नई दिल्ली: मशहूर वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा था, 'Life is like riding a bicycle. To keep your balance, you must keep moving'. यानी जिंदगी साइकिल चलाने जैसी है, संतुलन बनाए रखने के लिए लगातार चलते रहना जरूरी है. 


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कोरोना संक्रमण के दौर में लोगों ने भी जीवन में संतुलन बनाए रखने के लिए साइकिल को अपनाया है. स्थिति ये है कि देश की राजधानी दिल्ली समेत कई शहरों में साइकिल की कमी हो गई है. साइकिल बेचने वाले छोटे-बड़े ब्रांड्स एडवांस बुकिंग करके साइकिल बेच रहे हैं. भारत के बड़े शहरों दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों में साइकिल की डिमांड 20 से 50 प्रतिशत तक बढ़ी है.


वर्ष 2019 में TERI यानी The Energy and Resource Institute की एक स्टडी में पाया गया कि अगर छोटी दूरी का सफर साइकिल से किया जाए तो देश को 1 लाख 80 हजार करोड़ का फायदा हो सकता है. लेकिन क्या हमारा देश साइकिल के लिए तैयार है? हमने ये समझने की कोशिश की है कि आपकी साइकिल और देश की सड़कों के बीच कितना तालमेल है जिस जमीन पर आपकी साइकिल चल रही है, उसकी जमीनी हकीकत असल में क्या है.


साइकिल की डिमांड बढ़ गई है, सप्लाई पूरी नहीं हो पा रही
दिल्ली की एक साइकिल मार्केट में खरीदारों की भीड़ है. हाइब्रिड कारों और स्टाइलिश बाइक के जमाने में लोग हाइब्रिड साइकिल, माउंटेन बाइक खरीदने में लगे हैं. आपने कारों की एडवांस बुकिंग देखी होगी. वेटिंग लिस्ट में अपनी पसंद की कार का इंतजार किया होगा. लेकिन वर्ष 2020 कोरोना संक्रमण की वजह से साइकिल खरीद का साल है. इस साल साइकिल के लिए भी वेटिंग लिस्ट और प्री बुकिंग है. साइकिल की डिमांड बढ़ गई है और सप्लाई पूरी नहीं हो पा रही है.


पिछले कुछ महीनों में साइकिल चलाने का ट्रेंड बढ़ गया है. देश की राजधानी में इंडिया गेट से लेकर हर मुख्य सड़क पर आपको साइकिल चलाते लोग नजर आ जाएंगे. फिट रहने के लिए और कम दूरी का सफर हो तो आफिस जाने के लिए भी लोग साइकिल पसंद कर रहे हैं.


अचानक से बढ़ी साइकिल की खरीदारी ने दुकानों के स्टॉक खत्म कर दिए हैं. आल इंडिया साइकिल मैन्युफैक्चरर एसोसिएशन के मुताबिक भारत में हर साल औसतन 2 करोड़ साइकिल बेची जाती हैं. साइकिल उद्योग हर साल 5 फीसदी की दर से बढ़ता करता है लेकिन इस साल साइकिल की खरीदारी में 55 प्रतिशत का उछाल आया है. इसलिए बड़े ब्रांड हों या लोकल मार्केट सब जगह साइकिल की कमी हो गई है.


लोग साइकिल खरीदारी तो जमकर कर रहे हैं. लेकिन उनके दिमाग में एक डर ये भी है कि क्या भारत में साइकिल चलाना सुरक्षित है? भारत के कुछ शहरों में साइकिल ट्रैक तो हैं लेकिन कहीं दोपहिया वाहनों का कब्जा, तो कहीं साइकिल ट्रैक पर दुकानें सजी हैं. साइकिल ट्रैक का डिजाइन इतना खराब है कि यहां पर ना तो साइकिल चलाना ना सुरक्षित है न ही आरामदायक.


साइकिल चलाने से फिटनेस अच्छी होती है और इससे पर्यावरण पर बोझ भी कम पड़ता है. ट्रैफिक जाम, प्रदूषण और पेट्रोल के खर्च से भी निजात मिलती है. लेकिन जब साइकिल चलाना भारतीय सड़कों पर खतरनाक हो तो कम ही लोग हिम्मत कर पाते हैं.


