DNA ANALYSIS: PM मोदी का बांग्लादेश दौरा क्यों है महत्वपूर्ण? 5 Points में समझें
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे समय में बांग्लादेश जा रहे हैं, जब पश्चिम बंगाल में विधान सभा चुनाव हैं. बांग्लादेश इस साल अपनी आज़ादी की 50वीं सालगिरह मना रहा है. 26 मार्च 1971 को यानी आज ही के दिन पूर्वी पाकिस्तान, बांग्लादेश बना था.
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज 26 मार्च को बांग्लादेश दौरे के लिए रवाना हो गए हैं. प्रधानमंत्री का ये दौरा बहुत ही महत्वपूर्ण है. कोरोना महामारी के बाद पीएम मोदी पहली बार किसी विदेशी दौरे पर जा रहे हैं और इसके कई मायने हैं, इसलिए आज हम भारत और बांग्लादेश के द्विपक्षीय रिश्तों को विस्तार देने वाले इस दौरे का विश्लेषण करेंगे.
पीएम मोदी बांग्लादेश क्यों जा रहे हैं?
सबसे पहले आपको ये बताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश क्यों जा रहे हैं? बांग्लादेश इस साल अपनी आज़ादी की 50वीं सालगिरह मना रहा है. 26 मार्च 1971 को यानी आज ही के दिन पूर्वी पाकिस्तान, बांग्लादेश बना था और इसके गठन में भारत की भूमिका काफी अहम थी. बांग्लादेश की आजादी के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध भी लड़ा गया था, जो सिर्फ 13 दिनों तक चला था. इसे दुनिया के इतिहास में सबसे कम समय तक चले युद्ध में से एक माना जाता है.
पीएम मोदी का दौरा इन बातों पर डालेगा प्रभाव
जब बांग्लादेश अपनी आज़ादी की 50वीं सालगरिह मना रहा होगा. उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ मौजूद रहेंगे और इसी से आप इस दौरे की अहमियत को समझ सकते हैं. बांग्लादेश भारत के लिए एक सच्चा मित्र होने के साथ एक भरोसेमंद पड़ोसी भी है. हालांकि पिछले कुछ वक्त में दोनों देशों के बीच रिश्तों में काफी उतार चढ़ाव आए हैं और इसकी वजह चीन है. इसलिए पहले आपको वो तीन बातें बताते हैं जिन पर प्रधानमंत्री का ये दौरा प्रभाव डालेगा.
पहली बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे समय में बांग्लादेश जा रहे हैं, जब पश्चिम बंगाल में विधान सभा चुनाव हैं और बड़ी बात ये है कि वो इस दौरान मतुआ महासंघ के संस्थापक हरिचंद्र ठाकुर के ओरकांडी मंदिर भी जाएंगे. मतुआ समुदाय का बांग्लादेश से गहरा जुड़ाव है और चूंंकि पश्चिम बंगाल में मतुआ समुदाय की कुल आबादी करीब दो करोड़ है. ऐसे में ये दौरा इस समुदाय पर अपना असर डाल सकता है.
दूसरी बात पिछले कुछ समय में चीन का प्रभाव बांग्लादेश में काफी बढ़ा है और वो बांग्लादेश की कई बड़ी परियोजनाओं में निवेश कर रहा है. ऐसे में कूटनीति की पिच पर ये दौरा चीन को भारत और बांग्लादेश के रिश्तों से आउट करने के लिए भी महत्वपूर्ण होगा.
तीसरी बात ये कि 25 मार्च और 26 मार्च की तारीख बांग्लादेश के लिए काफी अहम है क्योंकि, इसी दिन पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश एक राष्ट्र बना था और भारत की इसमें बहुत बड़ी भूमिका थी. इसलिए आज हम इतिहास के पन्ने पलट कर बांग्लादेश को मिली इस आज़ादी के बारे में भी आपको बताएंगे, लेकिन उससे पहले ये समझिए कि भारत और बांग्लादेश एक दूसरे के लिए महत्वपूर्ण क्यों हैं?
भारत और बांग्लादेश एक दूसरे के लिए महत्वपूर्ण क्यों?
