DNA Analysis: मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद के चप्पे-चप्पे पर हिंदू मंदिर की है मोहर, ये हैं सबूत
DNA Analysis: मथुरा के राजस्व रिकॉर्ड में जिस जगह पर मस्जिद बनी है उसके मालिक के तौर पर श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट लिखा हुआ है. ये वो अकाट्य सबूत हैं जो साबित करते हैं कि मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद प्राचीन कृष्ण मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी.
DNA Analysis: मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद के चप्पे-चप्पे पर हिंदू मंदिर की मोहर लगी हुई है, लेकिन मुस्लिम पक्ष इस सच को स्वीकार करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है. हम आपको मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद और कृष्ण जन्मभूमि से जुड़े वो साक्ष्य बताने जा रहे हैं जिसके बाद शायद दरबारी इतिहासकारों की नींद उड़ जाएगी.क्या आपने कभी इतिहास की किसी किताब में पढ़ा कि आज से 160 वर्ष पहले Archeological Survey of India ने मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद के प्राचीन मंदिर के अवशेषों पर बने होने की पुष्टि की थी. क्या आपको किसी ने आजतक बताया कि अंग्रेजों के जमाने में 1832 से 1935 तक मथुरा की जिला अदालत से लेकर इलाहाबाद हाइकोर्ट तक ने हर बार पूरी जमीन का मालिक हिंदुओ को माना था.
आज भी मथुरा के राजस्व रिकॉर्ड में जिस जगह पर मस्जिद बनी है उसके मालिक के तौर पर श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट लिखा हुआ है.
- सबूत नंबर 1 - आज से 160 वर्ष पुरानी Archeological Survey of India की रिपोर्ट.
- सबूत नंबर 2 - 27 जनवरी 1670 को दिया गया मुस्लिम आक्रांता औरंगजेब का फरमान.
- सबूत नंबर 3 - 1968 के उस समझौते की ऑरिजनल कॉपी जो श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह इंतजामिया कमेटी के बीच हुआ था.
- सबूत नंबर 4 - वर्ष 1935 का इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले की कॉपी जिसने इस विवाद में हिंदुओं के पक्ष में फैसला सुनाया था.
और सबूत नंबर 5 - इसके अलावा हमारे पास उत्तर प्रदेश सरकार के राजस्व विभाग का वो दस्तावेज भी है जिसमें शाही ईदगाह मस्जिद की जमीन का मालिकाना हक श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के नाम दर्ज है.
ये वो अकाट्य सबूत हैं जो साबित करते हैं कि मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद प्राचीन कृष्ण मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी. लेकिन इन दस्तावेजों में लिखे सच को समझने के लिए जरूरी है कि आपको इस विवाद का इतिहास पता हो तो सबसे पहले आपको वही बता देते हैं.
दरअसल ये पूरा विवाद 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है, जिसमें 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है. ये बंटवारा 1968 के समझौते के आधार पर हुआ है लेकिन ये समझौता भी विवादों में है जिसके बारे में हम आपको आगे बताएंगे.
हिंदुओं का दावा है कि जिस जमीन पर ईदगाह मस्जिद है, पहले वहां मंदिर था जिसे औरंगजेब ने तुड़वाकर मस्जिद बनवाई थी. हिंदू पक्ष का ये भी दावा है कि ईदगाह मस्जिद, वही जगह है जहां कंस की कारागार में देवकी ने श्रीकृष्ण को जन्म दिया था. यानी ईदगाह मस्जिद श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर बनी हुई है.
हिंदू पक्ष चाहता है कि उसे पूरी 13.37 एकड़ जमीन पर मालिकाना हक दिया जाए जिसको लेकर मथुरा कोर्ट में 25 सितंबर 2020 में याचिका दाखिल की गई थी जिसे कोर्ट ने Places Of Worship Act 1991 के आधार पर खारिज कर दिया था.
जिसके बाद 12 अक्टूबर 2020 को दोबारा पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई जिसपर अभी भी सुनवाई चल रही है क्योंकि मुस्लिम पक्ष ये मानने के लिए तैयार नहीं है कि शाही ईदगाह मस्जिद श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर बनी है और ना ही ये मानने के लिए राजी है कि औरंगजेब ने प्राचीन मंदिर को तुड़वाकर शाही ईदगाह मस्जिद को बनवाया था लेकिन पुरानी कहावत है - प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत नहीं होती.
मुस्लिम आक्रांता औरंगजेब ने 27 जनवरी 1670 को फरमान दिया था. इस फरमान की मूल प्रति फारसी भाषा में है जिसका अंग्रेजी अनुवाद औरंगजेब के फरमानों के अनुवाद पर लिखी पुस्तक Masir I alamgiri में किया गया है.
