DNA ANALYSIS: 99.99% वाली `नाकामी`, दाखिले की दिक्कत का `नंबर गेम`
दिल्ली यूनिवर्सिटी में एडमिशन के लिए इस बार 3 लाख 53 हजार से ज्यादा छात्रों ने आवेदन किया है, जबकि इसके मुकाबले दिल्ली यूनिवर्सिटी में उपलब्ध सीटों की संख्या सिर्फ 62 हजार है. यानी 2 लाख 92 हजार छात्रों को चाहककर भी एडमिशन नहीं मिलेगा और उन्हें निराश होना पड़ेगा.
नई दिल्ली: 12वीं की बोर्ड की परीक्षा (12th Board Exam) पास करने के बाद लगभग हर स्टूडेंट का ये सपना होता है कि उसे किसी अच्छे कॉलेज में एडमिशन मिले. लेकिन इसके लिए उसे अच्छे नंबर्स से पास होना होता है. अब सवाल ये है कि ये अच्छे मार्क्स किसे कहा जाएगा, क्योंकि दिल्ली यूनिवर्सिटी (Delhi University) के कई कॉलेजों की पहली कट ऑफ लिस्ट (Cut-off list) इस बार 100 प्रतिशत तक पहुंच गई है. जिन छात्रों को 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं में 100 प्रतिशत मार्क्स मिले हैं, पहली लिस्ट में उन्हीं छात्रों का एडमिशन सुनिश्चित हो पाएगा. यानी 99.99 प्रतिशत मार्क्स लाने वाले छात्रों का भी एडमिशन का सपना पूरा नहीं हो पाएगा. दिल्ली यूनिवर्सिटी में पहली कट ऑफ के आधार पर एडमिशन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. छात्र आज शाम 5 बजे तक दिल्ली विश्वविद्यालय के पोर्टल पर ऑनलाइन एडमिशन (Online Admission) ले सकते हैं.
3 लाख 53 हजार से ज्यादा छात्रों ने किया आवेदन
दिल्ली यूनिवर्सिटी में एडमिशन के लिए इस बार 3 लाख 53 हजार से ज्यादा छात्रों ने आवेदन किया है, जबकि इसके मुकाबले दिल्ली यूनिवर्सिटी में उपलब्ध सीटों की संख्या सिर्फ 62 हजार है. यानी 2 लाख 92 हजार छात्रों को चाह कर भी एडमिशन नहीं मिलेगा और उन्हें निराश होना पड़ेगा.
यहां तक कि जिन छात्रों ने कड़े परिश्रम के दम पर 90 प्रतिशत, 95 प्रतिशत या उससे भी ज्यादा अंक हासिल किए हैं. उनके लिए भी दिल्ली यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेना आसान नहीं है.
पिछले वर्ष के मुकाबले बढ़ गई कट-ऑफ
दिल्ली यूनिवर्सिटी के मशहूर एलएसआर कॉलेज ने इस बार BA (Hons) Economics, BA (Hons) Political Science और BA (Hons) Psychology जैसे कोर्सेज में एडमिशन के लिए 100 प्रतिशत कट ऑफ निर्धारित किया है यानी जिन छात्राओं के बेस्ट ऑफ 4 सब्जेक्ट में आए मार्क्स का टोटल सौ होगा, उन्हें ही इस कॉलेज के इन कोर्सेज में एडमिशन मिल पाएगा.
लेडी श्रीराम कॉलेज के ज्यादातर कोर्सेज की कट-ऑफ पिछले वर्ष के मुकाबले करीब 2 प्रतिशत तक बढ़ गई है. लेकिन ये सिर्फ एक कॉलेज की कहानी नहीं है.
इसी तरह दिल्ली यूनिवर्सिटी के मशहूर श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स के बी.कॉम ऑनर्स की पहली कट ऑफ पिछले वर्ष के मुकाबले 1 प्रतिशत बढ़कर 99.5 प्रतिशत हो गई है. इस कॉलेज में पढ़ाए जाने वाले बाकी के पॉपुलर कोर्सेज का भी यही हाल है.
मिरांडा हाउस में इतिहास, इकोनॉमिक्स, पॉलिटिकल साइंस और इंग्लिश जैसे कोर्सेज की कट ऑफ 98.75 प्रतिशत से 99 प्रतिशत के बीच है.
95 प्रतिशत मार्क्स लाने वाले छात्रों की निराशा
आपको याद होगा एक जमाने में 80, 85 और 90 प्रतिशत अंकों को ही सफलता की गारंटी माना जाता था लेकिन अब हालत ये हैं कि इस बार 95 प्रतिशत मार्क्स लाने वाले छात्रों को भी निराश होना पड़ सकता है.
