नई दिल्ली: आज हम आपको भारत में दहेज प्रथा पर की गई अब तक की सबसे बड़े स्टडी के बारे में बताते हैं. ये स्टडी वर्ल्ड बैंक ने वर्ष 1960 से लेकर 2008 तक ग्रामीण भारत में हुई 40 हजार शादियों पर की है और इसमें कहा गया है कि भारत में दहेज प्रथा आज भी जारी है. बस अंतर इतना है कि आज दहेज, दहेज के नाम से नहीं लिया जाता है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

- कुछ लोग दहेज को गिफ्ट यानी उपहार कहना पसंद करते हैं.


- कुछ लोग कहते हैं कि वो दहेज नहीं ले रहे हैं, बल्कि ये तो समाज के रीति रिवाज हैं.


- और कुछ लोग कहते हैं कि हमें दहेज नहीं चाहिए, बस आप हमारे रिश्तेदारों का सम्मान करना मत भूलना.


 95 प्रतिशत शादियों में दिया जाता है दहेज


आज के जमाने में दहेज, गिफ्ट, रीति रिवाज और सम्मान के नाम पर लिया जाता है और लोग खुद को ये तसल्ली देते हैं कि उन्होंने तो दहेज लिया ही नहीं है, लेकिन ये नई स्टडी विस्तार से इसके बारे में बताती हैं और कहती है कि भारत भले चांद और मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंच गया हो, लेकिन उसकी जड़े अब भी दहेज प्रथा की परंपरा से जकड़ी हुई हैं और इसीलिए आज हम आपसे इस पर चर्चा करना चाहते हैं.


सबसे पहले आपको इस स्टडी के बारे में बताते हैं-


भारत में पहली बार वर्ष 1961 में दहेज को लेकर कानून बना था और इसे अपराध की श्रेणी में डाल दिया गया था, लेकिन ये विडम्बना ही है कि इसके खिलाफ कानून बनने के बाद भी भारत में दहेज प्रथा बंद नहीं हुई. इस अध्ययन में वर्ष 1960 से लेकर 2008 के दौरान ये पाया गया कि 95 प्रतिशत शादियों में दहेज दिया जाता है. यानी भारत में हर 100 में से 95 शादियों में दहेज प्रथा निभाई जाती है.


इस स्टडी में दहेज के खर्च का भी पूरा आकलन किया गया है. इसके मुताबिक वर्ष 1960 में भारत के गांवों में दहेज का औसतन खर्च 18 हजार रुपये होता था, जो 1972 में बढ़ कर 26 हजार रुपये हो गया और फिर 2008 आते आते ये खर्च 38 हजार के पास पहुंच गया.


इसी स्टडी में ये भी बताया गया है कि भारत में होने वाली शादियों में वैसे तो लेन देन दोनों तरफ से होता है, लेकिन गिफ्ट्स के नाम पर दुल्हन के माता पिता का खर्च दूल्हे के परिवार से काफी ज्यादा होता है.


इस अध्ययन में पाया गया कि जहां दूल्हे का परिवार, दूल्हन के परिवार को औसतन 5,000 रुपए के उपहार देता है तो वहीं दुल्हन के परिवार की ओर से दी गई तोहफ़ों की राशि सात गुना होती है. यानी लगभग 32 हजार रुपये होती है.


सबसे बड़ा खर्च बेटी की शादी


सबसे अहम बात इसमें ये बताई गई है कि 2007 में भारत के गांवों में कुल दहेज, वार्षिक घरेलू आय का 14% था. यानी एक परिवार की सालाना आय का 14 प्रतिशत दहेज देने में खर्च हो जाता है और इससे ये बात स्पष्ट हो जाती है कि भारत में आज भी किसी भी परिवार के लिए सबसे बड़ा खर्च बेटी की शादी में, दूल्हे के परिवार को दहेज देने का है और इसके लिए भारत में लोग जीवनभर अपनी जमा पूंजी इकट्ठा करते हैं.


