नई दिल्‍ली: कोरोना वायरस (Coronavirus) की वैक्सीन (Vaccine) तो आ चुकी है. लेकिन अब हम आपको एक ऐसी बीमारी के बारे में बताएंगे, जिसकी वैक्सीन शायद नहीं बनाई जा सकती.  ये बीमारी जमीन की भूख की है.  प्राचीन चीन के सैन्य रणनीतिकार और दार्शनिक सुन ज़ू (Sun Tzu) के मुताबिक, हर युद्ध लड़े जाने से पहले ही जीत लिया जाता है. उनके मुताबिक, दुश्मन पर हमला करने के बजाय दुश्मन के दिमाग पर हमला करना ज़्यादा बेहतर है.  अब तक चीन इनकी नीतियों के सहारे ही अपने दुश्मनों को मात देता आया है. 


पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर चीन के टैंक


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लेकिन अब भारत ने Sun Tzu की नीतियों को ही अपनाकर वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी LAC पर चीन को कमजोर कर दिया है. LAC के एक मोर्चे पर चीन की इस कमजोरी का एक वीडियो आया है, जिसमें भारतीय सेना, चीन (China) के सैनिकों के मुकाबले ज्यादा बेहतर स्थिति में है. इस पहाड़ी से दूर नीचे की घाटी में मौजूद चीन की सेना के टैंक बहुत छोटे आकार के दिखाई दे रहे हैं. 


इनमें चीन के सबसे आधुनिक टी-99 Tanks भी शामिल हैं. ये टैंक लगभग 5 किलोमीटर की दूरी तक हमला कर सकते हैं. लेकिन चीन के इन सैनिकों को ये नहीं पता कि इन पहाड़ों की ऊंचाई पर भारतीय सेना कहां मौजूद है.  इसलिए वो भारतीय सैनिकों को निशाना नहीं बना सकते हैं.  लद्दाख में पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर चीन ने इन टैंकों को तैनात किया है.


कई मोर्चों पर कमजोर हो गई चीन की सेना


अब चीन की इस तैयारी की वजह भी समझ लीजिए. पहाड़ों पर होने वाले युद्ध में जीत उसी सेना की होती है, जिसके कब्जे में ऊंचाई वाला इलाका होता है.


LAC पर रेचिन ला, रेजांग ला और मुखपरी पड़ाहियों के हिस्‍से में भारतीय सेना चोटी पर है और चीन की सेना नीचे घाटी में है. इसलिए चीन की सेना युद्ध लड़ने से पहले ही कई मोर्चों पर कमजोर हो गई है. चीन ने अपनी इसी कमजोरी का मुकाबला करने के लिए इतने टैंक तैनात किए हैं. 


हालांकि यहां पर चीन के लिए भारतीय सैनिकों से बचकर कोई भी घुसपैठ करना नामुमकिन है.  इसका मतलब ये है कि ऊंचाई पर मौजूद भारतीय सैनिकों के लिए चीन के ये टैंक आसान निशाना हैं. 



भारत, चीन से ज्यादा मजबूत स्थिति में 


अंग्रेजी में एक कहावत है- First Come, First Serve. इसका मतलब है पहले आओ, पहले पाओ और आपने भी ये कहावत जरूर सुनी होगी.  जो पहले आता है, उसे अपनी कोशिशों का नतीजा पहले मिलता है. भारत की सेना इन ऊंची चोटियों पर चीन से पहले पहुंच गई और अब भारत चीन से ज्यादा मजबूत स्थिति में है. 


लद्दाख के इलाके में टैंक किसी भी हमले का नतीजा बदल सकते हैं. इसलिए चीन की सेना का मुकाबला करने के लिए भारत ने भी पूरी तैयारी की है.  यहां पर भारतीय सेना के सबसे आधुनिक टी-90 Tanks के साथ टी-72 Tanks भी तैनात हैं. अगर भारतीय सेना के Tanks 17 हज़ार फीट की ऊंचाई पर तैनात नहीं होते,  तो चीन के इन टैंकों को भारतीय इलाक़ों में घुसने से रोकना मुश्किल हो जाता और ये पूरी दुनिया में अब तक की सबसे ऊंची चोटियों पर टैंकों की तैनाती है. 


भारतीय सेना की नजर में चीन का मिलिट्री बेस भी


चीन के टैंक भी LAC तक आने वाले रास्ते के पास पोजिशन लिए तैनात हैं और चीन ने अपने टैंकों को पिछले वर्ष के मई महीने में तनाव शुरू होने के बाद लद्दाख में तैनात किया था. 


चीन की सेना के टैंक ही नहीं, बल्कि उनका मिलिट्री बेस भी भारतीय सेना की नज़र में है. पैंगोंग  झील के दक्षिणी किनारे पर चीन का एक बेस है और अब ये बेस भी भारतीय सैनिकों की निगरानी में है. 


पिछले वर्ष 29 और 30 अगस्त को भारतीय सेना ने पैगोंग  झील के दक्षिणी हिस्से में कई महत्वपूर्ण पहाड़ियों पर खुद को बहुत मजबूत कर लिया था. इसे आप एक मैप की मदद से समझिए. 


अगर 29 अगस्त की रात चीन की सेना आगे बढ़ जाती तो चीन पूरे चुशूल सेक्टर पर आराम से नजर रख सकता था.  इस इलाके में भारतीय सेना की हवाई पट्टी समेत कई जरूरी Military Infrastructure हैं और ये इलाका इतना समतल औऱ चौड़ा है कि यहां बड़े टैंकों और तोपों को आसानी से तैनात किया जा सकता है. 


