नई दिल्‍ली: आज हम आपको फ्रांस में लाए गए उस नए कानून के बारे में बताना चाहते हैं, जिसकी दुनियाभर में चर्चा हो रही है. इस समय ये कानून दुनिया के लिए सबसे बड़ी खबर बन गया है. Reinforcing Republican Principles नाम का ये कानून फ्रांस के निचले सदन में पास हो चुका है और इसे Anti Separatism Law भी कहा जा रहा है. हिंदी में इसका अर्थ है- धार्मिक कट्टरपंथी ताकतों और अलगाववादियों को रोकने के लिए लाया गया नया कानून.


धार्मिक कट्टरपंथ को रोकने के लिए फ्रांस का नया कानून


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इस कानून में कहीं भी इस्लाम शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है लेकिन कहा जा रहा है कि यहां धार्मिक कट्टरपंथी ताकतों से मतलब इस्लामिक कट्टरपंथ से ही है क्योंकि, फ्रांस इन दिनों इस्लामिक कट्टरपंथी ताकतों से ही परेशान है. इस कानून का मकसद है धार्मिक कट्टरपंथ को रोकना, लोगों को अलगाववाद के रास्ते से हटा कर, विकास के रास्ते पर ले जाना. ज्‍यादा सुरक्षित और ज्‍यादा धर्मनिरपेक्ष माहौल पैदा करना. यानी इन उद्देश्यों को हासिल करने के लिए फ्रांस कट्टरपंथी ताकतों से भी टकराने के लिए तैयार है. 


भारत के लिए भी छिपी है सीख


आप इसे तेज़ी से बदल रही दुनिया का पहला ऐसा क़ानून भी कह सकते हैं जो धर्मनिरपेक्षता को सही मायनों में व्यावाहिक बनाएगा और धार्मिक कट्टरता को बढ़ने से भी रोकेगा और सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि इस क़ानून में भारत के लिए भी सीख छिपी है और वो ये कि अगर धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद का सामना कर रहे भारत में जल्द इस तरह का कोई क़ानून नहीं लाया गया तो परिणाम गंभीर भी हो सकते हैं. 


फ्रांस के नए कानून की 10 बड़ी बातें


यानी फ्रांस में लाए गए क़ानून से भारत बहुत कुछ सीख सकता है और ये बातें क्या हैं, इसी के बारे में हम आज आपको बताएंगे. लेकिन सबसे पहले आपको फ्रांस के इस कानून की 10 बड़ी बातें बताते हैं.


पहली बात अगर कोई व्यक्ति ये कहता है कि उसकी पत्नी या बच्ची की मेडिकल जांच कोई पुरुष डॉक्टर नहीं करेगा या शादी के लिए अगर कोई व्यक्ति किसी लड़की को मज़बूर करता है या एक से अधिक शादी करता है तो उस पर लगभग 13 लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान इस क़ानून में है. शरिया क़ानून के मुताबिक़ कोई भी मुसलमान चार शादी कर सकता है. लेकिन अब फ्रांस ने इस पर रोक लगा दी है. 


दूसरी बात इस क़ानून में सैमुएल पैटी के नाम से एक प्रावधान जोड़ा गया है, जिसकी वजह से इसे Samuel Paty Law भी कहा जा रहा है. इसके तहत अगर कोई व्यक्ति किसी सरकारी कर्मचारी और अधिकारी के ख़िलाफ़ उससे जुड़ी निजी जानकारियों को सोशल मीडिया पर शेयर करता है तो उस पर लगभग 40 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा और इसमें तीन साल की जेल का भी प्रावधान है. 


