नई दिल्‍ली:  कल हमने आपको बताया था कि कैसे किसान आंदोलन (Farmers Protest) का रिमोट कंट्रोल विदेशी ताकतों के हाथ में जा चुका है और कैसे भारत के खिलाफ दुष्प्रचार किया जा रहा है. आज हमारे पास दो दस्तावेज हैं. एक दस्‍तावेज वो है, जो स्वीडन की पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग (Greta Thunberg) ने ट्वीट किया था और सबसे अहम अब दिल्ली पुलिस ने भी इस पर FIR दर्ज कर ली है और दूसरा दस्तावेज है, जिसमें भारत के खिलाफ एक और बड़ी साजिश के सबूत आज हमें मिले हैं और ये दस्वातेज कितने खतरनाक हैं. आज हम आपको इसके बारे में भी बताएंगे. 


दिल्‍ली पुलिस ने दर्ज की एफआईआर


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लेकिन सबसे बड़ी खबर ये है कि कल हमने आपको जो दस्तावेज दिखाए थे, अब उस पर FIR दर्ज हो गई है. IPC की धारा 124-A यानी देशद्रोह 120-B यानी आपराधिक षड्यंत्र रचने और धारा 153 के त‍हत लोगों को भड़काने के आरोप में ये FIR दर्ज की गई है. आप इस FIR से ही समझ सकते हैं कि ये मामला कितना गंभीर है और कैसे भारत को बदनाम करने के लिए विदेशी ताकतें काम कर रही हैं. 


सबसे महत्वपूर्ण बात यहां ये है कि जिस डॉक्‍यूमेंट के आधार पर ये FIR दर्ज हुई है, उसे ग्रेटा थनबर्ग ने शायद गलती से कल अपने ट्विटर अकाउंट पर शेयर कर दिया था और बाद में जब वो एक्सपोज हो गईं तो ये डॉक्‍यूमेंट डिलीट कर दिए गए. लेकिन वो शायद ये भूल गईं कि झूठ की फाइल तो डिलीट हो जाती है लेकिन सच परमानेंट मार्कर से लिखा होता है और इसे कभी मिटाया नहीं जा सकता. 


देशद्रोह का मुकदमा कैसे बनता है?


आज बहुत से लोग हमसे ये भी पूछ रहे हैं कि इस मामले में देशद्रोह का मुकदमा कैसे बनता है, तो हम आज इसका भी जवाब देना चाहते हैं और अब आपको हमारी ये बातें बहुत ध्यान से समझनी  चाहिए.  जिस दस्तावेज के आधार पर दिल्ली पुलिस ने देशद्रोह का मामला दर्ज किया है, उसमें लिखा है कि भारत पर #Ask India Why नाम से डिजिटल स्ट्राइक की जाएगी और ये स्ट्राइक 26 जनवरी को होगी. सोचिए ये देशद्रोह नहीं तो फिर क्या है?


-इसमें लिखा है कि 23 जनवरी को रात साढ़े 11 बजे ट्विटर स्‍टॉर्म (Twitter Storm) नाम से भारत के खिलाफ दुष्प्रचार होगा, जैसे हुआ भी था और अगर ऐसा हुआ तो फिर क्यों न इसे देशद्रोह माना जाए?


-13 और 14 फरवरी को विदेशों में भारतीय दूतावास और सरकारी संस्थानों के आस पास बड़े प्रदर्शन किए जाएंगे. यानी ये भी पहले से ही तय है और ये देशद्रोह ही है. 


-इसमें ये भी लिखा है कि 26 जनवरी के लिए जो प्‍लान तैयार किया गया था पूरी दुनिया और भारत में बिल्कुल वैसा ही हुआ. ये भी देशद्रोह है, जिसमें कुछ मुट्ठीभर लोग भारत में माहौल बिगाड़ना चाहते हैं. 


-किसान आंदोलन पर भारत के खिलाफ जूम सेशन कराने की बात भी इसमें लिखी गई है और 26 जनवरी को भारत और विदेशों में सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन करने हैं.  ये भी इसमें लिखा है और इससे ये बात साबित होती है कि हिंसा के दिन भी किसान आन्दोलन का रिमोट कंट्रोल देश विरोधी ताकतों के हाथ में था.