भारत में बने ज्यादातर साइकिल ट्रैक छोटे हैं ऐसे में साइकिल चालकों को हर हाल में मुख्य सड़कों का ही रुख करना पड़ता है. साइकिल चलाने वालों के लिए यातायात विभाग की ओर से नियमों को लेकर अलग से कोई व्यवस्था भी नहीं की गई है.


25 करोड़ लोगों को फायदा
शहरी विकास मंत्रालय के अंतर्गत भारत सरकार ने 'साइकिल 4 चेंज' की मुहिम शुरू की है जिसके तहत दिल्ली समेत सभी स्मार्ट शहरों में साइकिल ट्रैक बनाए जाने हैं. गंभीरता से इसपर काम हुआ तो इससे देश में करीब 25 करोड़ लोगों को फायदा हो सकता है.


साइकिल को लेकर आई जागरूकता अच्छी खबर है. लेकिन देश में अभी भी साइकिल से ऑफिस जाने वाला कल्चर नहीं आया है. अभी भी देश में साइकिल दो तरह के लोग चलाते हैं. पहले वो जो बाइक या कार खरीद नहीं सकते, दूसरे वो जो फिटनेस के लिए साइकिल चलाते हैं.


हाल ही में आईआईटी, दिल्ली और रुड़की के पूर्व छात्रों ने दिल्ली में साइकिल के उपयोग को लेकर एक शोध किया था. इस शोध से पता चला कि लॉकडाउन के दौरान साइकिल का इस्तेमाल करने वालों की संख्या 3 गुना तक बढ़ गई. यानी दिल्ली में साइकिल चलाने वालों की संख्या 4 प्रतिशत से बढ़कर 12 प्रतिशत हो गई है.


1400 लोगों पर सर्वे
दिल्ली के 1400 लोगों पर किए गए इस सर्वे में ज्यादातर लोग साइकिल से ऑफिस जाने की बात तो करते हैं, लेकिन उनकी चिंता ये है कि शहर में पर्याप्त साइकिल ट्रैक नहीं है और सड़क पर साइकिल चलाना खतरे से खाली नहीं है. दिल्ली में 11 लाख साइकिल सवार हैं लेकिन यहां केवल 100 किमी का साइकिल ट्रैक है.


साइकिल चालकों पर हुए इस सर्वे में कई तरह की परेशानियां बताई गईं हैं-


- 97 प्रतिशत साइकिल चालक साइकिल से ही ऑफिस जाना चाहते हैं लेकिन वो सुरक्षित साइकिल ट्रैक चाहते हैं.


- 47 प्रतिशत साइकिल चालक सड़क पर दूसरे वाहन चालकों के व्यवहार से परेशान हैं.


- 37 प्रतिशत साइकिल चालक साइकिल चोरी से परेशान हैं.


- 32 प्रतिशत साइकिल चालक खराब मौसम को लेकर चिंतित रहते हैं.


साइकिल ट्रैक को लेकर गंभीरता नजर नहीं आती
साइकिल चालकों की ये समस्याएं केवल दिल्ली की नहीं है. ये हर उस शहर की है जहां डेडिकेटेड साइकिल ट्रैक नहीं है. स्मार्ट सिटी के मास्टर प्लान में साइकिल ट्रैक का जिक्र तो होता है. लेकिन कई बड़े शहरों में साइकिल ट्रैक या तो बने नहीं हैं। और अगर बने हैं तो उनपर अतिक्रमण है. ऐसे में साइकिल चालकों के लिए सुरक्षित यात्रा करना मुश्किल हो जाता है. केंद्र और राज्य सरकारें साइकिल चलाने को लेकर प्रेरित तो करती हैं लेकिन साइकिल ट्रैक को लेकर गंभीरता की कमी साफ नजर आती है. विडंबना है कि रफ्तार के शौकीनों के लिए हमारे देश में फॉर्मूला ट्रैक तो बन गया है. लेकिन साइकिल ट्रैक को लेकर गंभीरता नजर नहीं आती.