ऐसा इसलिए है क्योंकि इस बार अकेले सीबीएसई की 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं में 95 प्रतिशत से ज्यादा अंक हासिल करने वाले छात्रों की संख्या 38 हजार से ज्यादा है. ये पिछले वर्ष के मुकाबले दोगुनी संख्या है, पिछले वर्ष 95 प्रतिशत अंक लाने वाले छात्रों की संख्या 17 हजार से ज्यादा थी. इसी प्रकार 90 प्रतिशत से ज्यादा मार्क्स लाने वाले छात्रों की संख्या 1 लाख 60 हजार से ज्यादा है और ये संख्या भी पिछले वर्ष के मुकाबले 58 प्रतिशत ज्यादा है.
यानी देशभर के जिन छात्रों ने सीबीएसई की 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं में 90 या 95 प्रतिशत से ज्यादा अंक हासिल किए हैं. अगर वो सारे छात्र एक साथ दिल्ली यूनिवर्सिटी में एडमिशन के लिए आवेदन कर दें तो इन होनहार छात्रों में से भी 31 प्रतिशत छात्रों को एडमिशन मिल पाएगा जबकि 69 प्रतिशत छात्रों को खाली हाथ वापस लौटना होगा.
ये सब इसलिए हो रहा है क्योंकि बोर्ड परीक्षाओं में छात्रों को पहले के मुकाबले ज्यादा मार्क्स मिलने लगे हैं. बहुत सारे राज्य और बोर्ड अपनी छवि सुधारने के लिए छात्रों को दिल खोलकर नंबर देते हैं. इससे होता ये है कि परीक्षा के दौरान तो प्रतियोगिता की भावना के साथ समझौता हो जाता है लेकिन जब प्रतियोगिता एडमिशन को लेकर होती है, तब लाखों छात्रों को निराश होना पड़ता है.
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि जिन छात्रों को एडमिशन मिल भी जाएगा तो क्या उन्हें भविष्य में उनकी मनपसंद नौकरियां या काम मिल पाएगा ? क्योंकि जो गला काट प्रतियोगिता एडमिशन को लेकर होती है. वैसी ही प्रतियोगिता का सामना नौकरी ढूंढने के दौरान करना पड़ता है.
नौकरियों की कमी सबसे बड़ी समस्या
Pew Research Centre की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 76 प्रतिशत युवा नौकरियों की कमी को सबसे बड़ी समस्या मानते हैं.
कुछ वर्ष पहले देश के युवाओं के बीच एक सर्वे किया गया था जिसमें 66 प्रतिशत युवाओं ने माना था कि योग्यता होने के बावजूद उन्हें उनकी पसंद की नौकरी नहीं मिल पाती. यानी भारत में हर 10 में 6 युवा ऐसी नौकरी कर रहे हैं जो वो करना नहीं चाहते. इनमें से 73 प्रतिशत युवा तो ऐसे थे, जो अपनी मनपसंद नौकरी पाने के लिए भारत छोड़कर जाने के लिए भी तैयार हैं.
लेकिन इसका दूसरा पहलू ये भी है कि हर वर्ष जो करोड़ों युवा कॉलेज पास करके निकलते हैं, उनमें से सिर्फ 58 प्रतिशत ही नौकरी के योग्य होते हैं. और शायद यही वजह है कि वर्ष 2018 में जब उत्तर प्रदेश में चपरासी के 62 पदों के लिए आवेदन मंगाए गए तो लाखों युवाओं ने इसके लिए आवेदन कर दिया, इनमें से 37 हजार लोग पीएचडी धारक थे, जबकि 50 हजार ग्रेजुएट थे.
इसी तरह इस वर्ष छत्तीसगढ़ में चपरासी के 12 पदों के लिए 300 आवेदन आए और इनमें से ज्यादातर ग्रेजुएट थे. ये सिर्फ कुछ उदाहरण हैं. आप ऐसी कहानियां लगभग हर साल और हर राज्य में सुनते होंगे. इन स्थितियों को देखकर साफ है कि एक तरफ हर साल कॉलेजों में एडमिशन के लिए कट ऑफ बढ़ जाती है तो दूसरी तरफ जब ये छात्र पास होकर निकलते हैं तो इनके पास नौकरियां तक नहीं होतीं. ये बहुत चिंताजनक स्थिति है और इसमें सुधार किए बगैर भारत विश्व गुरू नहीं बन सकता.