सैमुएल पैटी फ्रांस के एक शिक्षक थे, जिनकी पिछले साल अक्टूबर में हत्या कर दी गई थी. उन्होंने अभिव्यक्ति के अधिकार पर चर्चा करते हुए अपने स्कूल के कुछ छात्रों को पैगम्बर मोहम्मद का एक विवादास्पद कॉर्टून दिखाया था, जिसके बाद स्कूल के एक छात्र ने ये जानकारी अपने परिवार को दे दी थी और बाद में 18 साल के एक लड़के ने उनकी हत्या कर दी थी. ये हत्यारा 6 वर्ष की उम्र में रूस के एक प्रांत चेचन्या से एक शरणार्थी के रूप में फ्रांस आया था और इसका नाम अबदुल्लाख अंज़ोरोव था. 


तीसरी बात सभी नागरिकों को फ्रांस की धर्मनिरपेक्षता का सम्मान करना होगा.


चौथी बात अगर कोई व्यक्ति फ्रांस के किसी भी सरकारी अधिकारी या जनप्रतिनिधि को डराता है और उसे फ्रांस के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के ख़िलाफ़ जाने के लिए मजबूर करता है तो उसे 5 साल तक की जेल होगी और उस पर क़रीब 65 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा.


पांचवीं बात अगर कोई व्यक्ति अपने बच्चों को घर पर ही पढ़ाना चाहता है तो उसे फ्रांस की सरकार से इसकी अनुमति लेनी होगी और इसकी ठोस वजह भी बतानी होगी.


छठी बात सरकार के प्रतिनिधि ये सुनिश्चित करेंगे कि खेल कूद में किसी तरह का कोई लिंग भेदभाव न हो. जैसे लड़कियों के लिए अलग स्विमिंग पूल हो और लड़कों के लिए अलग फ्रांस की सरकार अब इसकी इजाजत नहीं देगी. 


सातवीं बात इस नए क़ानून के तहत फ्रांस के सभी धार्मिक संस्थानों को विदेशों से मिलने वाले चंदे की जानकारी सरकार को देनी होगी. अगर फंडिंग 8 लाख रुपये से ज़्यादा है तो उन्हें ये सरकार को बताना होगा और ऐसा नहीं करने पर फ्रांस की सरकार ऐसे धार्मिक संस्थानों को देश से मिलने वाली आर्थिक सहायता बंद कर देगी. 


आठवीं बात जिन अलग अलग समूहों और संस्थाओं को सरकार से विशेष सहायता मिलती है, उन्हें एक समझौते पर हस्ताक्षर करने होंगे। इस समझौते के तहत उन्हें फ्रांस के संवैधानिक और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का सम्मान करना होगा।



नौवीं बात धार्मिक संस्थानों में ऐसे भाषण नहीं दिया जा सकेंगे, जिनसे दो समुदायों के बीच टकराव और वैमनस्य पैदा हो.


दसवीं बात और आखिरीबात ये कि जिन लोगों पर फ्रांस में आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप होगा, ऐसे लोगों पर धार्मिक संस्थानों में हिस्सा लेने पर 10 साल के लिए बैन लगा दिया जाएगा. 


धार्मिक चिन्हों के प्रदर्शन पर प्रतिबंध


इस कानून से जुड़ी एक और बात है, जो आपको बहुत ध्यान से सुननी चाहिए. फ्रांस में अब धार्मिक चिन्हों के प्रदर्शन पर प्रतिबंध होगा. अब तक फ्रांस के सरकारी दफ्तरों में मुस्लिम महिलाएं बुर्का और हिजाब पहन कर नहीं जा सकती थीं. लेकिन इस कानून के तहत अब ऐसी निजी कंपनियों  को भी इसके दायरे में लाया गया है, जो जन सुविधाओं से जुड़ी हैं. जैसे ट्रेन, बस, रेस्‍टोरेंट और दूसरी सेवाएं. 


फ्रांस को ऐसा क्यों करना पड़ा?


यूरोप दुनिया का ऐसा महाद्वीप है, जहां इतिहास बनते रहे हैं. यूरोप से ही पहले और दूसरे विश्‍व युद्ध की शुरुआत हुई थी.  यूरोप के देश शीत युद्ध के केंद्र में रहे हैं और अब यूरोप के ही एक देश फ्रांस ने पहली बार अपनी जमीन से धार्मिक कट्टरपंथ के खिलाफ युद्ध छेड़ने का भी ऐलान कर दिया है. हालांकि फ्रांस को ऐसा क्यों करना पड़ा, अब आप ये समझिए. 