धर्म के अनुसार दहेज का ट्रेंड


हालांकि ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ हिन्दू धर्म में ही दहेज प्रथा मजबूत है. इस्लाम, सिख और ईसाई धर्म में भी दहेज प्रथा प्रचलित है. हिन्दू और इस्लाम धर्म में दहेज का औसतन खर्च लगभग बराबर होता है, वहीं सिख और ईसाई धर्म में दहेज का खर्च काफी ज्यादा है. 2008 में सिख धर्म में दहेज का औसतन खर्च 52 हजार रुपये था और ईसाई धर्म में ये 48 हजार रुपये था.


यहां समझने वाली बात ये है कि वर्ष 1960 में इन धर्मों में दहेज का ये खर्च हिन्दू और इस्लाम धर्म के बराबर था.


इसके अलावा भारत में दहेज में जातियों का भी काफी प्रभाव दिखता है. जहां ऊंची जाति के लोग दहेज पर ज्यादा पैसा खर्च करते हैं तो वहीं SC, ST, और OBC समुदाय के लोग दहेज पर इतना पैसा खर्च नहीं करते.


हर दिन 21 महिलाओं की मौत 


सबसे महत्वपूर्ण बात इस अध्ययन में बताई गई है कि दहेज के कारण कई बार महिलाओं को हाशिए पर धकेल दिया जाता है और उनके साथ घरेलू हिंसा भी होती है और कई बार तो दहेज की वजह से मौत भी हो जाती है.


इसे आप कुछ आंकड़ों से समझ सकते हैं-


-भारत में हर दिन दहेज की वजह से 21 महिलाओं की मौत होती है.


-वर्ष 2016 में 7 हजार 621 महिलाओं ने दहेज की वजह से अपनी जान गंवा दी


-2017 में 7 हजार 446 और 2018 में 7 हजार 166 महिलाओं ने दहेज के कारण दम तोड़ दिया.


ये आंकड़े नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के हैं.


15 प्रतिशत मामलों में ही फैसला महिलाओं के पक्ष में 


यहां एक और बड़ी बात ये है कि भारत में दहेज के जो मामले कोर्ट में पहुंचते हैं, उनमें सिर्फ 15 प्रतिशत मामलों में ही फैसला महिलाओं के पक्ष में आता है. संख्या के हिसाब से देखें तो हर सात में से सिर्फ एक मामले में आरोपियों को दोषी करार दिया जाता है.


कुछ समय पहले भारत के एक एनजीओ ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारत में लगभग 60 प्रतिशत लोग अपने बेटी की शादी करने के लिए बैंक और दूसरे माध्यमों से भारी भरकम कर्ज लेते हैं और ये कर्ज कई माता पिता के लिए जानलेवा साबित होता है.


बड़ी बात ये है कि इन मौतों का सही कारण कभी सामने नहीं आता और ऐसे मामलों को आत्महत्या मान कर भुला दिया जाता है और ये भी एक विडम्बना है कि भारत में लोग दहेज पर लंबे लंबे निबंध तो लिख सकते हैं, इस पर फिल्में भी बनाई जा सकती हैं और टेलीविजन के शो भी इस पर लिखे जा सकते हैं लेकिन जब दहेज का प्रस्ताव आता है तो कोई इसे ठुकराना नहीं चाहता है और आज की कड़वी सच्चाई है. 


भारत के लोग दहेज लेने से क्यों परहेज नहीं करते?


हमने इस पर आपके लिए एक रिपोर्ट भी तैयार की है, जो आपको ये बताएगी कि भारत के लोग दहेज लेने से क्यों परहेज नहीं करते?


देश में दहेज का नाम भले ही बदलकर गिफ्ट कर दिया गया हो, लेकिन वो है दहेज ही. कानून सख्त हुए हैं, लेकिन दहेज लेने का तरीका भी बदलते समय के साथ बदल गया है. दहेज के मामले बीते सालों में लगातार बढ़े हैं. इन मामलों में कुछ सही और कुछ गलत भी पाए गए.



माना जाता है कि दहेज के मामले कम आमदनी वाले परिवारों में ज्यादा देखने को मिलते हैं, लेकिन सच्चाई ये है कि दहेज की मांग का अमीरी-गरीबी से कोई लेना देना नहीं है.