जिस जगह पर भारत की सेना ने अपना नियंत्रण स्थापित किया. उसके करीब ही पैंगोंग लेक का फिंगर एरिया है.  इस इलाके में चीन की सेना ने फिंगर 4 से फिंगर 8 के बीच कब्जा कर रखा है.  ऊंचाई पर कब्जा करने से भारत को एक फायदा ये भी मिलेगा कि बातचीत की टेबल पर भारत-चीन को पीछे हटने पर मजबूर कर सकता है. 


50 हज़ार से ज्यादा सैनिक आमने-सामने


सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि LAC पर दोनों देशों के 50 हज़ार से ज्यादा सैनिक आमने-सामने हैं.  ये स्थिति बहुत ही तनावपूर्ण है, लेकिन अभी नियंत्रण में है. दोनों देशों के बीच तनाव कम करने के लिए 8 Rounds की बातचीत हो चुकी है. हालांकि इसके बाद भी चीन की सेना ने अपनी तैनाती में कमी नहीं की है. 


चीन को सैनिक तकनीक और आर्थिक रूप से एक मजबूत राष्ट्र माना जाता है लेकिन किसी राष्ट्र की शक्ति उसके लोगों के मन में देशभक्ति से तय होती है.  चीन की सेना राष्ट्र की जगह, कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति जवाबदेह है. चीन की सेना में राष्ट्रवाद कम, और पार्टीवाद ज्यादा है. 


चीन के सैनिक अपने माता-पिता की अकेली संतान हैं. चीन की सेना में Single Child Policy का एक वायरस है,  जो वीरता के सॉफ्टवेयर  को करप्‍ट कर देता है. ऐसे में चीन भले टैंक ले आए... या कोई और घातक हथियार. लेकिन विजय के लिए जरूरी जज्बा उसके पास नहीं है. चीन ने अपना आखिरी युद्ध वियतनाम के साथ लड़ा था और जब इस युद्ध में उसकी हार का विश्लेषण किया गया तो पता चला कि उसके सैनिकों में अपने राष्ट्र के लिए विजय पाने की इच्छाशक्ति बहुत कमजोर थी. 


दुश्मन के खिलाफ ऊंचाई पर पहुंचना और वहां डटकर बैठ जाना ये सैनिक रणनीति कितनी महत्वपूर्ण है ये आपने देखा. 


राष्ट्र-प्रमुखों की गलतियों का नतीजा 


अब आपको भारत के इतिहास के वो उदाहरण दिखाते हैं जब हम सैन्य ऊंचाई हासिल करने के बाद भी उसका फायदा उठाने में असफल रहे और उस समय के राष्ट्र-प्रमुखों की गलतियों का नतीजा हम आज तक भुगत रहे हैं. 


वर्ष 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच दो सीमाओं पर 13 दिनों तक युद्ध चला था...पूर्वी पाकिस्तान नक्शे से मिट गया था। उसकी जगह नए राष्ट्र बांग्लादेश का जन्म हुआ था.  पाकिस्तान के 93 हज़ार सैनिकों और अधिकारियों ने सरेंडर किया था. 


वहीं पश्चिमी पाकिस्तान में भारत ने पाकिस्तानी पंजाब और सिंध के लगभग 15 हज़ार वर्ग किलोमीटर के हिस्से पर कब्जा कर लिया था.  इतनी जमीन पर दिल्ली जैसे 10 शहर बसाए जा सकते थे. 


युद्ध के बाद वर्ष 1972 के शिमला समझौते में इंदिरा गांधी ने सद्भावना दिखाते हुए पाकिस्तान को पूरी ज़मीन लौटा दी और बंदी बनाए गए 93 हज़ार सैनिकों को भी वापस भेज दिया गया. 


अगर भारत चाहता तो इस युद्ध में हासिल की गई विजय के बदले में पाकिस्तान के कब्ज़े वाला कश्मीर वापस मांग सकता था. लेकिन ऐसा नहीं किया गया. इसका नतीजा ये हुआ कि जम्मू-कश्मीर का एक हिस्सा आज भी पाकिस्तान के पास है. 


इससे पहले वर्ष 1965 में भी भारत के सैनिकों ने जम्मू-कश्मीर के हाजी पीर पास पर कब्जा कर लिया था. लेकिन ताशकंद समझौते के बाद इसे भी पाकिस्तान को वापस दे दिया गया. ये इलाका तब से लेकर आज तक पाकिस्तान के कब्जे में है और इस रास्ते की मदद से ही पाकिस्तान आज भी जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी भेजता है. 


अगर भारत ने वर्ष 1965 और 1971 में जीते गए इलाकों को नहीं छोड़ा होता, तो जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद पर भी वर्षों पहले रोक लगाई जा सकती थी और वर्ष 1999 में पाकिस्तान के घुसपैठिए कारगिल की पहाड़ियों पर कब्जा नहीं कर पाते और इन पर दोबारा कब्जा करने के लिए भारत के 500 से अधिक सैनिकों को शहीद नहीं होना पड़ता. 


इसे दर्शन की भाषा में कहें तो 'सुपर पावर' बनने के लिए ऊंचाई पर पहुंचना और वहां डट कर बैठ जाना बहुत जरूरी है.