नई दिल्ली: मशहूर लेखक मार्क ट्वेन (Mark Twain) ने एक बार कहा था- जितनी देर में सच अपने जूते के फीते बांधता है तब तक झूठ आधी दुनिया का चक्कर लगा चुका होता है और कल भी कुछ ऐसा ही हुआ. आज हम इसी फेक न्यूज़ पर बात करेंगे.


पूर्वी लद्दाख में घुसपैठ की फेक न्यूज़ 


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फेक न्यूज़ ये है कि कल 14 जुलाई को देश के एक बड़े अंग्रेज़ी अखबार ने ये खबर प्रकाशित की कि पूर्वी लद्दाख में कई जगहों पर चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने एक बार फिर से घुसपैठ की है और गलवान में एक बार फिर भारत और चीन की सेना के बीच हिंसक संघर्ष हुआ है, जहां 15 जून 2020 को भी संघर्ष हुआ था.


इसी रिपोर्ट में ये झूठ भी कहा गया कि चीन ने सीमा के पास रूस का S-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम तैनात कर दिया है, जो 400 किलोमीटर दूर तक किसी भी एयरक्राफ्ट को हवा में ही मार कर गिरा सकता है. 400 किलोमीटर का मतलब हुआ कि अगर भारतीय वायु सेना का कोई विमान लद्दाख में कहीं भी उड़ रहा हो, ये एयर डिफेंस मिसाइल उसे मार कर गिरा सकता है.


इस अखबार में पूर्वी लद्दाख के जिन इलाक़ों में चीनी सेना की घुसपैठ का दावा किया गया, उनमें पैंगोंग लेक सेक्टर, डेपसांग- दौलत बेग ओल्डी सेक्टर, गलवान और गोगर हॉट स्प्रिंग के इलाके हैं. बड़ी बात ये है कि इस अखबार ने इस रिपोर्ट को ये कहते हुए प्रकाशित किया कि ये सारी बातें भारतीय सेना के सूत्रों ने बताई हैं और इनकी पुष्टि भी की है, जबकि ये सच नहीं है.


जब ये खबर इस अखबार में छपी तो भारतीय सेना ने इस खबर का खंडन करते हुए, इसे फेक न्यूज़ बताया. भारतीय सेना ने कहा कि इस लेख में दी गई तमाम जानकारियां गलत और भ्रामक हैं और चीन के साथ जो इस साल फरवरी में डिसइंगेजमेंट एग्रीमेंट हुआ था, वो टूटा नहीं है जबकि इस अखबार ने लिखा कि ये समझौता टूट चुका है और चीनी सेना ने गलवान में फिर से हिंसक झड़प की है.


राहुल गांधी ने देश की सेना पर भरोसा नहीं किया


अब सोचिए कि जब ये पता चला गया कि ये एक फेक न्यूज़ है, तब हमारे देश के विपक्षी नेताओं को क्या करना चाहिए था? सीधा सा जवाब है कि भारतीय सेना पर भरोसा करना चाहिए था, लेकिन राहुल गांधी ने ऐसा नहीं किया. राहुल गांधी ने इस फेक न्यूज़ को न सिर्फ़ अपने ट्विटर हैंडल से शेयर किया, बल्कि इसे आधार बनाते हुए प्रधानमंत्री मोदी पर भी कटाक्ष किया.


उन्होंने लिखा कि 'मोदी सरकार ने विदेश और रक्षा नीति को देशीय राजनीतिक हथकंडा बनाकर हमारे देश को कमजोर कर दिया है. भारत इतना असुरक्षित कभी नहीं रहा. यानी राहुल गांधी ने देश की सेना पर भरोसा नहीं करके, इस अखबार की झूठी रिपोर्टिंग पर विश्वास किया और देश की सुरक्षा को लेकर भ्रमित करने वाली इस फेक न्यूज़ के लिए खुद एक मार्केटिंग टूल बन गए.


यहां कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी जो गलती कर रहे हैं, वो ये कि वो सेना और बीजेपी को एक समझ रहे हैं और बीजेपी के चक्कर में उन्होंने भारतीय सेना को ही अपना प्रतिद्वंद्वी समझ लिया है.


आज जब भारत में ये फेक न्यूज़ फैलाई जा रही थी, उस समय ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में शंघाई कॉरपोरेशन ऑर्गनाइजेशन समिट में भारत और चीन के विदेश मंत्रियों की मुलाकात हुई है और इस बैठक में दोनों देशों ने यथास्थिति को बरकरार रखने पर सहमति दी. विदेश एस. जयशंकर ने ये भी कहा कि भारत LAC ( Line of Actual Control) में किसी भी तरह के बदलाव को स्वीकार नहीं करेगा.