दहेज की कहानियां


हैदराबाद की रहने वाली वीणा अपने बेटे के साथ रहती हैं. इनके एनआरआई पति ने इनके परिवार से दहेज की मांग की थी और वो इनको लगातार परेशान करता था. फिलहाल वीणा का पति पवन अमेरिका में रहता है और इनके खर्च के लिए उसकी ओर से मदद भी नहीं मिलती. अब वीणा ने पति के खिलाफ मामला दर्ज करवाया है.


राजस्थान के सीकर में दहेज न मिलने की वजह से दूल्हे ने दुल्हन को वरमाला की रस्म के बाद ही छोड़ दिया. अब दूल्हे के परिवार के खिलाफ मामला दर्ज करवाया गया है.


ऐसे ही कहानी दहेज पीड़ित लक्ष्मी की भी है. लक्ष्मी की उम्र 32 साल है. उनकी शादी में लक्ष्मी के पिता ने अपने दामाद को अपनी हैसियत से बढ़कर दहेज दिया, लेकिन दामाद का लालच बढ़ता रहा और लक्ष्मी के पिता मजबूरी में कर्ज लेकर दामाद की इच्छा पूरी करते रहे. जब पैसा नहीं बचा, तो लक्ष्मी को यातनाएं दी गईं और अब लक्ष्मी अपने पति से अलग रहती हैं. लक्ष्मी न्याय की उम्मीद से कोर्ट भी गईं, लेकिन केस तब खत्म हुआ जब लक्ष्मी ने कोई डिमांड नहीं रखी.


ऐसा नहीं है कि दहेज की प्रथा हिंदू रीति रिवाज से जुड़ा मसला है. परवीन भी दहेज पीड़ित हैं. इनके निकाह में पिता ने दामाद को कैश और कई दूसरी चीजें दीं. उसके बाद भी कई सालों तक पैसों की डिमांड होती रही. मांग पूरी नहीं हुई तो परवीन के साथ मारपीट भी होती. कई सालों तक यातनाएं सहने के बाद परवीन ने केस दर्ज करवाया, लेकिन परवीन के पति ने अब दूसरी शादी कर ली है.


परवीन, वीणा या लक्ष्मी जैसी इन लड़कियों को नहीं पता कि उनके पिता ने जो पैसा शादी के वक्त लड़के के परिवार को दिया वो वापस आएगा भी या नहीं. कोर्ट में भी मामला तभी खत्म हो पाता है, जब बीच का कोई रास्ता निकलता है. नहीं तो सालों साल ये महिलाएं कोर्ट के चक्कर काटती रह जाती हैं.


कई बार लोग सोचते हैं कि दहेज के मामले गांवों में ज्यादा होते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. शहरों में लड़कियां अपने अधिकार तो जानती हैं, लेकिन फिर भी दहेज के चक्रव्यूह में रीति रिवाज के नाम पर फंस ही जाती हैं.



दहेज विरोधी कानून


सोशियोलॉजिस्ट चित्रा अवस्थी कहती हैं, दहेज विरोधी कानून उन लोगों को सजा देने के लिए है जो दहेज के नाम पर शोषण करते हैं, लेकिन इस कानून का दुरुपयोग भी होता है. एक जमाने में जिसे स्त्रीधन कहकर सम्मान दिया जाता था उसी को लालच की चादर में लपेटकर आज दहेज का रूप दिया गया है. हालांकि युवाओं की बदलती मानसिकता ने इस प्रथा को बहुत हद तक रोका है, लेकिन सच्चाई ये है कि लालच के अंत के साथ ही ये प्रथा पूरी तरह से खत्म हो पाएगी.


आज हम आपसे यही कहना चाहते हैं कि हमारे देश में दहेज प्रथा पर लंबे लबे निबंध तो लिखे जाते हैं, इस पर फिल्में भी बनाई जा सकती हैं और टेलीविजन के शो भी इस पर लिखे जाते हैं, लेकिन जब दहेज का प्रस्ताव आता है तो कोई इसे ठुकराना नहीं चाहता है और ये आज की कड़वी सच्चाई है.