इसकी दो बड़ी वजह हैं, पहला कारण है दूसरे देशों से आए शरणार्थी और दूसरी वजह है फ्रांस में कट्टर इस्लामिक आतंकवाद की बढ़ती घटनाएं. सबसे पहले आपको पहली वजह के बारे में बताते हैं.


-फ्रांस ने अपने खुले बॉर्डर्स वाली परम्परा की कभी समीक्षा नहीं की, जिसकी वजह से बड़ी संख्या में शरणार्थी दूसरे देशों से आकर फ्रांस में आसानी से बस गए.


-2012 में जब सीरिया में गृह युद्ध चरम पर था, तब फ्रांस में हर साल शरण लेने वाले मुसलमानों की गिनती एक लाख तक पहुंच गई थी. 



-जब 2015 और 2016 में आतंकवादी संगठन ISIS ने इराक, सीरिया और लीबिया के कई इलाक़ों पर क़ब्ज़ा कर लिया, तब उस दौरान यूरोप में शरण लेने वाले मुसलमानों की संख्या काफ़ी बढ़ गई थी. 



-2017 में फ्रांस में रिकॉर्ड डेढ़ लाख लोगों ने शरण ली थी और 2019 आते आते ये संख्या दो लाख हो चुकी थी.  इस ग्राफ की मदद से आप फ्रांस की इस मुश्किल को समझ सकते हैं. 



धर्मनिरपेक्ष दिखने की होड़


फ्रांस ही नहीं यूरोप के कई देशों ने धर्मनिरपेक्ष दिखने की होड़ में दिल खोल कर शरणार्थियों का स्वागत किया और शरणार्थियों को बसने के लिए अपने देशों में जगह दी.  लेकिन बाद में यही लोग फ्रांस और यूरोप के देशों के संवैधानिक और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को चुनौती देने लगे.  ये ठीक उसी तरह है, जैसे आप किसी असहाय व्यक्ति को मदद करने के लिए उसे अपने घर में शरण दे दें और और कुछ दिन के बाद वो व्यक्ति अपने आपको ही उस घर का मालिक समझने लगे क्योंकि, यूरोप के देशों में ऐसा ही हुआ है और फ्रांस में जो क़ानून आया है, उसकी एक बड़ी वजह यही है.



अब आपको इसकी दूसरी वजह बताते हैं और ये वजह है फ्रांस में कट्टर इस्लामिक आतंकवाद की बढ़ती घटनाएं और इन घटनाओं की जड़ में वही मुस्लिम शरणार्थी हैं, जिनके लिए फ्रांस ने अपनी सीमाओं को कभी बंद नहीं किया. लेकिन बाद में उसे ये समझ आ गया कि उससे बहुत बड़ी ग़लती हुई है. इसे आप कुछ उदाहरणों से समझिए-


-फ्रांस में पिछले 5 वर्षों में 10 बड़े आतंकी हमले हुए हैं और इन हमलों में 250 से ज़्यादा लोग मारे गए हैं. 


-7 जनवरी 2015 को पेरिस में Charlie Hebdo के दफ़्तर पर आतंकी हमला हुआ था. इस हमले में भी 12 निर्दोष लोग मारे गए थे. Charlie Hebdo फ्रांस की एक वीकली मैगजीन है और उसके दफ़्तर पर ये हमला पैगम्बर मोहम्मद का विवादास्पद कार्टून छापने के लिए किया गया था.


कई बार हुए आतंकी हमले 


सोचिए, फ्रांस अभिव्यक्ति की जिस आज़ादी पर गौरव करता है, उसी को समाप्त करने के लिए आतंकवादियों ने इतना बड़ा हमला कर दिया था. 


-13 नवम्बर 2015 को फ्रांस में सुनियोजित तरीके से कई आतंकवादी हमले हुए थे जिनमें 130 लोग मारे गए थे. 