करोड़ों लोगों तक पहुंची गलत खबर


ट्विटर पर राहुल गांधी के फॉलोअर्स की संख्या 1 करोड़ 92 लाख से ज्यादा है. अब आप सोचिए जब करोड़ों फॉलोअर्स वाला एक नेता फेक न्यूज़ को वायरल बनाता है तो वो एक साथ कितने लोगों तक पहुंचती और इसे लेकर लोगों के मन में कितने बड़े पैमाने पर गलतफहमी पैदा होती है.


फेक न्यूज़ का राजनीतिक इस्तेमाल सिर्फ सेना को मनोबल कमजोर करने के लिए नहीं होता, बल्कि इस तरह की फेक न्यूज़, चुनावों से लेकर सामाजिक वर्ग को प्रभावित करने के लिए भी गढ़ी जाती हैं.



कई स्टडीज बताती हैं कि फेक न्यूज़ से चुनाव जीते जा सकते हैं, साम्प्रदायिक दंगे भड़काए जा सकते हैं, किसी व्यक्ति की छवि खराब की जा सकती है, दुष्प्रचार करके किसी कंपनी को नुकसान पहुंचाया जा सकता है और अंतरराष्ट्रीय मंच पर किसी देश की प्रतिष्ठा को भी खराब किया जा सकता है. जैसा कि पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र में कई बार कर चुका है.


सितम्बर 2017 में पाकिस्तान की यूएन रिप्रेजेंटेटिव मलिहा लोधी ने संयुक्त राष्ट्र की महासभा में फिलिस्तीन की एक लड़की की तस्वीर दिखा कर ये कहा था कि ये लड़की जम्मू-कश्मीर की है, जबकि ये एक फेक न्यूज़ थी और बड़ी बात ये है कि ये फेक खबर भारत में भी खूब वायरल हुई थी और विपक्षी नेताओं, बुद्धीजीवियों और टुकड़े टुकड़े गैंग के सदस्यों ने इस खबर को ट्रेंड भी कराया था.


70 गुना तेजी से फैलती है फेक न्यूज़


फेक न्यूज़ से साम्प्रदायिक तनाव भी पैदा किया जा सकता है. उदाहरण के लिए 15 अगस्त 2012 को जब पूरा देश स्वतंत्रता दिवस मना रहा था, उस समय उत्तर पूर्व भारत के हजारों युवा बेंगलुरु शहर छोड़ कर भाग रहे थे. उस समय ये फेक न्यूज़ फैली थी कि स्वतंत्रता दिवस खत्म होते ही बेंगलुरु में उत्तर पूर्व भारत के लोगों को निशाना बनाया जाएगा, जबकि ऐसा कुछ नहीं था.


इसके अलावा फेक न्यूज़ की मदद से देश के चुनावों को भी प्रभावित किया जा सकता है. उदाहरण के लिए 2016 के अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में लोगों को उनके फेसबुक अकाउंट्स  पर लगातार फेक न्यूज़ भेजी जाती थी, ताकि उनके मन में नेताओं और पार्टियों के प्रति गलत धारणा बनाई जा सके.


अमेरिका के MIT की एक रिसर्च के मुताबिक, सोशल मीडिया पर सच्ची और सही जानकारी वाली खबरों के मुकाबले फेक न्यूज़ 70 गुना तेजी से फैलती है और फेक न्यूज़ ज्यादा बार रीट्वीट की जाती है.



ऐसा कंटेंट ज्यादा लोगों को खींचता है


इसी तरह सही खबरों की तुलना में फेक न्यूज़ 6 गुना तेजी से 1500 लोगों तक पहुंचती है. असल में फेक न्यूज़ एक Fuel यानी ईंधन की तरह होती है और इसके हिट होने की ज्यादा सम्भावना ज्यादा होती है और ऐसा कंटेंट ज्यादा लोगों को इन प्लेटफॉर्म्स की तरफ खींचता है.


ऐसा नहीं है कि कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी ने पहली बार भारतीय सेना का मनोबल कमज़ोर करने वाली फेक न्यूज़ को प्रसारित किया है. वो पहले भी इस तरह की चीजें कर चुके हैं, जिससे चीन की सेना बहुत खुश होती है क्योंकि, इस तरह की तमाम फेक न्यूज़ से ये संदेश जाता है कि चीन की सेना बहादुर और भारतीय सेना कमजोर है, जबकि ये सच नहीं है. ये एक फेक न्यूज़ है और इसका संक्रमण बहुत खतरनाक है.