. लेकिन कोटा शहर साइंस की कोचिंग के लिए छात्रों में ज्यादा लोकप्रिय है और इतना लोकप्रिय है कि यह करीब 130 बिलियन डॉलर के उद्योग का रूप ले चुका है.