DNA Analysis on Razia Masjid: आज इस पूरे विवाद की पृष्ठभूमि को समझने के लिए हमने बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए एक अध्ययन की भी मदद ली है. ये रिसर्च पेपर BHU द्वारा इसी साल प्रकाशित किया गया था, जिसमें काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़े विवाद पर शोध किया गया है.


पहले ये था शिव मंदिर का नाम


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वाराणसी की गिनती दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में होती है. और कुछ साक्ष्य ये भी बताते हैं कि इस शहर में भगवान शिव का सबसे प्राचीन मंदिर लगभग 2600 साल पुराना है. उस समय इस मंदिर को काशी विश्वनाथ के नाम से नहीं जाना जाता था. बल्कि तब इस मंदिर का नाम था, अवि-मुक्तेश्वरा. इसके अलावा कुछ तथ्यों से ये भी पता चलता है कि आगे चलकर इसी मंदिर को नया नाम दिया गया और ये नाम था, विश्वेश्वरा देवा.


7वीं सदी की किताबों में उल्लेख 


7वीं सदी में चीन के प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु Xuanzang (ह्वेन त्सांग) अपना सब कुछ त्याग कर चीन से भारत आए थे. वो अपनी भारत यात्रा के दौरान बनारस भी गए थे. और इस दौरान उन्होंने वहां भगवान शिव के प्राचीन मंदिर के दर्शन भी किए थे, जिसका जिक्र उन्होंने अपनी कुछ पुस्तकों में भी किया है. इससे ये पता चलता है कि वाराणसी में भगवान शिव के प्राचीन मंदिर का इतिहास सिर्फ कल्पनाओं पर आधारित नहीं है. बल्कि इसके ऐतिहासिक साक्ष्य भी मौजूद हैं. यही नहीं चौथी से 9वीं सदी के बीच लिखे गए पुराणों में भी इस मंदिर का कई बार उल्लेख मिलता है. इसमें बताया गया है कि प्राचीन काल में बनारस शहर का एक ही मुख्य केन्द्र था और वो था भगवान शिव का प्राचीन मंदिर, जिसे अवि-मुक्तेश्वरा के रूप में पूजा जाता था.


रजिया सुल्तान ने मंदिर को बनाया मस्जिद 


हालांकि BHU के रिसर्च पेपर के मुताबिक, 12वीं सदी के अंत में जब उत्तर भारत का काफी हिस्सा गौरी साम्राज्य के अधीन चला गया, तब मोहम्मद गौरी के विश्वासपात्रों में से एक और दिल्ली सल्तनत के पहले गुलाम शासक कुतुबद्दीन ऐबक ने काशी पर हमला किया. इस हमले में तब वहां भगवान शिव के प्राचीन मंदिर को तोड़ कर उसे नष्ट कर दिया गया था. इस हमले के कुछ वर्ष बाद रजिया सुल्तान ने काशी में उस जगह पर एक मस्जिद का निर्माण करा दिया, जहां पहले भगवान शिव को समर्पित प्राचीन ज्योतिर्लिंग था. रजिया सुल्तान दिल्ली सल्तनत की पहली महिला मुस्लिम शासक थी. इसी वजह से तब काशी में बनी इस मस्जिद को बीबी रजिया मस्जिद कहा गया. आज हमारी टीम ने काशी में इस मस्जिद को भी ढूंढ निकाला है.


हिंदुओं के केंद्र का इस्लामीकरण 


संक्षेप में कहें तो काशी में जो स्थान हिन्दुओं की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र था, उसका इस्लामीकरण कर दिया गया. काशी के वैभव को नुकसान पहुंचाने के साथ, इस शहर का सांस्कृतिक इतिहास बदलने की पुरजोर कोशिशें की गईं. ये बातें हम अपनी तरफ से नहीं कह रहे हैं. ये सब कुछ BHU के रिसर्च पेपर में लिखा है. इस रिसर्च पेपर में बताया गया है कि 13वीं सदी में गुजरात के एक व्यापारी ने काशी में रजिया सुल्तान द्वारा बनाई गई मस्जिद के पास एक नए मंदिर का निर्माण कराया था, जो भगवान शिव को ही समर्पित था. हालांकि इस मंदिर पर भी मुस्लिम शासकों द्वारा दो बार बड़े हमले किए गए.


