Farmers Protest: महाराष्ट्र सरकार का सेलिब्रिटीज के Tweet की जांच का फैसला, समझिए क्यों है संविधान के खिलाफ?
पिछले वर्ष भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली, पूर्व क्रिकेटर जहीर खान और सूर्य कुमार यादव ने ट्विटर पर अपनी प्रोफाइल पिक्चर बदलते हुए महाराष्ट्र पुलिस का लोगो लगा लिया था और तब इन सभी खिलाड़ियों ने एक जैसे ट्वीट किए थे, लेकिन तब महाराष्ट्र सरकार ने किसी तरह की कोई जांच नहीं की.
नई दिल्ली: आज हमारा एक जरूरी सवाल है कि क्या देश के पक्ष में बोलना अपराध है और क्या भारत में आज ऐसी परिस्थितियां बन गई हैं कि रिआना और ग्रेटा थनबर्ग को भी इस देश में भारत रत्न मिल सकता है?
देशभक्ति का इनाम
आज के हमारे इस विश्लेषण में हम इन सभी सवालों का DNA समझने की कोशिश करेंगे. लेकिन सबसे पहले हम आपको उस खबर के बारे में बताते हैं, जिस पर देशभर में चर्चा हो रही है. ये खबर महाराष्ट्र से आई है, जहां सरकार ने ये फैसला किया है कि वो क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर, स्वर कोकिला के नाम से मशहूर लता मंगेशकर, अभिनेता अक्षय कुमार और भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली द्वारा किए गए उन ट्वीट्स की जांच करवाएगी, जो भारत को बदनाम करने वाली अंतरराष्ट्रीय साजिश के जवाब में किए गए थे. सोचिए ये है देशभक्ति का इनाम.
राष्ट्रप्रेम में राजनीति तलाशने वाली मानसिकता
महाराष्ट्र में इस समय शिवसेना, कांग्रेस और NCP की गठबंधन सरकार है और इस सरकार में एनसीपी के कोटे से गृह मंत्री अनिल देशमुख ने इस जांच के आदेश दिए हैं और सबसे अहम कि ये कदम कांग्रेस नेताओं की शिकायत के बाद उठाया गया है. सोचिए भारत की आज़ादी में जिस पार्टी की भूमिका को बार बार याद किया जाता है, वो पार्टी आज कहां खड़ी है और हमें ये कहने में भी कोई संकोच नहीं कि आज इंडियन नेशनल कांग्रेस, Anti National कांग्रेस बन कर रह गई है और हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि रिआना, ग्रेटा थनबर्ग और पोर्नस्टार मिया खलीफा जब किसान आंदोलन की आड़ में भारत के खिलाफ दुष्प्रचार करती हैं, तो कांग्रेस को कोई आपत्ति नहीं होती. लेकिन जब इस प्रोपेगेंडा के खिलाफ भारत रत्न सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर अपना पक्ष रखते हैं तो कांग्रेस को तुरंत परेशानी होनी शुरू हो जाती है और यही परेशानी उसके शासन वाले राज्य में जांच का विषय बन जाती है और हम चाहते हैं कि आज आप इस जांच के पीछे छिपी उस मानसिकता को भी समझें जो राष्ट्रप्रेम में भी राजनीति तलाश लेती है और इस राजनीति को समझने के लिए अब आपको हमारी बातें बहुत ध्यान से समझनी चाहिए.
ये पूरी जांच भारत के विदेश मंत्रालय द्वारा दिए गए हैशटैग से जुड़ी है और ये हैशटैग थे India Together और India Against Propaganda. इस हैशटैग पर भारत में लाखों ट्वीट हुए और ट्वीट करने वालों में भारत रत्न सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर भी थीं.
उन्होंने अपने ट्वीट्स में भारत के आंतरिक मामलों में बाहरी लोगों के दखल का विरोध किया. एकजुटता की बात की और ये लिखा कि भारत अपने मसले खुद सुलझा सकता है, लेकिन ये दुर्भाग्य ही है कि कांग्रेस ने देश के पक्ष में हुए इन ट्वीट्स में राजनीति ढूंढ ली और इस राजनीति का ही ये नतीजा है कि महाराष्ट्र सरकार अब ये जांच करेगी कि क्या इन ट्वीट्स के पीछे केंद्र सरकार का कोई दबाव था.