-भारत के बड़े उद्योगपतियों की कंपनियों और दफ्तरों के बाहर प्रदर्शन करें. ये भी इसमें लिखा हुआ है और ये सारी बातें ऐसी हैं जो भारत को बदनाम करने के लिए गढ़ी गईं और इन्हें किसी प्‍लान की तरह लागू किया गया और जब ऐसा हुआ तो फिर क्यों नहीं इस मामले में देशद्रोह का मुकदमा होना चाहिए. आज ये हम सवाल पूछना चाहते हैं. 


IPC की धारा 124 A में देशद्रोह की परिभाषा बताई गई है. इसके मुताबिक, देश के खिलाफ लिखना, बोलना या ऐसी कोई भी हरकत, जो देश के प्रति नफरत का भाव रखती हो, वो देशद्रोह कहलाएगी. अगर कोई संगठन देश-विरोधी है और उससे अनजाने में भी कोई संबंध रखता है, उसके लिटरेचर को दूसरे लोगों तक पहुंचाता है या ऐसे लोगों का सहयोग करता है, तो उस पर देशद्रोह का मामला बन सकता है. 


गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में हुई हिंसा संयोग नहीं, प्रयोग


कुछ और दस्तावेज सामने आए हैं, जो ये साबित करते हैं कि 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली में हुई हिंसा संयोग नहीं, बल्कि एक प्रयोग था, जिसकी स्क्रिप्ट और डायलॉग कई दिनों पहले ही लिखे जा चुके थे. 21 पन्नों की ये स्क्रिप्ट उस प्रोपेगेंडा को एक्सपोज करती है जो भारत के खिलाफ चलाया जा रहा है और ये इस बात का भी बड़ा सबूत है कि किसान आंदोलन के नाम पर देश के खिलाफ जो बीज बोए गए, उसने अब एक बड़े वृक्ष का रूप ले लिया है और इस वृक्ष की जड़ें भारत में नहीं, बल्कि उन देशों में हैं, जहां से अब इस आंदोलन को नियंत्रित किया जा रहा है. 


21 पन्नों के दस्तावेज में लिखी सबसे महत्वपूर्ण बातें


21 पन्नों की पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन को Poetic Justice Foundation नाम के एक NGO ने तैयार किया है और दिल्ली पुलिस ने बताया है कि इस NGO के तार खालिस्तान से जुड़े हुए हैं.  इसके अलावा ये NGO कनाडा में काफी एक्टिव है, जहां पिछले कुछ दिनों में किसान आंदोलन के नाम पर भारत विरोधी प्रदर्शन हुए हैं और सबसे अहम ये वही संस्था है, जिसने #AskIndiaWhy अभियान शुरू किया, और इसका जिक्र ग्रेटा थनबर्ग (Greta Thunberg) के शेयर किए गए डॉक्‍यूमेंट्स में भी था. इसलिए अब मैं आपको सबसे पहले 21 पन्नों के इस दस्तावेज में लिखी सबसे महत्वपूर्ण बात बताना चाहता हूं. 


इसके पेज नंबर 9 पर इस साजिश के ऑबजेक्टिव्‍स बताए गए हैं.  हिंदी में इसका अर्थ होता है, उद्देश्य यानी इसके पेज नंबर 9 पर 6 उद्देश्य बताए गए हैं, जिनमें चौथा बिंदु सबसे ज्‍यादा खतरनाक है. यानी दुनिया में भारत की योग और चाय वाली जो सकारात्मक छवि है, उसे बदनाम करके खत्म कर देना. सोचिए, इनके इरादे कितने खतरनाक हैं. योग और चाय भारत की सॉफ्ट पावर है.  हर साल 21 जून को अंतरराष्‍ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है और इसकी पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण से की थी. 


अब आप समझ सकते हैं ये भारत के स्वाभिमान और उसकी सॉफ्ट पावर (Soft Power) को दुनिया के सामने बदनाम करने की ऐसी अंतरराष्‍ट्रीय साजिश है. 


पहले से ही तय था प्रदर्शन


21 पन्नों के इस डॉक्‍यूमेंट का शीर्षक है– Global Day of Action और इसके आगे लिखा है, 26 जनवरी 2021 को भारत के गणतंत्र दिवस (Republic Day) के मौके पर किसानों के लिए प्रदर्शन. सोचिए, ये प्रदर्शन तो पहले से ही तय हो गए थे और कुछ भी अचानक नहीं हुआ. 