-14 जुलाई 2016 को फ्रांस के नीस शहर में एक आतंकवादी ने भीड़ पर ट्रक चढ़ा दिया था जिसमें 84 लोग मरे थे. 


-3 अक्टूबर 2019 को एक आतंकवादी ने तीन पुलिस अधिकारियों और एक नागरिक की गोली मार कर हत्या कर दी थी. 


और 16 अक्टूबर 2020 को एक अलगाववादी ने सैमुएल पैटी नाम के एक शिक्षक की हत्या कर दी थी.  इस आतंकी हत्यारे का नाम अबदुल्लाख अंज़ोरोव था और ये 6 वर्ष की उम्र में रूस के एक प्रांत चेचन्या से एक शरणार्थी के रूप में फ्रांस आया था और 12 वर्ष से फ्रांस में ही रह रहा था.  अब आप समझ गए होंगे कि फ्रांस में इस कानून को लाने की ज़रूरत क्यों पड़ी. 


भारत और फ्रांस में समानताएं


फ्रांस के नए क़ानून में भारत के लिए भी एक बड़ी सीख छिपी है लेकिन इस समझने के लिए सबसे पहले आपको ये बताना ज़रूरी है कि भारत और फ्रांस में क्या समानताएं हैं. इसे आप 5 Points में समझिए- 


पहला पॉइंट भारत और फ्रांस दोनों ही बड़ी मुस्लिम आबादी वाले धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश हैं. 


दूसरा पॉइंट फ्रांस की कुल आबादी में मुसलमानों की संख्या 9 प्रतिशत है जबकि भारत में ये संख्या 13 प्रतिशत है. 


तीसरा पॉइंट भारत और फ्रांस दुनिया के ऐसे दो बड़े देश हैं, जहां मुसलमानों की आबादी तेज़ी से बढ़ रही है. 


चौथा पॉइंट भारत और फ्रांस दोनों देशों के लिए आतंकवाद एक बड़ी समस्या है.


और आख़िरी बात ये कि  कट्टरपंथी और अलगाववादी संगठन भारत और फ्रांस दोनों ही देशों के संवैधानिक ढांचे को ध्वस्त कर देना चाहते हैं.


भारत में Uniform Civil Code लागू करने की मांग


यानी फ्रांस और भारत में इतनी समानताएं हैं कि भारत इस नए क़ानून से बहुत कुछ सीख सकता है क्‍योंकि,  भारत में जिस Uniform Civil Code को लागू करने की मांग समय समय पर होती रहती है, वो भी इसी तरह से देश के सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देगा.  अगर Uniform Civil Code लागू हो गया तो धार्मिक आज़ादी के नाम पर हमारे देश में चलने वाले अलग-अलग धार्मिक कानून ख़त्म हो जाएंगे और संविधान ने नागरिकों को बराबरी देने का जो वादा किया था, वो वादा सच में पूरा हो पाएगा. 


हालांकि भारत में Uniform Civil Code की राह बहुत मुश्किल नज़र आती है. लेकिन अगर भारत चाहे तो फ्रांस के नए कानून को एक टेम्‍पलेट मानकर Uniform Civil Code की नींव रख सकता है और आज के दौर की सबसे बड़ी ज़रूरत यही है कि लोकतांत्रिक देशों में संविधान को धर्म से ज़्यादा महत्व दिया जाए और लोग पहले संविधान की कसम खाएं और फिर अपने-अपने धर्म का पालन करें. 


हालांकि भारत के लिए एक चुनौती भी है और वो ये कि आज अगर भारत फ्रांस जैसा कोई क़ानून देश में लाता है तो देश में तुरंत विरोध प्रदर्शन शुरू हो जाएंगे और आंदोलन के नाम पर सड़कों को बंधक बना लिया जाएगा.  भारत अगर फ्रांस की तरह अपने धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का बचाव करे तो उसके लिए ऐसा करना बहुत मुश्किल नज़र आता है. 


धर्मनिरपेक्षता के नाम पर राजनीति


इसकी एक बड़ी वजह है हमारे देश के नेता धर्मनिरपेक्षता को लेकर ज्‍यादा परिपक्व नज़र नहीं आते. भारत में धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सिर्फ़ राजनीति होती है. आज हमारे देश में धर्मनिरपेक्षता राजनीतिक पार्टियों के घोषणा पत्र का हिस्सा बन चुका है और नेताओं के भाषणों तक सीमित है. असल में धर्मनिरपेक्षता को लेकर भारत को फ्रांस जैसा रुख अपनाना चाहिए, लेकिन ये दुर्भाग्य ही है कि हमारे देश में इसकी सम्भावना बहुत कम दिखती है.


नए कानून के खिलाफ मुस्लिम समुदाय का विरोध  


फ्रांस में अब मुस्लिम समुदायों से जुड़े लोगों ने इस क़ानून का विरोध करना शुरू कर दिया है और उनका आरोप है कि इस कानून से उनकी धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार सीमित हो जाएगा। इसके लिए फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की भी आलोचना हो रही है. 


धार्मिक कट्टरता के ख़िलाफ़ मैक्रों जो क़ानून लेकर आए हैं, वो अभी निचले सदन में ही पास हुआ है और अभी सीनेट में इस पर चर्चा होनी बाकी है हालांकि उम्मीद जताई जा रही है कि सीनेट में भी ये बहुमत से पास हो जाएगा क्योंकि, फ्रांस की संसद के निचले सदन में कुल 577 सीटें हैं.  जिनमें से 498 सांसद ही इस बिल पर वोटिंग के दौरान संसद में मौजूद थे. इनमें 347 सांसदों ने बिल के समर्थन में वोट दिया जबकि 151 सांसदों ने इसके ख़िलाफ़ वोटिंग की. 


फ्रांस की बड़ी विपक्षी पार्टियों में से एक नेशनल रैली ने इस कानून का विरोध किया है और इस पार्टी की प्रमुख Marine Le Pen ने कहा है कि मैक्रों सरकार द्वारा लाया गया क़ानून काफ़ी कमज़ोर है. यानी वो इस कानून की मूल भावना के खिलाफ नहीं है, बल्कि वो धार्मिक कट्टरता के ख़िलाफ़ और कड़ा क़ानून चाहती हैं.


राष्‍ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के लिए क्‍यों अहम है ये कानून?


हालांकि इस विरोध के पीछे का एक और पहलू है और वो ये कि फ्रांस में अगले साल राष्ट्रपति के चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में ये क़ानून इमैनुएल मैक्रों के लिए काफ़ी अहम साबित हो सकता है.


फ्रांस में राष्ट्रपति चुनाव से पहले धार्मिक कट्टरता के साथ शरणार्थियों का मुद्दा भी काफ़ी चर्चा में है। इसे आप कुछ आंकड़ों से समझिए. Pew Research Center की एक स्‍टडी के मुताबिक़ अगर यूरोप के देशों में शरणार्थियों के आने का सिलसिला इसी तरह जारी रहा तो 2050 तक यूरोप की डेमोग्राफी पूरी तरह बदल जाएगी और अकेले फ्रांस में मुसलमानों की आबादी 9 प्रतिशत से बढ़ तक 18 प्रतिशत हो जाएगी.


आज हम आपको संक्षेप में वर्ष 1789 में हुई फ्रांस की क्रांति के बारे में भी बताना चाहते हैं. 


वर्ष 1700 से 1789 के बीच फ्रांस की जनसंख्या दो करोड़ से बढ़ कर तीन करोड़ हो गई थी और इसकी वजह से बेरोज़गारी, भूखमरी और महंगाई की समस्या ने भयानक रूप ले लिया था. इसके विरोध में तब फ्रांस के लोगों ने राजशाही सत्ता के ख़िलाफ़ संघर्ष किया था और इसे समाप्त कर आधुनिक लोकतंत्र की शुरुआत की थी.  इसके बाद दुनिया के ज़्यादातर देशों ने फ्रांस से प्रेरणा लेकर लोकतंत्र और मौलिक अधिकारों को स्थापना की थी. 