इस फैसले से जो दो बड़ी बातें निकलकर आती हैं वो ये कि महाराष्ट्र सरकार के पास इस मामले में दो विकल्प थे या तो वो भारत के खिलाफ दुष्प्रचार करने वाली रिआना और ग्रेटा थनबर्ग का साथ देती या वो देशहित में भारत रत्न सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर के विचारों का समर्थन करती और ये दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि महाराष्ट्र सरकार ने देश के खिलाफ जाकर रिआना और ग्रेटा थनबर्ग का साथ दिया और दुनिया भर में भारत का मान बढ़ाने वाले सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर ने शायद इसकी कभी कल्पना भी नहीं की होगी। उन्होंने ये सोचा भी नहीं होगा कि जिस देश ने उन्हें अपना रत्न माना, उसी देश की एक राज्य सरकार राष्ट्रीय एकता और अखंडता की बात करने के लिए उनके ख़िलाफ़ जाँच शुरू कर देगी.
आरोपों में कितनी सच्चाई?
महाराष्ट्र सरकार की दलील है कि इन सभी ट्वीट्स में एक जैसी भाषा और शब्द इस्तेमाल हुए हैं. लेकिन इन आरोपों में कितनी सच्चाई है आज आपको ये भी समझना चाहिए.
Resolved और Amicable ये दो शब्द ऐसे हैं, जो लता मंगेशकर, विराट कोहली, अक्षय कुमार, सायना नेहवाल और भारतीय क्रिकेट टीम के हेड कोच रवि शास्त्री के ट्वीट में थे और इनमें पहले शब्द का हिंदी में अर्थ है सुलझाना और दूसरे शब्द का मतलब है सौहार्दपूर्ण.
सिर्फ इन्हीं दो शब्दों के आधार पर महाराष्ट्र सरकार ने जांच का फैसला ले लिया. हालांकि यहां समझने वाली बात ये है कि ये सभी ट्वीट्स हैशटैग India Together और India Against Propaganda के समर्थन में हुए थे.
प्रोपेगेंडा के खिलाफ आवाज उठाना अपराध कैसे?
हमारा सवाल है कि देश के लोगों को एकजुट रहने का संदेश देना और देश के खिलाफ चलाए जा रहे प्रोपेगेंडा के खिलाफ आवाज उठाना अपराध कैसे हो सकता है? क्या ये लता मंगेशकर की गलती थी कि उन्होंने रिआना के बजाय देश का साथ दिया और क्या सचिन तेंदुलकर का ये सोचना गलत था कि भारत के लोग एकजुट हैं और हमारा देश आंतरिक विषयों को सुलझाने में सक्षम है? क्योंकि महाराष्ट्र में हुआ जांच का फैसला हमें इन्हीं सवालों की ओर ले जाता है और हमें लगता है कि ऐसा करके महाराष्ट्र ने दुनिया के सामने भारत के लिए एक गलत उदाहरण पेश किया है. इससे ये भी पता चलता है कि जिस टुकड़े टुकड़े गैंग की हम बात करते हैं वो भारत को तो नहीं तोड़ पाया लेकिन उसने वैचारिक तौर पर भारत के टुकड़े टुकड़े करने की नींव डाल दी है.
आज पश्चिम बंगाल में ''एक भारत'' के सिद्धांत को चुनौती दी जाती है. वहां की सरकार नियमों को अपनी सहूलियत के हिसाब से बदल देती है. महाराष्ट्र में देश के नागरिकों के लिए नियम बदल जाते हैं और जहां जहां कांग्रेस की सरकारें हैं, वहां ऐसे कानून लाए जाते हैं, जो भारत में पनपे वैचारिक मतभेद को एक गंभीर रूप देते हैं और इससे पता चलता है कि टुकड़े टुकड़े गैंग अब भी एक्टिव मोड में काम कर रहा है.
महात्मा गांधी जीवित होते, तो उनके खिलाफ भी होती कार्रवाई?