अब इसके पेज नंबर 3 पर भारत को बदनाम करने की To Do List का जिक्र है. इसमें लिखा है, 3 जनवरी को भारत और दूसरे देशों में प्रायोजित प्रदर्शनों के लिए सारी रिसर्च और योजना बना ली गई थी. इस कॉलम में आगे डन (Done) लिखा हुआ है. यानी ये काम 3 जनवरी को ही हो गया था. 8 जनवरी को टैगलाइन और हैशटैग तय हो गए थे. 



-10 जनवरी को दुनिया के सामने क्या बातें रखनी है और क्या संदेश पहुंचाना है, ये तय हो गया था


-13 जनवरी को विदेशों में किसान आंदोलन के लिए काम कर रही ऑर्गनाइजिंग टीम से फीडबैक ले लिया गया था. 


-17 जनवरी को ये तय हुआ कि मीडिया में क्या बोला जाएगा. यानी प्रेस रिलीज लिखी ली गई थी. 


-20 जनवरी को भारत समेत उन देशों में ये डॉक्‍यूमेंट्स भेज दिए गए थे, जहां प्रदर्शन होने थे और सबसे आखिर  में 26 जनवरी के आगे इसमें लिखा है, Protest Day और आप सब जानते हैं कि इस Protest Day पर भारत में क्या हुआ. इसके पेज नंबर 4 पर दो हैशटैग दिए गए हैं. 


पहला हैशटैग है - Farmers Protest और यहां समझने वाली बात ये है कि अमेरिका की मशहूर पॉप सिंगर और स्वीडन की पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने किसान आंदोलन (Farmers Protest) के समर्थन में जो ट्वीट किया था उसमें इसी हैशटैग का जिक्र था. 


इसमें एक और हैशटैग बताया गया है और वो है- किसान मजदूर एकता जिंदाबाद. भारत में कुछ दिनों पहले ट्विटर पर इसी से मिलता जुलता एक हैशटैग ट्रेंड कर रहा था और इस पर ट्वीट करने वालों में कांग्रेस नेता (Congress Leaders) भी शामिल हैं. 


प्रोपेगेंडा की कुछ कमियां 


जब आप इसके पेज नंबर 8 पर नजर डालेंगे, तो इसमें किसान आंदोलन को लेकर विदेशी ताकतों के प्रोपेगेंडा की कमजोरियां, इससे बनने वाली संभावनाएं, मौके और खतरों के बारे में लिखा है. इनमें जो तीन खतरे बताए गए हैं.  उनमें तीसरे नंबर पर है, Broad Reach of Godi Media यानी इन लोगों को पहले से ही डर था कि इनकी पोल खुल जाएगी और अब ठीक वैसा ही हो रहा है.


आपने किसान आंदोलन (Farmers Protest) में भी कई लोगों को इस तरह की बातें कहते हुए सुना होगा. Zee News ने जब इस आंदोलन के हाईजैक होने की कही थी तो हमें गोदी मीडिया कहा गया था और हमारे सहयोगियों को कवरेज करने से भी रोकने की कोशिश हुई थी.  लेकिन आज यही बातें इस दस्तावेज में भी लिखी हुई हैं. 


-इस प्रोपेगेंडा की कुछ कमियां भी इसमें बताई गई हैं. इसमें लिखा है कि अगर सरकार कृषि कानूनों (Farm Laws) को वापस ले लेती है तो इसके बाद क्या होगा, इसका प्‍लान इन लोगों के पास नहीं है. 


-इसके अलावा इस पेज पर अवसरों में लिखा है कि इससे पश्चिमी देशों में सोशल मीडिया एक्‍टीविज्‍म का फायदा मिल सकता है. 


-इसके पेज नंबर 21 पर जो लिखा है, वो भी आपको बहुत ध्यान से सुनना चाहिए.  इसमें लिखा है कि कैंपेन मैटेरियल जैसे क्या संदेश देना है, पोस्‍टर्स कैसे होंगे और सोशल मीडिया टेम्‍पलेट्स, सिख ऑर्गनाइजर्स के जरिए लोगों और मीडिया तक पहुंचाए जाएंगे. सोचिए, अगर आंदोलन किसानों का है और मुद्दा कृषि से जुड़े तीन कानून (Farm Laws) हैं तो फिर इसमें सिख ऑर्गनाइजर्स (Sikh Organizers) का नाम बार बार क्यों हो आ रहा है? इसे आप कुछ आंकड़ों से समझिए. 


