DNA Analysis: विनोद खन्ना से सीखें जीवन जीने का तरीका, करियर के चरम पर लिया था संन्यास
अंग्रेजी का एक शब्द है Quit (क्विट) जिसका अर्थ होता है छोड़ना. इसी से मिलता जुलता अंग्रेजी का एक और शब्द है Quite जिसका अर्थ होता है संपूर्णता.
नई दिल्ली: अंग्रेजी का एक शब्द है Quit (क्विट) जिसका अर्थ होता है छोड़ना. इसी से मिलता जुलता अंग्रेजी का एक और शब्द है Quite जिसका अर्थ होता है संपूर्णता. इन शब्दों के आधार पर आप ये समझ सकते हैं कि जीवन के अलग अलग क्षेत्रों में संपूर्णता हासिल करने के बाद आप उन्हें छोड़ने की तैयारी कैसे कर सकते हैं ?
पाकिस्तान के पेशावर में हुआ था विनोद खन्ना का जन्म
इस विश्लेषण के लिए अभिनेता विनोद खन्ना (Vinod Khanna) के जीवन को आधार बनाया जा सकता है. उनका जन्म 6 अक्टूबर 1946 को पाकिस्तान के पेशावर में हुआ था. विनोद खन्ना के जीवन में कई महत्वपूर्ण पड़ाव आए.लेकिन इनमें सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव वह था. जब उन्होंने सफलता के शिखर पर होते हुए भी अचानक फिल्मों से संन्यास ले लिया.
करियर के चरम पर पहुंचकर कह दिया अलविदा
हर रोज़ हजारों लड़के- लड़कियां हीरो और हीरोइन बनने के लिए फिल्म इंडस्ट्री मुंबई पहुंचते हैं. उनका सपना होता है कि एक दिन वो सुपर स्टार बने... जो लोग सुपर स्टार बन जाते हैं उनका सपना होता है कि उनका स्टारडम जीवन भर बना रहे और वो उस स्टारडम के साथ हमेशा चिपके रहे. लेकिन विनोद खन्ना ने सफलता के चरम पर पहुंचकर सबकुछ छोड़ दिया था.
जीवन के हर किरदार को 100 प्रतिशत दिया
सही समय पर वस्तुओं और इच्छाओं के मोह को जाने देने की कला आज आपको विनोद खन्ना से सीखनी चाहिए. अपने करियर के चरम पर उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री छोड़कर आध्यात्म का रास्ता अपना लिया था. विनोद खन्ना ने अपने जीवन के हर किरदार को अपना 100 प्रतिशत दिया. फिल्मों से लेकर राजनीति तक में उन्हें जो सफलता मिली उसके पीछे सबसे बड़ी वजह यही थी कि उन्होंने जो भी किया संपूर्णता के साथ किया.
शुरू में केवल खलनायकों वाली भूमिकाएं मिली
वर्ष 1968 में अपने फिल्मी करियर की शुरुआत के बाद उन्हें सिर्फ खलनायक के रोल यानी नकारात्मक भूमिकाएं मिलती थीं. उन दिनों ऐसी शुरुआत के बाद किसी अभिनेता को नायक का रोल बड़ी मुश्किल से मिलता था. लेकिन विनोद खन्ना ने खुद को नायक या खलनायक के दायरे में नहीं बाटा. उन्होंने सिर्फ अपने अभिनय पर ध्यान दिया और एक समय ऐसा आया जब उन्हें उस दौर के सबसे सफल अभिनेता अमिताभ बच्चन के बराबर का एक्टर माना जाने लगा.
मौलिक अभिनेता थे विनोद खन्ना
विनोद खन्ना के व्यक्तित्व की एक और खासियत थी कि वे मौलिक अभिनेता थे. उन्होंने किसी और की अभिनय शैली को खुद पर हावी नहीं होने दिया और न ही अपने दौर के बड़े स्टार अमिताभ बच्चन को कॉपी किया. वे अपने समकालीन अभिनेताओं से काफी आगे थे.
हमेशा दूसरों से कुछ न कुछ सीखते थे
विनोद खन्ना हमेशा दूसरों से सीख लेने में विश्वास रखते थे. वो कहते थे कि आपका गुरु कोई भी हो सकता है. आप अपने आस-पास के लोगों, अपने जीवनसाथी और अपने दोस्त यानी किसी भी व्यक्ति से खुद के जीवन को बेहतर
बनाने का सबक ले सकते हैं.
