नई दिल्ली: शहीद भगत सिंह ने 91 वर्ष पहले वर्तमान संसद भवन में एक बम फेंका था. भगत सिंह अंग्रेज़ों द्वारा लाए गए दो काले कानूनों का विरोध कर रहे थे. हालांकि एसेंबली ने इन दोनों कानूनों को खारिज कर दिया था लेकिन उस समय भारत के वायसराय ने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करके इन्हें लागू कर दिया. अब आप सोचिए जब किसी देश में लोकतंत्र का अभाव होता तो वहां कैसे लोगों की आवाज़ को दबा दिया जाता है और काले कानून लागू कर दिए जाते हैं. लेकिन जब उसी देश में लोकतंत्र की अति हो जाती है तो उन कानूनों का विरोध शुरू हो जाता है जो देश को तरक्की के रास्ते पर ले जा सकते हैं. सरकार नए कृषि कानूनों को लेकर ऐसा ही दावा कर रही है.


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किसानों से आंदोलन समाप्त करने की अपील
लेकिन किसान संगठनों ने सरकार के साथ बातचीत से साफ़ इनकार कर दिया है. किसानों ने कहा है कि जब तक सरकार नए कृषि क़ानूनों को रद्द नहीं करती, तब तक वो सरकार से बातचीत नहीं करेंगे. हालांकि केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एक बार फिर किसानों से आंदोलन समाप्त करने की अपील की है. उन्होंने कहा कि नए क़ानून, कृषि क्षेत्र के विकास के लिए बनाए गए हैं. सरकार ने आज उन आरोपों का भी जवाब दिया है जिनके जरिए कहा जा रहा था कि सरकार ने बिना किसी की सहमति के देश के लोगों को धोखा देकर ये कानून पास कर दिए. लेकिन सरकार की तमाम सफाइयों के बावजूद किसान अब अपने आंदोलन को और आगे बढ़ाने की नीतियां बना रहे हैं.


खालिस्तान आंदोलन की ख़तरनाक मिलावट
कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन पिछले 15 दिनों से चल रहा है. सड़क पर बैठे प्रदर्शनकारियों के दिन वहां किन हालात में गुज़र रहे हैं. हमारी टीम जब ये देखने पहुंची, तो हमें कई चौंकाने वाली बातें पता चलीं. देश के टुकड़े-टुकड़े करने का इरादा रखने वाले पंजाब को भारत से अलग कर खालिस्तानी राष्ट्र का सपना देखने वाले और पाकिस्तान की रहनुमाई करने वाले कई संगठनों ने किसानों के आंदोलन में ज़हर घोलने का काम शुरू कर दिया है. वहां चल रहे लंगर और Health Camps के परमार्थ के नाम पर जो चेहरे नज़र आ रहे हैं, वो किसान आंदोलन में खालिस्तान आंदोलन की ख़तरनाक मिलावट की गवाही दे रहे हैं.



सिंघु बॉर्डर पर चल रहे आंदोलन वाली जगह पर हमें एक कैंप ऐसा भी नज़र आया जिस पर सवाल उठना लाज़मी है. ये Banner International Punjabi Foundation का है. बैनर  पर Foundation के अध्यक्ष गुरचरण सिंह बनवैत की तस्वीर भी लगी है. International Punjabi Foundation Canada की फाउंडेशन है. और ये सिंघु बॉर्डर पर लंगर और हेल्थ कैंप का आयोजन कर रही है. लेकिन इस बैनर में ऐसा क्या है और किसान आंदोलन में इस Camp का होना क्यों सवाल खड़े करने वाला है. आज हम आपको ये बताएंगे.


किसानों का आंदोलन कहीं खालिस्तानियों के लिए मौका तो नहीं बन गया है. इस ख़तरे की कई वजहें सिंघु ब़ॉर्डर पर साफ नज़र आ रही हैं.