- भारत और बांग्लादेश की सीमा 4 हज़ार 96 किलोमीटर लंबी है.
- दोनों देश 54 नदियों का पानी शेयर करते हैं और दो देशों के बीच बहने वाली नदियों की ये संख्या पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा है
- हमारे देश का राष्ट्रगान जन मन गण और बांग्लादेश का ''आमार सोनार बांग्ला'', दोनों रवींद्रनाथ टैगोर ने ही लिखे हैं.
- बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर भी है. 2019 में भारत और बांग्लादेश के बीच 10 बिलियन डॉलर यानी 73 हज़ार करोड़ रुपये से ज़्यादा का व्यापार हुआ था.
- दूसरे देशों की तरह बांग्लादेश भी कोविड से प्रभावित है और भारत ने मित्रता के सिद्धांत को सबसे ऊपर रखते हुए बांग्लादेश को 90 लाख वैक्सीन की डोज़ दी हैं. यानी भारत और बांग्लादेश सुरक्षा, संस्कृति, व्यापार, पानी और वैक्सीन की डोर से भी बंधे हुए हैं और यही वजह है कि जब बांग्लादेश अपनी आज़ादी का जश्न मनाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका हिस्सा बनेंगे.
बांग्लादेश की आज़ादी का 25 और 26 मार्च से रिश्ता
यहां समझने वाली बात ये भी है कि बांग्लादेश में आज आज़ादी के साथ मुजीब दिवस भी मनाया जाएगा. शेख मुजीब-उर-रहमान बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिता थे और उन्हें बांग्लादेश का जातिर पिता यानी राष्ट्रपिता कहा जाता है. बांग्लादेश उनका जन शताब्दी वर्ष मना रहा है. शेख मुजीब-उर-रहमान और बांग्लादेश की आज़ादी का 25 मार्च और 26 मार्च की तारीख से क्या रिश्ता है. अब ये भी आप जान लीजिए.
25 मार्च 1971 को पूर्वी पाकिस्तान, जो अब बांग्लादेश है. वहां ऑपरेशन सर्च लाइट शुरू हुआ था. जिसका मक़सद था पूर्वी पाकिस्तान में रह रहे राष्ट्रवादी बंगाली छात्रों, बुद्धिजीवियों, नेताओं और अल्पसंख्यक हिन्दुओं को सुनियोजित तरीके से मार देना या उन्हें पलायन के लिए मजबूर कर देना क्योंकि, ये लोग उस समय पूर्वी पाकिस्तान की आज़ादी के लिए महात्मा गांधी जैसा सिविल नाफ़रमानी आंदोलन चला रहे थे.
उस समय शेख मुजीब-उर-रहमान इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे और उन्होंने पाकिस्तान की सरकार को बड़ी मुश्किल में डाल दिया था. असल में शेख मुजीब-उर-रहमान 1940 में मुस्लिम लीग में शामिल हुए थे, जिसने भारत और पाकिस्तान के बंटवारे की नींव रखी थी. हालांकि जब पाकिस्तान एक राष्ट्र के रूप में स्थापित हो गया तो मुजीब-उर-रहमान ने बड़ा क़दम उठाया और वो मुस्लिम लीग से निकल कर आवामी लीग का हिस्सा बन गए, जिसने पूर्वी पाकिस्तान की आज़ादी के लिए संघर्ष किया.
शुरुआत में शेख मुजीब उर रहमान आवामी लीग में बड़े पदों पर रहे और 1953 में उन्हें आवामी लीग का महासचिव भी बनाया गया. इस दौरान उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर उर्दू भाषा थोपने के ख़िलाफ़ बड़ा आंदोलन किया. वो चाहते थे कि इस क्षेत्र में बांग्ला भाषा के विस्तार पर ज़ोर दिया जाए और यही आंदोलन बाद में बांग्लादेश की आज़ादी का सूत्र वाक्य भी बन गया और इसने पाकिस्तान की सरकार को बहुत बड़ी मुश्किल में डाल दिया जिसके बाद 25 मार्च को ऑपरेशन सर्च लाइट शुरू हुआ.