इन स्थितियों को देख कर ये कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि अगर आजादी के नायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आज अपना लोकप्रिय नारा तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा दिया होता तो शायद उनके खिलाफ भी जांच शुरू हो जाती और हो सकता है विपक्षी पार्टी के शासन वाले राज्यों में उनके खिलाफ कई एफआईआर दर्ज कर ली जातीं और ट्विटर भी उनका अकाउंट सस्पेंड कर देता और कल्पना कीजिए अगर महात्मा गांधी आज जीवित होते और करो या मरो का नारा देते तो उनके खिलाफ किस तरह की कार्रवाई की जाती. हमें लगता है कि इस नारे के लिए महात्मा गांधी पर लोगों को आत्महत्या के लिए उकसाने जैसे गंभीर आरोप लगा दिए जाते क्योंकि, आज कुछ ऐसा ही हो रहा है.
आज ये समझने का भी दिन है कि जब किसी देश में राष्ट्रीय एकता और अखंडता की बात करने वाले लोगों को कानूनी जांच से डराया जाता है तो कैसे हम एक ऐसे देश का निर्माण कर रहे होते हैं, जहां के नागरिक अपनी देशभक्ति और राष्ट्रप्रेम को जाहिर करने में भी डर महसूस करते हैं और जब ऐसा होता है तो असल मायनों में ये लोकतंत्र पर सबसे बड़ा हमला होता है.
समझिए महाराष्ट्र सरकार का फैसला क्यों है संविधान के खिलाफ?
आज आपको महाराष्ट्र सरकार का भी असली चरित्र समझना चाहिए क्योंकि, आपको याद होगा जब पिछले वर्ष देश कोरोना वायरस की महामारी से जूझ रहा था तब महाराष्ट्र इससे प्रभावित होने वाले राज्यों में पहले स्थान पर था और तब सरकार और महाराष्ट्र पुलिस के समर्थन में ट्विटर पर एक अभियान चलाया गया था. इस अभियान के तहत भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली, पूर्व क्रिकेटर जहीर खान और सूर्य कुमार यादव ने ट्विटर पर अपनी प्रोफाइल पिक्चर बदलते हुए महाराष्ट्र पुलिस का लोगो लगा लिया था और तब इन सभी खिलाड़ियों ने एक जैसे ट्वीट किए थे, लेकिन तब महाराष्ट्र सरकार ने किसी तरह की कोई जांच नहीं की और राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख उस समय इन खिलाड़ियों को ट्विटर पर धन्यवाद दे रहे थे.
इससे पता चलता है कि हमारे देश में राजनीति के नाम पर सब कुछ होता है और कुछ नेता इसके लिए अपने देश के स्वाभिमान से भी समझौता कर लेते हैं. आज आपको ये भी समझना चाहिए कि महाराष्ट्र सरकार ने जांच का जो फैसला लिया है, वो कैसे संविधान के खिलाफ है. इसे आप कुछ पॉइंट्स में समझिए-
-पहली बात इस तरह की जांच पूरी तरह अंसवैधानिक है और ये सीधे-सीधे उन लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, जिनके खिलाफ जांच की बात कही गई है.
-दूसरी बात, सुप्रीम कोर्ट ने Right to Privacy को मौलिक अधिकार बताते हुए ये स्पष्ट किया है कि कोई भी व्यक्ति किसके कहने पर ट्वीट करता है और सलाह लेता है ये Right to Privacy के अधिकार के अंदर आता है. यानी किसी भी सरकार को ये जानने का अधिकार नहीं है कि देश के नागरिक किसके कहने पर और किससे सलाह लेकर ट्वीट कर रहे हैं. ये उनका मौलिक अधिकार है और महाराष्ट्र सरकार ने जांच का फैसला लेकर इसका उल्लंघन किया है.
-तीसरी बात भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत लिखित और मौखिक रूप से सभी नागरिकों को अपने विचारों और मत को प्रकट करने की अभिव्यक्ति है. हालांकि अनुच्छेद 19 के खंड 2 से खंड 6 में ये भी उल्लेख मिलता है कि अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार निरपेक्ष नहीं है यानी ये असीमित नहीं है. इसकी भी कुछ सीमाएं हैं..और इसके प्रति नागरिकों की भी कई जिम्मेदारियां हैं. लेकिन इनमें कहीं भी ये नहीं लिखा कि देश का समर्थन करना अभिव्यक्ति की आजादी के दायरे में नहीं आता. हमारे देश का संविधान भारत के 135 करोड़ लोगों को देशभक्ति की पूरी आजादी देता है, लेकिन राजनीति इस अधिकार को खोखला कर देती है और जब ऐसा होता है तो देश को असंवैधानिक फैसलों से गुजरना पड़ता है, जैसा महाराष्ट्र में हुआ है.