साइकिल को लेकर लोगों की सोच में बदलाव हुआ है. साइकिल अब सिर्फ गरीबों की सवारी नहीं रही है. बाजार में 4 हजार से लेकर 1 लाख से ज्यादा कीमत तक की साइकिल उपलब्ध है.


- आपको जानकर हैरानी होगी कि हाल फिलहाल में साइकिल खरीदने वालों में 30 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जो हाई एंड साइकिलें खरीद रहे हैं.


- सिर्फ यही नहीं साधारण साइकिल खरीदने में भी लोगों की रुचि कुछ कम हुई है.


- साइकिल खरीदने वालों में 40 प्रतिशत लोग गियर वाली साइकिल खरीदना पसंद कर रहे हैं.


साइकिल चलाना आजकल स्टेटस सिंबल
ये आंकड़े बताते हैं कि लोग साइकिल खरीदारी को लेकर काफी गंभीरता से विचार करते हैं और जरूरत के हिसाब से महंगी से महंगी और अच्छी से अच्छी साइकिल खरीद रहे हैं. खरीदारी की ये प्रक्रिया बताती है कि साइकिल चलाना आजकल स्टेटस सिंबल भी बनता जा रहा है.


अब सवाल ये है कि अचानक साइकिल चलाने को लेकर लोगों में जागरूकता कैसे आई. दरअसल लॉकडाउन के दौरान साइकिलें लोगों की आवाजाही का खास जरिया बन गई. एक कारण ये भी था कि लोगों को साइकिल चलाना सुरक्षित लगा क्योंकि सड़कों पर वाहनों की आवाजाही कम थी.


- डॉक्टर्स ने लोगों को साइकिल चलाने को लेकर बहुत प्रेरित किया.


- डॉक्टर्स के मुताबिक 1 घंटे साइकिल चलने से 800 कैलोरीज बर्न की जा सकती है.


- साइकिल चलाने से शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता भी बढ़ती है. पैरों की मांसपेशियां और हड्डियां मजबूत होती हैं.


- साइकिल चलाने से सांस लेने में आ रही समस्याओं से राहत मिल सकती है.


- रोजाना साइकिल चलाने वालों को दिल से जुड़ी बीमारियां का खतरा कम होता है.


- और साइकिल चलाने से डिप्रेशन और एंजाइटी की समस्या भी दूर होती है.


साइकिलों की संख्या कम हो रही
साइकिल बनाने के मामले में भारत चीन के बाद दूसरे नंबर पर है. वर्ष 1960 से लेकर 1990 तक भारत के ज्यादातर परिवारों के पास साइकिलें थीं. फिलहाल दुनिया में सबसे ज्यादा साइकिलें आज भी चीन की सड़कों पर चलती हैं. यहां हर एक घर में साइकिल होती है। पूरी दुनिया की बात करें तो हर साल 10 करोड़ साइकिलें बिकती हैं. हालांकि दुनिया की आबादी के हिसाब से देखें तो साइकिलों की संख्या कम हो रही है.


दुनियाभर के देश अपने यहां लोगों को साइकिल चलाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. इसमें फ्रांस, इंग्लैड और नीदरलैंड्स सबसे आगे हैं. 29 जुलाई को इंग्लैड के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की ये तस्वीरें आई थीं जिसमें वो साइकिल चलाते नजर आए थे. कोरोना संक्रमण काल में उन्होंने ने लोगों को फिट रहने का संदेश इस तरह से दिया था. दरअसल इंग्लैड में लोगों में बढ़ रहे मोटापे को लेकर ये एक तरह का जागरूकता अभियान था. बोरिस जॉनसन की ये साइकिल मेड इन इंडिया साइकिल थी जो हीरो कंपनी ने यूके में ही बनाई थी.


28 जून 2017 की पीएम मोदी की तस्वीरों ने भी लोगों को साइकिल चलाने को लेकर प्रेरित किया था. पीएम मोदी को ये साइकिल नीदरलैंड के पीएम मार्क रट ने गिफ्ट की थी. नीदरलैंड में लोग साइकिल चलाना बहुत पसंद करते हैं. यहां की जनसंख्या लगभग 1 करोड़ 60 लाख है और लोगों के पास 1 करोड़ 80 लाख से ज्यादा साइकिलें हैं.