उस समय इस ऑपरेशन के दौरान ढाका यूनिवर्सिटी में कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान की सेना ने सैकड़ों छात्रों और शिक्षकों को गोलियों से भून कर मार दिया था. तब 25 मार्च की रात को शेख मुजीब उर रहमान को भी पाकिस्तान की सेना ने गिरफ़्तार कर लिया था और उन्हें रातों रात पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की मियांवाली जेल ले जाया गया.
हालांकि गिरफ़्तारी से पहले शेख मुजीब उर रहमान रेडियो पर बांग्लादेश की आज़ादी की घोषणा कर चुके थे. यही नहीं अगले दिन 26 मार्च 1971 को सेना की क़ैद में रहते हुए उन्होंने एक संदेश भेजा, जो बांग्लादेश में कुछ छात्रों तक पहुंचा और बाद में रेडियो पर इस संदेश को भी प्रसारित कर दिया गया.
हालांकि जब ये सब हो रहा था और पूर्वी पाकिस्तान में डर और दहशत का माहौल था. तब भारत में बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थियों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही थी. कहा जाता है कि एक करोड़ शरणार्थी उस समय भारत में आए और पूर्वी पाकिस्तान में नागरिकों और सेना के बीच लंबा खूनी संघर्ष चला.
ये वो समय था, जब शेख मुजीब उर रहमान पाकिस्तान की जेल में बंद थे और 17 अप्रैल 1971 को कलकत्ता, पूर्वी पाकिस्तान की अस्थायी सरकार का गढ़ बना. यानी बांग्लादेश की पहली सरकार का गठन कलकत्ता में हुआ था.
पीएम मोदी का बांग्लादेश दौरा क्यों है महत्वपूर्ण?
अब आप समझ गए होंगे कि 26 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बांग्लादेश जाना इतना महत्वपूर्ण क्यों है. प्रधानमंत्री 495 दिनों बाद किसी विदेशी दौरे पर जाएंगे. हालांकि इस दौरे से पहले पश्चिम बंगाल में इस पर बहस शुरू हो गई है और इसे चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है. इसे तीन पॉइंट्स में समझिए
पहला पॉइंट ये कि प्रधानमंत्री अपने इस दौरे पर मतुआ महासंघ के संस्थापक हरिचंद्र ठाकुर के ओरकांडी मन्दिर के दर्शन करेंगे, जिसका पश्चिम बंगाल से काफी गहरा जुड़ाव है. असल में पश्चिम बंगाल में मतुआ समुदाय का लगभग 30 विधान सभा सीटों पर सीधा प्रभाव है.
ये सीटें बंगाल के उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना, नादिया, जलपाईगुड़ी, सिलिगुड़ी, कूच बिहार और बर्द्धमान जिले में आती हैं. यहां एक समझने वाली बात ये भी है कि इस समुदाय के बहुत से लोगों के पास भारत की नागरिकता नहीं है. ऐसे में नागरिकता संशोधन कानून इनके लिए महत्वपूर्ण बन सकता है और बीजेपी को इसकी उम्मीद भी है.
दूसरा पॉइंट ये है कि प्रधानमंत्री इस दौरान बांग्लादेश के सुगंधा शक्तिपीठ भी जाएंगे. इसे 51 शक्तिपीठ में से ये एक माना जाता है और ये हिंदुओं की आस्था से जुड़ा हुआ है. मान्यता है कि जब शिवजी ने तांडव किया था तो भगवान विष्णु ने चक्र चला कर उनकी पत्नी सति के शरीर को नष्ट कर दिया था और इस दौरान उनकी नाक यहां पर आकर गिरी थी. ऐसा कहा जाता है कि ये मंदिर पश्चिम बंगाल की कई सीटों को भी अपने साथ जोड़ता है और यहां से बहुत से लोग हर साल दर्शन के लिए वहां जाते हैं.