सिंघु बॉर्डर पर किसान प्रदर्शनकारियों के लिये लंगर और हेल्थ कैम्प इंटरनेशनल पंजाबी फाउंडेशन (IPF) नाम की संस्था ने लगा रखा है. IPF संस्था का संचालन कनाडा में रहने वाला गुरचरण सिंह बनवैत करता है.


गुरचरण सिंह बनवैत का नाम पहली बार वर्ष 1986 में एयर इंडिया के एक प्लेन को उड़ाने की साज़िश में सामने आया था. एयर इंडिया का बोइंग 747 न्यूयॉर्क से दिल्ली की फ्लाइट थी. इसे क्रैश करने की साज़िश के सिलसिले में कनाडा की पुलिस ने बब्बर खालसा के 5 संदिग्ध आतंकवादियों को गिरफ्तार किया था. उस वक्त कई अंतरराष्ट्रीय अख़बारों में इसका नाम भी छापा गया था.


गुरचरण सिंह बनवैत उनमें से एक था. उस समय इसकी उम्र 38 वर्ष थी. उस वक्त वो Canada के मोंट्रियल (Montreal) में रहता था. गिरफ्तार होने से करीब 1 साल पहले साल 1985 से ये कनाडा की इंटेलिजेंस एजेंसी के रडार पर था. जब टोरंटो (Tornoto) से दिल्ली जाने वाले एयर इंडिया के विमान को संदिग्ध खालिस्तानी आतंकियों ने उड़ा दिया था. इसमें भारतीय मूल के 300 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी. 1986 में जब बनवैत गिरफ्तार हुआ तब ये केस 6 साल चला था. हालांकि सबूतों के अभाव में गुरचरण सिंह बनवैत को अदालत ने बरी कर दिया था.


कनाडा की अदालत में गुरचरण का खालिस्तान से सीधा संबंध तो स्थापित नहीं हो पाया, लेकिन गुरचरण सिंह बनवैत के सोशल मीडिया अकाउंट को देखने पर खालिस्तान के लिए इनकी हमदर्दी साफ नज़र आ जाती है.


गुरचरण सिंह बनवैत के Social Media Account की जब ज़ी न्यूज़ की टीम ने जांच की तो, वहां भारत विरोधी पोस्ट की भरमार थी. ऐसी भी कई पोस्ट हैं जो पाकिस्तान के समर्थन में की गई हैं, भारत के विरोध में की गई हैं और अलग खालिस्तान की आवाज़ बुलंद कर रही हैं. 1 मार्च 2019 को जब भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनन्दन वर्धमान का एक प्राॅपेगेंडा वीडियो पाकिस्तान ने रिलीज़ किया तो गुरचरण से उसे शेयर करते हुए लिखा "इंडिया वालों शर्म करो".


4 जनवरी 2017 को सिख गुरु गुरुगोबिंद सिंह के 350वें प्रकाश उत्सव के अवसर पर गुरचरण सिंह बनवैत ने पटना से फेसबुक लाइव किया और उसका टाइटल लिखा "बिहार बन गया खालिस्तान".


अब आप सोचिए, इसी व्यक्ति की फाउंडेशन के बैनर तले इसी की फोटो लगाकर दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर लंगर और हैल्थ कैंप के जरिए कथित तौर पर कल्याणकारी काम किया जा रहा है.


बनवैत की फेसबुक प्रोफाइल पर भी लिखी गई ज्यादातर बातें भारत विरोधी और पाकिस्तान के समर्थन में ही हैं. ऐसे व्यक्ति ने लंगर की व्यवस्था, हेल्थ कैम्प लगवाने के लिए सिंघु ब़ॉर्डर जैसी जगह का चयन किया है. जहां किसानों का आंदोलन चल रहा है, जहां देश के किसान सरकार से कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. आप खुद सोचिए कि खालिस्तान की आवाज़ बुलंद करने वाले लोगों का यहां क्या काम हो सकता है?