हिंदी सिनेमा के सबसे Handsome Heroes में से एक थे
वर्ष 1973 से 1982 तक उनके करियर का Golden Period था. तब उन्हें हिंदी सिनेमा के सबसे Handsome Heroes में से एक माना जाता था. मुकद्दर का सिकंदर, अमर अकबर एंथनी और कुर्बानी उनकी कुछ सुपरहिट
फिल्में हैं. उन्होंने जिस वक्त फिल्म इंडस्ट्री से ब्रेक लिया उस वक्त वो हिंदी सिनेमा के सबसे महंगे अभिनेताओं में से एक थे. कई फिल्मों में काम करने के लिए तो उन्हें अमिताभ बच्चन, जितेंद्र, शशि कपूर और रजनीकांत से भी ज्यादा
Fees मिली थी. लेकिन फिल्मों में काम करते समय ही उनका रुझान अध्यात्म की तरफ हो गया था.
फिल्मों में काम करने के दौरान ओशो रजनीश से संपर्क
फिल्मों में काम करने के दौरान वो आध्यात्मिक गुरु ओशो रजनीश के संपर्क में आए और 1982 में उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री छोड़कर संन्यासी बनने का फैसला किया. इसके बाद वे ओशो के साथ अमेरिका चले गए और वहीं ओशो के आश्रम में संन्यासी का जीवन बिताने लगे. कहा जाता है कि विनोद खन्ना ओशो के आश्रम में जूठी प्लेटें साफ करने से लेकर बागवानी तक के काम करते थे.
अपनी शर्तों पर जीवन जीते थे
विनोद खन्ना जीवन की सच्चाई को समझने वाले लोगों में थे. वो अपनी शर्तों पर जीवन जीते थे और दूसरे कलाकारों की तरह कभी डिप्रेशन या नकारात्मकता से नहीं घिरे.
अभिनेता से नेता तक का सफर
संन्यास के बाद दूसरी पारी में भी उनका फिल्मी करियर चल निकला. अपनी दूसरी पारी में विनोद खन्ना ने एक फिल्म स्टार से नेता बनने तक का सफर भी तय किया. विनोद खन्ना एक सफल राजनेता भी थे. वो पंजाब के गुरुदासपुर
लोकसभा सीट से BJP के टिकट पर 4 बार सांसद रहे. वे अटल बिहारी वाजयेपी की सरकार में दो बार मंत्री भी रहे.
मंजिल में नहीं सफर में है जीवन का आनंद
बिना रुके, बिना थके और बिना हार माने जीवन के आखिरी पलों तक काम करने की ललक विनोद खन्ना को औरों से अलग करती थी. उनका जीवन हमें सिखाता है कि जीवन का असली आनंद उसकी यात्रा में है,मंज़िल में नहीं. जो लोग
सिर्फ मंज़िल का ध्यान रखते हैं, वो जीवन के सफर में जल्दी खर्च हो जाते हैं.
इच्छाओं की मीनार बनाने में लगे रहते हैं लोग
भारत में खिलाड़ी कभी मैदान को अलविदा नहीं कहना चाहते, अभिनेता जीवन के आखिरी पलों तक फिल्मों में दिखना चाहते हैं और नेता बुजुर्ग हो जाने पर भी कुर्सी को छोड़ना नहीं चाहते. यहां तक कि हमारे देश के आम लोग भी जल्दी रिटायर नहीं होना चाहते. हर कोई अपनी इच्छाओं की मीनार को जितना बड़ा हो सके, उतना बड़ा बनाना चाहता है. इसी वजह से भारत में कोई भी व्यक्ति मार्गदर्शक मंडल में शामिल नहीं होना चाहता.
वानप्रस्थ के नियम को भूले लोग
लोगों के मन में सब कुछ हासिल कर लेने की इच्छा कभी नहीं मरती. हमारे शास्त्रों में बुढ़ापे में वानप्रस्थ का नियम था. यानी सारे बुज़ुर्ग, नई पीढ़ी को मौका देने के लिए एक उम्र के बाद वन में चले जाते थे लेकिन कलियुग में ऐसा नहीं होता है.
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