इस फरमान में लिखा है कि रमज़ान के पाक महीने में मथुरा स्थित केशव देव मन्दिर को तोड़ने का फरमान बादशाह ने दिया है. मन्दिर को तोड़ कर उसकी मूर्तियों को आगरा स्थित बेगम साहिब मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दफना दिया जाना है. साथ ही मथुरा का नाम अब से बदल कर इस्लामाबाद कर दिया गया है.
इतिहासकारों के मुताबिक मन्दिर को विध्वंस करने के फरमान पर अमल होने के बाद, 1670 में ही शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण ध्वस्त मन्दिर के अवशेषों से कर दिया गया था. विध्वंस से पहले मन्दिर कितना सुंदर था इसका जिक्र डॉक्टर Francois Bernier (बेर्नियर) अपनी किताब Travels in the Mogul Empire 1656-1666 में करता है. Francois Bernier लिखता है कि दिल्ली से आगरा के बीच 50 से 60 लीग यानी 277 से 330 किलोमीटर की दूरी के बीच कुछ भी देखने लायक नहीं है. सब बेकार है सिवाए मथुरा के जहां एक प्राचीन और सुंदर मंदिर अभी भी खड़ा है . इतिहासकार मानते हैं कि ये मथुरा का केशव राय मन्दिर है जिसका जिक्र बेर्नियर कर रहे है जिसे औरंगजेब ने तुड़वाकर शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण करवा दिया था.
लेकिन मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर बने मन्दिर को पहली बार औरंगज़ेब ने नहीं तोड़ा था. उससे पहले भी मुस्लिम आक्रांताओं की बुरी नजर इस पर पड़ती रही थी. मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि पर आज से 5 हजार साल पहले श्रीकृष्ण के पौत्र वज्रनाभ ने जन्मभूमि मंदिर का निर्माण कराया था. जिसके बाद 400 ईस्वी में चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने इस मंदिर का पुनरुद्धार कराया.
लेकिन 1017 ई. में कृष्ण जन्मभूमि पर पहला इस्लामी हमला हुआ. लुटेरे महमूद गजनी ने मंदिर पर हमला करके ध्वस्त कर दिया और मन्दिर का सामान लूट कर ले गया. इसके 133 वर्ष बाद 1150 ईस्वी में मथुरा के राजा द्रुपद देव जनुजा ने मंदिर का पुनर्निर्माण कराया लेकिन 16वीं सदी में सिकंदर लोधी ने मथुरा पर हमला करके जन्मभूमि मंदिर को नष्ट कर दिया. इसके लगभग 100 साल बाद राजा वीर सिंह बुंदेला ने वर्ष 1618 में चौथी बार मंदिर का निर्माण कराया. लेकिन 1658 में औरंगजेब ने मुगल सल्तनत की कमान संभालने के बाद 1670 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि स्थित मन्दिर को ध्वस्त कर दिया और वहां शाही ईदगाह नाम की मस्जिद का निर्माण करवा दिया.
लेकिन मुस्लिम पक्ष पिछले 200 वर्षों से दावा करता रहा है कि शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण किसी मन्दिर को तोड़ कर नहीं किया गया था और इस मस्जिद का निर्माण तो साल 1638 में ही हो गया है लेकिन ये दावा कितना खोखला है इसकी ASI सर्टिफाइड रिपोर्ट भी हमारे पास है.
ऐतिहासिक तथ्यों से लेकर ASI की रिपोर्ट तक शाही ईदगाह मस्जिद के हिन्दू मन्दिर को तोड़ कर बनाये जाने की गवाही दे रही है लेकिन शाही ईदगाह मस्जिद इंतजामिया कमेटी तो ASI की रिपोर्ट को ही मनगढंत बता रही है.
अयोध्या, मथुरा हो या काशी या फिर कुतुब मीनार पेशे से वकील हरिशंकर जैन 30 वर्षो से आराध्यों के हक की लड़ाई कोर्ट में लड़ रहे हैं. वो मथुरा में हिंदू मुस्लिम पक्ष के बीच हुए 1968 के समझौते को Fraud की संज्ञा दी रहे हैं और उम्मीद जता रहे हैं जैसे अयोध्या में जीत हासिल को थी, वैसे ही मथुरा में करेंगे. वो दावा कर रहे हैं कि अगर कल को नौकर को घर की जिम्मेदारी दे दी जाए और मालिक की अनुपस्थिति में नौकर पड़ोसी के साथ मकान का समझौता कर ले तो क्या नौकर के समझौते के आधार पर मकान पड़ोसी का हो जाएगा.
मथुरा जन्मभूमि और शाही ईदगाह के विवाद पर मथुरा की अलग अलग अदालतों में कई मुकदमे चल रहे हैं लेकिन प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत नहीं होती.शाही ईदगाह मस्जिद खुद इसकी गवाही दे रही है कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि अगर कहीं है तो यहीं है.
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