-इस तरह के फैसलों से ये भी पता चलता है कि हमारे देश के कुछ नेताओं का बस चले तो वो रिआना और ग्रेटा थनबर्ग जैसे लोगों को भारत रत्न से भी सम्मानित कर सकते हैं क्योंकि, ऐसा करना उनकी राजनीति को सूट भी करेगा.
-इस विषय पर केंद्र सरकार की तरफ से भी प्रतिक्रिया आई है. इसके अलावा कई विपक्षी पार्टियों ने भी इस पर अपनी राय रखी है और महाराष्ट्र सरकार ने भी जांच के फैसले का बचाव किया है.
कल्पना कीजिए कि अगर आज हमारा देश अपने 135 करोड़ लोगों से कुछ कहना चाहता हो तो वो क्या कहता? हमारा देश कहता कि सत्ता पक्ष के राज्यों में तो मैं शान से चलता हूं, मेरी बात भी होती है और मेरा सम्मान भी होता है, लेकिन विपक्षी पार्टियों के राज्यों में मेरी परिभाषा बदल जाती है और मेरी तारीफ करने वालों को शक की नजरों से देखा जाता है. हमारा देश नागरिकों के राष्ट्रप्रेम पर राजनीतिक हमले देख कर आज काफी निराश होता.
पीएम मोदी के भाषण में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जिक्र
भारत के लोगों के मन में उपजे राष्ट्रवाद को चोट पहुंचाने वाली इस खबर को आज आपको एक दूसरे पहलू से भी समझना चाहिए और ये पहलू आजादी के नायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ा है. कल राज्य सभा में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण पर अपने धन्यवाद प्रस्ताव का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेताजी का जिक्र किया और उन्हें आजाद हिंद फौज की प्रथम सरकार का प्रथम प्रधानमंत्री बताया.
आपको याद होगा Zee News इस विषय को बार बार उठाता रहा है. हमने आपको बताया था कि असल मायनों में पंडित जवाहर लाल नेहरू की जगह नेताजी सुभाष चंद्र बोस को देश के पहले प्रधानमंत्री का दर्जा मिलना चाहिए था, लेकिन महात्मा गांधी से उनका वैचारिक टकराव और फिर बाद में गांधी और नेहरू के गठजोड़ ने बोस की जड़ों को कमजोर करने का काम किया और नेताजी से उनका श्रेय भी छीन लिया गया. इसलिए जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य सभा में नेताजी के लिए प्रथम प्रधानमंत्री शब्द का इस्तेमाल किया तो ये उनके लिए सबसे बड़ा सम्मान था.
आज जब भारत में देशभक्ति और राष्ट्रवाद पर संदेह की परत दिखती है तो हमें नेताजी के इस विचार को नहीं भूलना चाहिए कि भारत का राष्ट्रवाद न तो संकीर्ण है, न स्वार्थी है और न ही आक्रामक है. ये सत्यम, शिवम, सुंदरम के मूल्यों से प्रेरित है.
आपको याद होगा पिछले दिनों हमने नेताजी की जड़ों को कमजोर करने वाले गांधी और नेहरू के गठजोड़ के बारे में आपको बताया था और ये कहा था कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बोस को वो सम्मान नहीं दिया गया, जिसके वो हकदार थे.
आज हम यहां एक सवाल और पूछना चाहते हैं कि जब 21 अक्टूबर 1943 को आजादी से पहले सिंगापुर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय सरकार की स्थापना कर ली थी तो उस समय भारत में इसे नकार क्यों दिया गया? उस समय 11 देशों ने नेताजी की इस शपथ को अपनी सहमति दी थी, जिनमें जापान, थाईलैंड, चीन, बर्मा, इटली, जर्मनी और फिलिपींस प्रमुख थे.
इसलिए हम कह रहे हैं कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेताजी को आजाद हिंद फौज की प्रथम सरकार का प्रथम प्रधानमंत्री बताया तो ये उनके लिए सबसे बड़ा सम्मान था, जिससे कांग्रेस ने उन्हें कई दशकों तक वंचित रखा.