किसान आंदोलन के पीछे कुछ और मकसद 


भारत में इस समय अपनी जमीन पर खेती करने वाले किसानों की संख्या लगभग 15 करोड़ है जबकि पंजाब (Punjab) में अपनी जमीन पर खेती करने वाले किसान केवल 11 लाख हैं. यानी भारत के कुल किसानों का एक प्रतिशत से भी कम किसान पंजाब में हैं.  इससे आप समझ सकते हैं कि ये आंदोलन किसानों के नाम पर हो तो रहा है लेकिन इसके पीछे का मकसद कुछ और है और यही वजह है कि इसमें बार बार सिख ऑर्गनाइजर्स का नाम आ रहा है.


अब इसके पेज नंबर 12 पर बताया गया है कि लोगों को क्या मैसेजेज लिखने हैं.  इसमें लिखा है कि भारत में प्रेस की आजादी और स्वतंत्र पत्रकारों पर होने वाले हमलों की तरफ लोगों का ध्यान खींचना है, जो कि पूरी तरह झूठ है. यानी इसमें लोगों से फेक न्‍यूज़ फैलाने के लिए कहा गया है. 


ऐसे फेक मैसेज भी इसमें लिखने के लिए कहे गए हैं कि भारत में सरकार की आलोचना करने वालों को देश विरोधी साबित कर दिया जाता है.  इसे पढ़कर ऐसा लगता है कि ये विदेशी ताकतें भारत के असली गोदी मीडिया और फेक न्‍यूज़ फैलाने वाले पत्रकारों को अपना समर्थन जाहिर करती हैं. 


भारत के टुकड़े-टुकड़े करने के देशविरोधी विचार को दी गई जगह


इसी दस्तावेज में एक जगह ये भी बताया गया है कि प्रदर्शनकारियों को क्या करना है. इसमें 26 जनवरी को विदेशों में भारतीय दूतावास और सरकारी संस्थानों के आस पास बड़े प्रदर्शन करने की बात लिखी है, जैसा कि हुआ भी था और समझने वाली बात ये है कि यहां भी सिख ऑर्गनाइजर्स का जिक्र है. 


इस दस्तावेज में भारत के टुकड़े-टुकड़े करने के देशविरोधी विचार को भी जगह दी गई है. इसमें लिखा है कि दुनिया में तीन पंजाब हैं, एक ईस्ट पंजाब है, एक वेस्ट वेस्ट पंजाब है और एक पंजाब उन प्रवासियों का है, जो पंजाब से निकल कर पूरी दुनिया में फैले हुए हैं और इन्हीं लोगों से इस आंदोलन में जुड़ने की बार-बार अपील की जा रही है. 


इस दस्तावेज के सबसे आखिरी पेज पर एक नाम लिखा है, जिसके बारे में भी हम आपको बताना चाहते हैं.  ये नाम है- मो धालीवाल (Mo Dhaliwal ) जो Poetic Justice Foundation का को-फाउंडर है. इसके बारे में कई जानकारियां हमने इकट्ठा की हैं, लेकिन ये जानकारियां अब तक पुख्ता नहीं हैं इसलिए हम इन्हें आपके साथ शेयर नहीं कर रहे हैं. लेकिन हम ये कहना चाहते हैं कि Poetic Justice Foundation नाम का ये NGO खालिस्तान से जुड़ा है और अब दिल्ली पुलिस ने भी इसके खिलाफ जांच शुरू कर दी है. 


सरकार कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दे तो क्‍या होगा? 


अगर इस नए दस्तावेज की एक बड़ी बात पर गौर करें तो वो ये है कि विदेशी ताकतों को ये नहीं पता कि अगर भारत सरकार ने कृषि कानूनों को वापस ले लिया तो फिर क्या होगा, तो इस स्थिति को आज आपको नए नजरिए से समझना चाहिए  और इसके लिए हम आपको कुछ कल्पना करने के लिए कहेंगे.


सोचिए, अगर सरकार किसानों के दबाव में आकर कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दे तो फिर क्या होगा. तब शायद आंदोलन कर रहे किसान असमंजस में पड़ जाएंगे कि सरकार इतनी आसानी से मान कैसे गई और शायद वो ये कहें कि ऐसे कैसे आंदोलन समाप्त हो सकता है. इसकी भी संभावना है कि वो तब ये मांग भी सरकार के सामने रख दें कि पहले उग्रवादी वामपंथी नेताओं को जेल से छोड़ा जाए. लेकिन सोचिए, अगर सरकार ये मांग भी मान लेती है तो क्या आंदोलन (Farmers Protest) समाप्त हो जाएगा?  जवाब शायद न में होगा. तब शायद आंदोलन कर रहे लोग सरकार के सामने ये मांग रख देंगे कि उसे नागरिकता संशोधन कानून भी रद्द करना होगा और सोचिए कि सरकार ने किसानों की ये मांग भी मान ली तो फिर क्या होगा.