आज 1789 की क्रांति के 232 साल बाद जब दुनिया धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा से त्रस्त है, ऐसे समय में फ्रांस का नया कानून कई देशों का मार्गदर्शन कर सकता है.


भारत में ऐसा कानून क्‍यों नहीं लागू हो सकता


फ्रांस ने अपने देश में कानून की मदद से टुकड़े-टुकड़े गैंग की असहनशीलता को रोकने का इंतजाम कर लिया है. लेकिन इसके आधार पर अगर भारत ऐसा ही कोई कानून बना ले तो उसे हमारे देश के अपने ही लोग या तो बनने नहीं देंगे और अगर ये कानून बन भी गया तो इसे लागू नहीं होने देंगे क्योंकि, हमारे देश में जो टुकड़े टुकड़े गैंग है, वो देश के कानून को ही नहीं मानता. 


राष्ट्रीय अखंडता को बनाए रखने के लिए संसद ने जो राजद्रोह का कानून बनाया है आज उस पर ही सवाल खड़े किए जा रहे हैं. आप लोग देख रहे होंगे कि देश के खिलाफ टूल किट बनाने वालों पर जब राजद्रोह की धाराएं लगीं तो उनके समर्थन में राजनेता से बुद्धिजीवी तक आ गए. 


ये दलील दी गई कि वर्ष 2019 में 93 लोगों पर राजद्रोह का केस दर्ज हुआ लेकिन फैसला केवल 3.3.प्रतिशत केस में आया. यानी करीब तीन लोगों को सजा मिली.  लेकिन ये लोग ये नहीं बताते कि 2019 में ही 32 लाख 25 हजार क्रिमिनल केस में 30 प्रतिशत मामलों में ही सजा मिली है.


JNU के छात्र नेता कन्हैया कुमार पर 5 साल पहले 2016 में राजद्रोह का आरोप लगा लेकिन इस मामले में कार्रवाई फरवरी 2021 में शुरू हुई है. इससे फैसले में देरी का अंदाजा लगाया जा सकता है. इस बीच इसी आरोप की वजह से वो इतने प्रसिद्ध हो गए कि 2019 का लोकसभा चुनाव भी लड़ा. 


टुकड़े-टुकड़े गैंग की वजह से ऐसे बंटा है भारत


टुकड़े-टुकड़े गैंग की कानून के बारे में यही सोच हमें एक बार फिर 1947 में पहुंचा देती है जहां भारत 562 रियासतों में बंटा हुआ था और उसे 10 साल की मेहनत के बाद एक राष्ट्र के रूप में एक साथ लाने में सफलता मिली थी. लेकिन 73 साल के बाद भी भारत फिर टुकड़े टुकड़े गैंग की वजह से बुरी तरह बंटा हुआ दिखता है. 


उत्तर प्रदेश में 'हरित प्रदेश', 'पूर्वांचल', बुदंलेखंड बनाने की मांग है. असम में बोडोलैंड राज्य बनाने की मांग है, गुजरात में सौराट्र, पश्चिम बंगाल में गोरखालैंड,  महाराष्ट्र में विदर्भ, बिहार में मिथिलांचल, कर्नाटक में कुर्ग और केरल में मालाबार राज्य बनाने की मांग हो रही है. 


देश में कश्मीर, खालिस्तान, असम, नागालैंड और कई राज्यों में नक्सलवादियों, माओवादियों के अलगाववादी षड्यंत्र भी चल रहे हैं. इस देश को अगर बंटने से बचाना है तो लोकतंत्र की सीमा में कानून ही हमारी मदद कर सकता है. लेकिन अगर संसद, कोर्ट और सरकार को न मानने की जिद बढ़ती गयी तो फिर देश का क्या होगा ये आप समझ सकते हैं.