खालिस्तान की मांग है क्या?
आज आपको ये भी समझना चाहिए कि आखिर खालिस्तान की मांग है क्या?


80 के दशक में आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले ने Punjab को भारत से अलग करने के लिए एक अभियान चलाया था. ये अभियान सिखों के लिए एक अलग राष्ट्र की मांग को आधार बनाकर शुरू हुआ था और इस राष्ट्र को नाम दिया गया था खालिस्तान. हालांकि इसके पीछे सबसे बड़ा हाथ पाकिस्तान का था. भिंडरावाले तो वर्ष 1984 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आदेश पर चलाए गए ऑपरेशन ब्लू स्टार में मारा गया था. लेकिन हथियारों के दम पर शुरू हुआ ये अलगाववादी अभियान पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ और अब ऐसा लगता है कि इसे किसानों के आंदोलन की आड़ में फिर भड़काया जा रहा है. हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है और ये भारत की अखंडता के लिए कितना खतरनाक है इसकी जांच सुरक्षा एजेंसियों को करनी चाहिए.


क्योंकि सिंघु बॉर्डर पर अपने खेतों और फसलों का हक मांगने वाले किसानों को शायद ये अंदाज़ा भी नहीं है कि वो कितनी बड़ी साजिश के कर्ता-धर्ताओं को मंच दे रहे हैं.


खालिस्तान आंदोलन के तार किसानों के प्रदर्शन से किस तरह जुड़ रहे हैं. इसका खुलासा NIA यानी National Investigation Agency ने भी किया है. कल ही NIA ने 16 खालिस्तानी समर्थकों के खिलाफ चार्जशीट दायर की है. NIA ने इनमें से 5 संदिग्ध आतंकवादियों की तस्वीरें भी जारी की हैं.


NIA के मुताबिक ये सभी आरोपी भारत के खिलाफ विदेश में बैठ कर खतरनाक षडयंत्र कर रहे है और Referendum 2020 के तहत भारत में अलगाववादी अभियान चला रहे हैं. Referendum 2020 Sikh For Justice नाम का संगठन चलाता है. जो विदेशों से संचालित होता है और जिसे ऐसी गतिविधियां करने के लिए पाकिस्तान जैसे देशों से मदद भी मिलती है.


इसी महीने की 6 तारीख को Sikh For Justice के लोगों ने किसानों के आंदोलन के सर्मथन में लंदन में भारतीय दूतावास के बाहर खालिस्तानी झंडों के साथ प्रदर्शन किया था. इनका मकसद सिर्फ यही है कि किसी भी तरह से भारत खालिस्तान के नेटवर्क को एक बार फिर से सक्रिय कर दिया जाए.


सोशल मीडिया पर ऐसे कई पोस्ट शेयर किए गए हैं जिसमें खालिस्तान के समर्थक पाकिस्तान की सरकार और पाकिस्तान की जनता से भारत में चल रहे किसान आंदोलन को मीडिया में दिखाने की अपील कर रहे हैं. ये लोग पाकिस्तान से आंदोलन में मदद करने की अपील भी कर रहे हैं.


DNA में हमने आपको 30 नवंबर को एक तस्वीर दिखाई थी, जिसमें सिंघु बॉर्डर पर खड़े एक ट्रैक्टर पर खालिस्तान ज़िंदाबाद का नारा लिखा था और AK-47 राइफल का चित्र बना हुआ था. हमने तभी ये आशंका जता दी थी कि इस आंदोलन में कहीं ना कहीं खालिस्तान की एंट्री हो चुकी है.


अब भारत की सुरक्षा एजेंसियों को ये देखना होगा कि अन्नदाता के आंदोलन की ईमानदारी कहीं राष्ट्रविरोधी ताकतों के लिए सुनहरा मौका ना बन जाए. ये भोले भाले किसानों की भावनाओं के साथ सिर्फ़ धोखा ही नहीं है, ये देश की सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा साबित हो सकता है.