तीसरा पॉइंट ये कि प्रधानमंत्री अपने दौरे पर रबींद्र कुठी बारी भी जाएंगे. असल में ये द्वारकानाथ टैगोर का घर था, जो रवींद्र नाथ टैगोर के दादा थे. सब जानते हैं कि पश्चिम बंगाल का रवींद्र नाथ टैगोर से कितना गहरा लगाव है. वो एशिया के पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला था और भारत, बांग्लादेश दोनों देशों का राष्ट्रगान भी उन्होंने ही लिखा था.
चौथा पॉइंट प्रधानमंत्री मोदी के दौरे में कुछ ऐसे पड़ाव आने वाले हैं, जिससे उनका ये दौरा बांग्लादेश की वजह से कम और बंगाल चुनाव से ज्यादा जोड़कर देखा जा रहा. उन्हीं में से एक है मतुआ समाज के धर्मगुरु हरिचंद्र ठाकुर की जन्मस्थली 27 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी यहां से मतुआ समाज के लोगों के लिए कुछ बड़ा ऐलान कर सकते हैं. पश्चिम बंगाल में मतुआ समाज के 2 करोड़ लोग रहते हैं और बंगाल की 30 सीटों पर इनका सीधा असर दिखता है. इसलिए प्रधानमंत्री का ये दौरा पश्चिम बंगाल चुनाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है. वैसे बंगाल के लिए प्रधानमंत्री मोदी की लिस्ट में वर्ष 2019 से ही मतुआ समाज सबसे पर रहा है. 2019 में बंगाल में लोकसभा चुनाव प्रचार की शुरुआत प्रधानमंत्री ने मतुआ समाज के 100 साल पुराने मठ मां बोरो जाकर किया था.
पांचवां पॉइंट प्रधानमंत्री मोदी बांग्लादेश में शिकारपुर के सुगंधा शक्तिपीठ भी जाएंगे. ये 51 शक्तिपीठ मंदिरों में से एक है और ऐसी मान्यता है कि यहां देवी सती की नाक गिरी थी. सती की इस शक्ति को त्रयंबक या भैरव कहा जाता है. शिकारपुर में सुनंदा नदीं के तट मां सुगंधा का मंदिर है. ये मंदिर उग्रतारा ने नाम से चर्चित है. यहां से बंगाल के लोगों की गहरी आस्था जुड़ी. हर साल हजारों बंगाली यहां मां सुगन्धा के दर्शन के लिए आते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी आस्था के इन दो पड़ावों बाद बंगाली संस्कृति में रचने और बसने वाले सबसे बड़े प्रतीक रवीन्द्रनाथ टैगोर के दादा द्वारका नाथ टैगोर के घर भी जाएंगे. इस घर में 1891 से 1901 तक रवीन्द्रनाथ टैगोर रहा करते थे. यहीं से उन्होंने गीतांजलि के कई गीत और कविताएं लिखीं. बंगाली आस्था और अस्मिता को छूने के बाद प्रधानमंत्री बाघा जतिन के नाम से मशहूर बंगाली क्रांतिकारी यतीन्द्रनाथ मुखर्जी के घर भी जाएंगे.
भारत और बांग्लादेश की दोस्ती खास क्यों?
इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी 2015 में बांग्लादेश के दौरे पर गए. लेकिन तब उनका दौरा सिर्फ ढाका तक ही सिमट गया था. इस बार प्रधानमंत्री मोदी ने ढाका से बाहर का प्लान भी तैयार किया है जिसके पीछे बंगाल चुनाव का कनेक्शन बताया जा रहा. अब हम आपको नरेंद्र मोदी और शेख हसीना की दोस्ती के बारे में बताते हैं, ये दोस्ती ख़ास क्यों है, इसे समझिए.
वर्ष 2017 में शेख हसीना भारत दौरे पर आई थीं. तब प्रधानमंत्री सभी प्रोटोकॉल को नज़रअंदाज़ करते हुए ख़ुद दिल्ली के पालम एयरपोर्ट पर उनका स्वागत करने के लिए गए थे. यही नहीं पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें एक दिन के लिए राष्ट्रपति भवन में ठहरने का निमंत्रण दिया था, जिसे शेख हसीना ने स्वीकार कर लिया था.
