नई दिल्ली: आज हम आपको उत्तर प्रदेश के मुजफ्फनगर के तिगरी गांव लेकर चलते हैं. जहां बेटियों को सम्मान देने के लिए एक शानदार मुहिम शुरू की गई है. इस गांव के घरों के बाहर लगने वाली नेम प्लेट्स में अब घर के बेटों की जगह बेटियों के नाम लिखे जा रहे हैं. यानी अब इस गांव में बेटियों को घर के मुखिया का दर्जा दिया जाने लगा है. ये मुजफ्फनगर से आई रोशनी की वो किरण है जिसके सामने मोमबत्ती गैंग की झूठी रोशनी फीकी पड़ जाएगी.


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आपने अक्सर देखा होगा कि देश में जब कोई हाथरस कांड जैसी घटना होती है तब देश में मोमबत्ती गैंग सक्रिय हो जाता है. ये गैंग सड़क पर उतरकर ये साबित करने लगता है कि महिला सुरक्षा और उनके हितों का सबसे बड़ा हितैषी यही गैंग है. लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि ये मोमबत्ती गैंग मीडिया के कैमरे हटते ही कहां गायब हो जाता है. महिलाओं की सुरक्षा और सामाजिक अधिकारों के लिए ये लोग बाकी समय क्या करते हैं. दिल्ली के जंतर मंतर इस मोमबत्ती गैंग की पसंदीदा जगह है. लेकिन आज हम आपको जंतर मंतर से 137 किलोमीटर दूर मुजफ्फरनगर के तिगरी गांव लेकर चलते हैं. इस गांव के लोगों ने अपने घरों की नेम प्लेट में बेटों की जगह बेटियों का नाम लिखना शुरू किया है.


बेटियों का नाम लिखने से क्या होगा?
आप सोच रहे होंगे कि नेम प्लेट में बेटियों का नाम लिखने से क्या होगा? क्या इस बदलाव से बेटियों को बराबरी का हक मिल जाएगा? घर से बाहर निकलने के लिए बेटियों को जिस आत्मविश्वास की जरूरत होती है, क्या इस मुहिम से उनमें वो आत्मविश्वास आएगा. हमने इन सारे सवालों का जवाब ढूंढने के लिए अपनी रिपोर्टिंग टीम को मुजफ्फरनगर के इस गांव में भेजा. हमारी टीम ने इस गांव में बदलाव की जो शुरुआत देखी उसके बारे में आज आपको भी जानना चाहिए.



नेम प्लेट बेटियों की बदलती सामाजिक जिंदगी की गवाही दे रही
सामाजिक बदलाव की उम्मीद जहां से बहुत कम होती है, वहीं पर बदलाव के बीज बोये जाते हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के तिगरी गांव में बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ नारे से एक कदम आगे बढ़कर बेटियों को एक बड़ी पहचान दी जा रही है. यहां हर घर के दरवाजे पर पर लगी नेम प्लेट बेटियों की बदलती सामाजिक जिंदगी की गवाही दे रही है.


तिगरी गांव सबसे बड़े सामाजिक बदलाव की ओर आगे बढ़ चुका है. गांव में करीब हर घर के बाहर की नेम प्लेट उस घर की बेटी के नाम पर लगा दी गई है. बेटे-बेटी के बीच का फर्क यह गांव मिटा रहा है. अब घर के नाम पर सिर्फ बेटों का कॉपीराइट नहीं बल्कि बेटियां नई पहचान बना रही हैं.


ये गुलअफ्शा और मुस्कान के मकान हैं. गांव में इनकी पहचान अभी तक अपने अब्बा और भाईजान के नाम पर होती थी लेकिन नई नेम प्लेट ने इन बच्चियों के अरमानों को नई उड़ान दी है. उन्हें वो आत्मविश्वास दिया है जिससे वो घर की चारदीवारी से निकल कर अपने जीवन में कुछ बड़ा करने के सपने देख रही हैं.


दोनों धर्म के लोग बेटियों का हक दिलाने के लिए बराबरी से जुटे हुए
तिगरी गांव में हिंदू और मुसलमानों की आबादी लगभग बराबर है. दोनों धर्म के लोग बेटियों का हक दिलाने के लिए बराबरी से जुटे हुए हैं. गांव की बेटियां भी दरवाजे पर अपनी नाम की नेम प्लेट वाली मुहिम पर गर्व कर रही हैं.


तिगरी गांव के लोगों की सोच में बदलाव का ऐसा जुनून है कि किसी ने अपनी 4 महीने की बेटी का नाम नेम प्लेट लगवा दी है तो कोई अगली दुकान बेटी के नाम पर खोलने को तैयार है.


हालांकि अभी भी यहां कई दुकानों पर आपको वहीं नाम मिलेंगे जो आपको हर शहर और कस्बों में नजर आते हैं.


खाप पंचायत के फरमानों के लिए मशहूर है ये जगह
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का ये क्षेत्र हमेशा खाप पंचायतों के फरमानों के लिए मशहूर रहा है ऐसे में ये बदलाव कहां से आया हमने इसे भी जानने का प्रयास किया.


21वीं सदी में बेटियां, बेटों से हर मायने में आगे निकल रही हैं और सामाजिक बदलाव के मामले में मुजफ्फरनगर के कई गांव बड़े बड़े महानगरों की सोच से आगे निकल रहे हैं.


मुजफ्फरनगर इस मुहिम से पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए अब अपनी एक नई पहचान बना रहा है, यह मॉडल पूरे देश के लिए एक मिसाल हो सकता है कि अगर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे को चरितार्थ करना है तो मुजफ्फरनगर से इसे सीखा जा सकता है.


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