क्या आंदोलन खत्म हो जाएगा? शायद नहीं,  इतनी आसानी से ये आंदोलन समाप्त नहीं होगा और सरकार से जम्मू-कश्मीर में फिर से धारा 370 लागू करने की मांग की जाएगी. हो सकता है कि पूरे पंजाब को खालिस्तान घोषित करने तक ये आंदोलन चलता रहे. लेकिन एक बार फिर से सोचिए कि सरकार ने ये मांगें भी मान ली तो फिर क्या होगा. फिर भी ये आंदोलन खत्म नहीं होगा.  फिर आंदोलन कर रहे लोग ये मांग करेंगे कि जब तक मौजूदा सरकार की जगह देश में कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों की सरकार नहीं बन जाती. तब तक ये आंदोलन चलता रहेगा. यानी इससे ये पता चलता है कि इस आंदोलन का कोई एक केन्द्र बिंदु नहीं है. 


कल जब मैं ग्रेट थनबर्ग की असलियत आप लोगों को बताकर घर लौटा तो मैंने एक किताब के कुछ हिस्से फिर से पढ़े. 1996 में आई इस किताब का नाम है- THE CLASH OF CIVILIZATIONS AND THE REMAKING OF WORLD ORDER. इसके लेखक अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर सैमुएल पी हंटिंगटन थे. अब वो इस दुनिया में नहीं हैं, पर वर्ष 1996 में जो उन्होंने लिखा था वो आज की परिस्थितियों में बिल्कुल सच साबित हो रहा है. इस किताब के कुछ हिस्से मैं आपको पढ़ कर सुनाना चाहता हूं. किताब के पेज नंबर 192 में एक टॉपिक है-ह्यूमन राइट्स एंड डेमोक्रेसी.  जिसमें वो बताते हैं कि पश्चिमी दुनिया के देश ह्यूमन राइट्स और डेमोक्रेसी का इस्तेमाल तीसरी दुनिया के देशों पर वैचारिक कब्जे के लिए करेंगे और इसे ह्यूमन राइट्स इम्‍पीरियलिज्‍म कहा जा सकता है. किताब में लिखा है कि वर्ष 2000 के ओलंपिक चीन में होने थे, पर अमेरिका और यूरोपियन यूनियन ने मानवाधिकार के नाम पर लॉबीइंग की और चीन को हरा दिया. 


कैसे पश्चिमी दुनिया के देश हमारे चुनाव और नीतियों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं?


सोचिए, जो चीन दुनिया की शांति के लिए बड़ा खतरा बना हुआ है. जिसकी बड़ी-बड़ी कंपनियांं  इंटरनेट पर लोगों की प्राइवेसी के लिए बड़ा खतरा हैं. जो सबकी जासूसी करता है, 17 देशों के साथ जिसका सीमा विवाद चल रहा है और जिसकी छवि एक खलनायक जैसी है जब उसको मानवाधिकार के नाम पर हराया जा सकता है तो बाकी देश इस ह्यूमन राइट्स इम्पीरियलिज्म को कैसे हराएंगे. अब मैं इसी किताब के पेज नंबर 198 में लिखी एक सच्चाई आपको और बताना चाहता हूं जिसके बाद आप लोकतंत्र और मानवाधिकार के नाम पर पश्चिमी दुनिया और वहां से चलने वाले बड़े-बड़े संगठनों के असली मकसद को आसानी से समझ जाएंगे. 


हम आपको बार बार बता चुके हैं कि फेसबुक, ट्विटर और इंस्ट्राग्राम या व्हाट्सऐप जैसे सोशल मीडिया टूल्स के जरिए कैसे पश्चिमी दुनिया के देश हमारे चुनाव और नीतियों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं. इसे हमने इंटरनेट से आने वाली डिजिटल गुलामी या डिजिटल उपनिवेशवाद का नाम दिया है. अब इस किसान आंदोलन के पीछे भी यही डिजिटल उपनिवेशवाद देखा जा रहा है.  मीडियम बदल रहा है पर मैसेज वही है कि वो हमें कमजोर करना चाहते हैं.  इसलिए इस खतरे से बचना बहुत जरूरी है.