शेख हसीन उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक Dinner Set, एक Leather Bag और दो किलो संदेश मिठाई भी लाई थीं. इसके अलावा वो प्रधानमंत्री की मां हीराबेन के लिए राजशाही सिल्क साड़ी भी लाई थीं और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को उन्होंने 20 किलोग्राम हिलसा मछली भी तोहफे में दी थी। ये उपहार बताते हैं कि शेख हसीना के लिए भारत कितना मायने रखता है. आज हम आपको प्रधानमंत्री का 2019 का एक भाषण भी सुनाना चाहते हैं, जिसमें उन्होंने शेख हसीना के साथ अपनी गहरी दोस्ती के बारे में बताया था.
एक दिलचस्प जानकारी ये भी है कि शेख हसीना 6 साल दिल्ली में भी रह चुकी हैं. ये बात 1975 से 1981 की है. उस समय दिल्ली में उनका पता था, 56 Ring Road Lajpat Nagar 3. हालांकि बाद में वो दिल्ली के पंडारा पार्क में शिफ्ट हो गई थीं. शेख हसीना 28 साल की उम्र में भारत आई थीं, जब 1975 में तख्तापलट के दौरान उनके पिता शेख मुजीब उर रहमान और परिवार के दूसरे सदस्यों की सेना ने हत्या कर दी थी.
कई मुद्दों पर विवाद भी
हालांकि पड़ोसी और सच्चे मित्र होने के साथ भारत और बांग्लादेश के बीच आज कई मुद्दों पर विवाद भी है.
सबसे बड़ा विवाद तीस्ता नदी के पानी को लेकर है, अभी तक भारत और बांग्लादेश तीस्ता के पानी के बंटवारे को लेकर किसी नतीजे तक नहीं पहुंच पाए हैं और इस पर दोनों देशों में काफ़ी मतभेद भी हैं.
दूसरी चुनौती है, बांग्लादेश से भारत आने वाले शरणार्थी, जिस पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल ही में अपनी बांग्लादेश यात्रा के दौरान चर्चा भी की थी.
और तीसरी चुनौती है बांग्लादेश में चीन का बढ़ता प्रभाव. पिछले कुछ वर्षों में चीन ने बांग्लादेश की कई परियोजनाओं में भारी भरकम निवेश किया है और इसका असर भारत और बांग्लादेश के द्विपक्षीय संबंधों पर भी पड़ा है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है चीन की वन बेल्ट, वन रोड परियोजना, जिसका अब बांग्लादेश भी हिस्सा बन चुका है. इसके तहत चीन बांग्लादेश के इंफ्रास्ट्रक्चर को मज़बूत करने के लिए काफ़ी निवेश कर रहा है. चीन ने बांग्लादेश को डेढ़ लाख करोड़ रुपये लोन देने का वादा पिछले ही साल किया है.
पाकिस्तान, बांग्लादेश से कितना पीछे?
अब आपको ये बताते हैं कि 14 अगस्त 1947 को आज़ाद हुआ पाकिस्तान, बांग्लादेश से आज कितना पीछे रह गया है.
पाकिस्तान की आबादी लगभग 21 करोड़ है जबकि बांग्लादेश की आबादी 17 करोड़ है.
2019 में पाकिस्तान की GDP ग्रोथ 5.8 प्रतिशत थी, जबकि बांग्लादेश की 7.8 प्रतिशत थी.
पाकिस्तान में हर व्यक्ति पर कर्ज़ 70 हजार रुपये है. बांग्लादेश में ये आंकड़ा लगभग 31 हजार रुपये है.
पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 57 हजार 600 करोड़ रुपये जबकि बांग्लादेश का 2 लाख 30 हजार 400 करोड़ रुपये है.
पाकिस्तान में औसतन लोग साढ़े 66 साल जीते हैं जबकि बांग्लादेश में लोग औसतन साढ़े 72 साल जीवित रहते हैं.
पाकिस्तान में सालाना प्रति व्यक्ति आय 1 लाख 22 हजार रुपये है जबकि बांग्लादेश में 1 लाख 37 हजार रुपये है.