15वीं शताब्दी में फिर मंदिर किया गया नष्ट


पहला हमला 15वीं शताब्दी में हुआ, जब जौनपुर के शर्की वंश के एक मुस्लिम शासक ने इस मंदिर को आंशिक रूप से नष्ट कर दिया. यानी इस हमले में मंदिर को नुकसान तो पहुंचाया गया लेकिन तब ये मंदिर पूरी तरह नष्ट नहीं हुआ. इसके बाद वर्ष 1490 में दिल्ली सल्तनत के शासक सिकंदर लोदी ने इस मंदिर पर हमला करने की योजना बनाई और वो हिन्दुओं से इस कदर नफरत करता था कि उसने इस मंदिर के बचे हुए अवशेषों को भी गिरा दिया. इस हमले के लगभग 100 वर्षों के बाद राजा टोडरमल ने इस मंदिर का पुननिर्माण कराया. राजा टोडरमल मुगल शासक अकबर के नौ रत्नों में से एक थे. हालांकि, इसके बाद मुगल शासक औरंगजेब ने हिंदुओं का दमन करना शुरू कर दिया और उसके शासनकाल में कई मंदिर तोड़े गए.


औरंगजेब के फरमान पर गिराया विश्वनाथ मंदिर


औरंगजेब हिन्दुओं से इतनी नफरत करता था कि वो हिंदू संस्कृति से जुड़ी तमाम सामग्री, किताबें और मंदिर समाप्त कर देना चाहता था. 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब के एक दरबारी की तरफ से जारी किए गए फरमान में इसका जिक्र भी मिलता है. ये फरमान मूल रूप से फारसी में लिखा गया था, जिसका बाद में हिन्दी में अनुवाद किया गया. इसके मुताबिक उस समय इस फरमान में ये लिखा गया था कि औरंगजेब को ये खबर मिली है कि मुलतान के कुछ सूबों और बनारस में बेवकूफ ब्राह्मण अपनी रद्दी किताबें पाठशालाओं में पढ़ाते हैं. इस जानकारी के बाद एक फरमान में सूबेदारों से ये कहा गया कि वो अपनी इच्छा से काफिरों के मंदिर और पाठशालाओं को गिरा दें. इसके बाद औरंगजेब को ये जानकारी दी गई कि उनके आदेश पर 2 सितंबर 1669 को काशी विश्वनाथ मंदिर को भी गिरा दिया गया है. यानी एक एतिहासिक दस्तावेज खुद इस बात की पुष्टि करता है कि औरंगजेब के आदेश पर ही काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ा गया था.



क्यों छोड़ दी मंदिर की एक दीवार


BHU के इस रिसर्च पेपर में ये भी बताया गया है कि इस हमले में तब औरंगजेब ने जानबूझकर इस मंदिर की एक दीवार को नहीं तोड़ा था, ताकि इस शहर में रहने वाले हिंदू इस बात को कभी ना भूलें कि वो मुगल शासकों के गुलाम होने से ज्यादा कुछ नहीं हैं. औरंगजेब ने जिस जगह मस्जिद का निर्माण कराया, उसे ज्ञानवापी कहा गया. ऐसा माना जाता है कि इस मस्जिद की जो पश्चिमी दीवार है, वो पुराने काशी विश्वनाथ मंदिर का ही बचा हुआ एक अवशेष है, जिसे औरंगजेब के आदेश के बाद जानबूझकर नहीं तोड़ा गया था. 


अहिल्याबाई ने बनवाया था नया मंदिर


बड़ी बात ये है कि औरंगजेब के हमले के बाद वर्ष 1780 में मालवा की रानी अहिल्याबाई ने ज्ञानवापी परिसर के बगल में ही एक नया मंदिर बनवा दिया, जिसे आज हम काशी विश्वनाथ मंदिर के तौर पर जानते हैं. तो इस पूरी कहानी से दो बातें स्पष्ट होती हैं. पहली बात ये कि काशी में भगवान शिव का जो प्राचीन मंदिर था, उसे 12वीं शताब्दी के अंत में कुतुबद्दीन ऐबक ने तुड़वा दिया था और इसके बाद यहां रजिया सुल्तान द्वारा एक मस्जिद बना दी गई थी, जो आज भी यहां मौजूद है. इसके बाद जिस जगह 13वीं सदी में फिर से भगवान शिव का मंदिर बनाया गया, उसे औरगंजेब ने तुड़वा दिया था. आज हमारी टीम काशी की रजिया मस्जिद भी पहुंची और इस दौरान हमें कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिलीं.