नई दिल्‍ली: आज हम भारतीय राजनीति को ईंधन देने वाले उस Sympathy Card का विश्लेषण करेंगे, जिसका पश्चिम बंगाल के चुनाव में काफ़ी इस्तेमाल हो रहा है. पश्चिम बंगाल में 10 मार्च को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर कथित हमले का आरोप लगा और 24 घंटे में परिस्थितियां दिन और रात की तरह बदल गईं. अब ममता बनर्जी 13 मार्च से राज्य में व्‍हील चेयर पर चुनाव प्रचार की फिर से शुरुआत करेंगी. यानी पश्चिम बंगाल में राजनीतिक विज्ञान के उस सिद्धांत पर काम शुरू हो गया है, जिसमें लोगों की सहानुभूति बटोर कर चुनाव के नतीजे बदल दिए जाते हैं और नेताओं के रिपोर्ट कार्ड पर Sympathy Card हावी हो जाता है. पश्चिम बंगाल में कुछ ऐसा ही हो रहा है.


टीएमसी ने घटना को बनाया बड़ा मुद्दा  


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कल देशभर में ममता बनर्जी की चर्चा होती रही, लोगों ने उनकी स्‍ट्रेचर वाली तस्वीरों को शेयर किया, उन पर हुए कथित हमले को लेकर राय दी गई और ट्विटर पर ये ख़बर ट्रेंड करती रही और चुनाव भी इस पूरी घटना के इर्द गिर्द सिमटता हुआ दिखने लगा. यानी पश्चिम बंगाल में सब कुछ इतनी तेज़ी से घट रहा है कि लोगों के लिए ये समझना मुश्किल है कि वो किस पर यकीन करें और किस पर नहीं. इसलिए हमने तय किया है कि आज हम इस ख़बर से जुड़े हर पहलू का DNA टेस्ट करेंगे और आपको ये बताएंगे कि असल में ममता बनर्जी को चोट कैसे लगी. ये जानबूझकर लगाई गई चोट है या गलती से लगी चोट है क्योंकि, टीएमसी ने इस पूरी घटना को अब एक बड़ा मुद्दा बना लिया है और अब चोट से वोट पैदा करने की कोशिश की जा रही है.


आज हम सिर्फ़ इस घटना की ही बात नहीं करेंगे. हम ममता बनर्जी को उनकी राजनीति भी याद दिलाएंगे क्योंकि, ऐसा नहीं है कि पश्चिम बंगाल में इससे पहले ऐसी कोई घटना नहीं हुई. इससे पहले BJP नेता कैलाश विजयवर्गीय और सांसद बाबुल सुप्रियो पर भी हमला हो चुका है. BJP अध्यक्ष जे.पी. नड्डा पर तो तीन महीने पहले ही डायमंड हार्बर में हमला हुआ था, जिसमें वो बाल बाल बच गए थे. लेकिन तब ममता बनर्जी ने इस हमले की निंदा नहीं की थी और उन्हें इस हमले में राजनीति नज़र आ रही थी. उन्होंने कहा था कि ये हमला नहीं है. ये एक राजनीतिक नाटक है.


आज जब ममता बनर्जी ने ये आरोप लगाया है कि उन पर नंदीग्राम में कुछ लोगों ने हमला करने की कोशिश की तो ये समझना ज़रूरी है कि इस हमले को भी क्यों न राजनीतिक नाटक ही माना जाए और आज हम इसी का विश्लेषण करेंगे.


कथित हमले की सच्चाई क्या है?


सबसे पहले हम आपको ये बताते हैं कि इस कथित हमले की सच्चाई क्या है?


जब ममता बनर्जी नंदीग्राम में अपना नामांकन भरने के बाद रोड शो निकाल रही थीं. तब सड़क के दोनों तरफ़ काफ़ी भीड़ थी और इस भीड़ को संभालने के लिए भारी पुलिस बल भी मौजूद था. अगर आप इस घटना से पहले का वीडियो देखेंगे तो आपको समझ आएगा कि ममता बनर्जी अपनी गाड़ी में ड्राइवर के साथ वाली सीट पर बैठी थीं और गाड़ी के दरवाज़े बंद थे. जब उनका काफ़िला थोड़ा और आगे बढ़ा तो ममता बनर्जी ने अपने समर्थकों का अभिवादन स्वीकार करने के लिए गाड़ी का दरवाज़ा खोला और वो फुट स्‍टेप पर पैर रख कर खड़ी हो गईं. इस दौरान उन्होंने दोनों हाथों को जोड़ कर लोगों का धन्यवाद दिया. बड़ी बात ये है कि तब भी गाड़ी धीरे धीरे चल रही थी और ममता बनर्जी इस तरह खड़े होने से संतुलन नहीं बना पा रही थीं और शायद यही वजह है कि उन्होंने सहारा लेने के लिए अपना बायां हाथ कार की विंडो की तरफ़ से पकड़ने की कोशिश की. यानी ममता बनर्जी जिस तरह से गाड़ी के दरवाज़े पर खड़ी हुई थीं, उस स्थिति में उन्हें चोट लगने की संभावना पहले से थी. उनका बायां हाथ गाड़ी की विंडो के अंदर था और ऐसे में जरा सा भी दरवाजा बंद होने पर उन्हें चोट लग सकती थी.


घटना से पहले ममता बनर्जी के सिक्‍योरिटी गार्ड भी उनके आसपास मौजूद थे और एक सिक्‍योरिटी गार्ड तो उनको लगातार कवर कर रहा था, जबकि बाकी पुलिसवाले भीड़ को पीछे कर रहे थे. दावा है कि इसी दौरान ममता बनर्जी पर ये कथित हमला हुआ, लेकिन इसे लेकर भी हमारे कुछ सवाल हैं.


चोट लगने के बाद जब ममता बनर्जी मीडिया के सामने आईं तो उनके पहले शब्द यही थे कि गाड़ी का दरवाज़ा बंद हुआ और उनका पैर उसमें दब गया. यानी ममता बनर्जी की ही बात मान लें तो वो खुद ये कह रही हैं कि उन्हें चोट गाड़ी के दरवाज़े में दबने से आई. तो जब चोट गाड़ी पर लगे धक्के की वजह से आई तो फिर इसे हमला क्यों कहा जा रहा है?



तो इसके पीछे ममता बनर्जी ने ये दलील दी है कि जब वो गाड़ी के फुट स्‍टेप पर खड़ी थीं. तब चार से पांच लोगों ने जानबूझकर गाड़ी के दरवाज़े को धक्का दिया. हालांकि जब आप घटना के समय की तस्वीरें देखेंगे तो आपको केवल चार पांच लोग नज़र नहीं आएंगे. असल में उस समय वहां काफ़ी भीड़ थी और ऐसा कहा जा रहा है कि भीड़ की वजह से गाड़ी को धक्का लगा और इस दुर्घटना में ममता बनर्जी के बाएं पैर में चोट आई. 


यानी इस कथित हमले को लेकर तीन थ्‍योरी बनती है. 


पहली जैसा कि ममता बनर्जी आरोप लगा रही हैं कि जानबूझकर कुछ लोगों ने दरवाज़े को धक्का मारा.


दूसरी ममता बनर्जी गाड़ी के फुट स्‍टेप पर खड़ी थीं और उनका बायां हाथ विंडो के अंदर था और इसीलिए जब भीड़ गाड़ी की तरफ़ बढ़ी तो अचानक दरवाज़ा बंद होने से उनका पैर और हाथ उसमें दब गया.


और तीसरी थ्‍योरी ये भी सामने आ रही है कि वहां एक खम्भा था और इस खम्भे की वजह से ये दुर्घटना हुई. इस पूरी घटना के दौरान वहां मौजूद रहे लोग खुद इसकी पुष्टि कर रहे हैं. हमने कई लोगों से ये जानने की कोशिश की है कि क्या वाकई में ममता बनर्जी पर कुछ लोगों ने जानबूझकर हमला किया था, तो इन लोगों ने इससे साफ़ इनकार कर दिया. 


वो बातें जो पैदा करती हैं संदेह 


अब हम आपको इस कथित हमले से जुड़ी कुछ ऐसी बातें बताते हैं, जो संदेह पैदा करती हैं.


पहली बात इस घटना के बाद ममता बनर्जी की गाड़ी वहां तब तक रुकी रही, जब तक उन्होंने मीडिया को अपना बयान नहीं दिया क्योंकि, जब तक मीडिया के कैमरे ममता बनर्जी पर फोकस नहीं थे, तब तक उन्होंने अपना सिर पकड़ा हुआ था जबकि दावे के मुताबिक़, चोट उनके बाएं पैर में लगी है. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि उस समय तक वहां मौजूद लोगों और पत्रकारों को भी ये नहीं पता था कि ममता बनर्जी को चोट कहां लगी है क्योंकि, उन्होंने सिर पकड़ा हुआ था इसलिए सबको ये लग रहा था कि चोट सिर में लगी है, जबकि चोट पैर में लगी थी और ये बात उन्होंने खुद बाद में बताई.


अब हम आपको दूसरी बात बताते हैं. दावा है कि इस घटना में ममता बनर्जी को ऐसी कोई चोट नहीं आई, जिसमें उन्हें खून निकला हो. वो बार बार यही कह रही थी कि दरवाज़े में उनका पैर आने से उन्हें चोट आई और गाड़ी का ये दरवाज़ा जानबूझकर बंद किया गया. महत्वपूर्ण बात ये है कि इस दौरान उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाने की कोशिश नहीं हुई. मीडिया से उन्हें जो कहना था, उन्होंने वो सभी बातें कहीं और इसके बाद में उन्हें गाड़ी की पीछे वाली सीट पर लेटा दिया गया.


यहां हम दो तस्‍वीरों पर बात करेंगे. पहली तस्वीर में आप ममता बनर्जी को हमले के बाद पैर मोड़ कर गाड़ी की सीट पर बैठे हुए देख सकते हैं लेकिन कुछ ही मिनटों के बाद जब वहां मीडिया आता है तो ममता बनर्जी की तकलीफ़ बढ़नी शुरू हो जाती है और उन्हें गोद में उठाकर गाड़ी की पीछे वाली सीट पर लिटाया जाता है. 


तीसरी बात ये कि ममता बनर्जी ने इस घटना के बाद ये आरोप लगाया कि इस कथित हमले के दौरान वहां पुलिस मौजूद नहीं थी, जबकि तस्वीरों में आप पुलिसकर्मियों को भीड़ कंट्रोल करते हुए देख सकते हैं. इस पर हमने नंदीग्राम की पुलिस से बात करने की कोशिश की. हालांकि हमें ये नहीं बताया गया कि घटना के दौरान वहां कितने पुलिसकर्मी मौजूद थे. लेकिन हमें ये जरूर पता चला कि जब ये पूरी घटना हुई, तब ईस्‍ट मिदनापुर के एसपी, डीआईजी मिदनापुर रेंज और एआईजी सिक्‍योरिटी वहां मौजूद थे, लेकिन ममता बनर्जी का आरोप है कि उस समय वहां पुलिस थी ही नहीं. 


जब बीजेपी नेताओं पर हुआ था हमला


आज आप ये भी जानिए कि जब पश्चिम बंगाल में BJP नेताओं के ख़िलाफ़ हिंसा हुई और हमले किए गए, तब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का क्या कहना था. आपको याद होगा कि पिछले साल दिसंबर महीने में BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा पश्चिम बंगाल के दौरे पर थे और तब डायमंड हार्बर में उनकी गाड़ी पर पत्थर फेंके गए थे. इस हमले में वो बाल बाल बचे थे. इस हमले के बाद ममता बनर्जी के शब्द थे कि जब BJP के पास कोई दर्शक नहीं होता तो पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को नौटंकी करने के लिए कहती है. उन्होंने ये भी कहा था कि सुरक्षाकर्मी होने के बावजूद जे.पी. नड्डा पर इतना बड़ा हमला होना एक राजनीतिक स्टंट है और उन्होंने आरोप लगाया था कि BJP ने इस हमले की योजना पहले से बना रखी है. 


ममता बनर्जी के दोहरे मापदंड 


लेकिन आज जब ममता बनर्जी खुद पर हमले का आरोप लगा रही हैं तो उन्हें उम्मीद है कि लोग इस पर आसानी से यकीन कर लेंगे. ये उनके दोहरे मापदंड हैं. 


ममता बनर्जी के दोहरे मापदंड को आप कुछ आंकड़ों से भी समझ सकते हैं- 


-भारतीय निर्वाचन आयोग के मुताबिक, 2014 के लोक सभा चुनाव में 16 राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्या हुई थी, जिनमें से 7 यानी 44 प्रतिशत हत्याएं अकेले सिर्फ़ बंगाल में हुई थीं और तब भी ममता बनर्जी ही राज्य की मुख्यमंत्री थीं.


-मई 2018 में जब पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव हुए थे, तब 26 राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्याएं हुई थीं. 


-2013 के पंचायत चुनाव में भी 31 लोगों की हत्या हुई थी.


-और 2019 के लोक सभा चुनाव से लेकर अक्टूबर 2020 तक बंगाल में 47 राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्याएं हुईं.


-ममता बनर्जी परिवर्तन के नारे के साथ पश्चिम बंगाल की सत्ता में आई थी, लेकिन NCRB के आंकड़ों के मुताबिक, बंगाल में राजनीतिक हिंसा को लेकर कोई परिवर्तन नहीं हुआ. 


-वर्ष 2006 से 2011 के बीच जब राज्य में लेफ्ट की सरकार थी, तब 124 राजनीतिक हत्याएं हुई थीं और ममता बनर्जी के शासन में 2011 के 2016 के बीच 98 राजनीतिक हत्याएं हुईं. 


-ममता बनर्जी भले आज खुद पर हुए कथित हमले को एक बड़ा मुद्दा बना रही हैं, लेकिन हकीकत कुछ और ही है.


5 साल के काम से ज्‍यादा मेडिकल रिपोर्ट की चर्चा  


इस पूरे घटनाक्रम के दौरान जो सबसे बड़ा बदलाव हुआ. वो ये कि अब पश्चिम बंगाल में ममता सरकार के 5 साल के रिपोर्ट कार्ड से ज़्यादा ममता बनर्जी की मेडिकल रिपोर्ट की चर्चा हो रही है और ये काम बहुत व्यवस्थित तरीक़े से हो रहा है.


पहले नंदीग्राम में ये घटना हुई, फिर ममता बनर्जी ने खुद पर हमले का दावा किया और मीडिया को ये जानकारी दी कि उन्हें कोलकाता के SSKM Hospital ले जाया जा रहा है. इसके बाद पत्रकार और TMC के समर्थक हॉस्पिटल के बाहर इकट्ठा हो गए. ममता बनर्जी की ऐसी तस्वीरें सामने आईं, जो लोगों के बीच उनके लिए सहानुभूति और हमदर्दी पैदा कर सकती हैं और चुनाव को यहां से मोड़ा जा सकता है. यानी से सब बहुत ही व्यवस्थित तरीक़े से हो रहा है और इसे आप ममता बनर्जी की नई रणनीति से समझ सकते हैं, जिसके तहत अब वो व्‍हील चेयर पर चुनाव प्रचार करेंगी. यानी अब वो व्‍हील चेयर पर अलग अलग विधान सभाओं में जाएंगी और उन पर हुए इस कथित हमले को एक योजनाबद्ध तरीक़े से बड़ा मुद्दा बना दिया जाएगा. 


व्‍हील चेयर पर चुनाव प्रचार


ये Sympathy Factor वैसा ही जैसे किसी बड़े कॉलेज में दाख़िले के लिए कोई छात्र पहुंचे लेकिन उसके नंबर कम हों और अपनी इसी कमी को छिपाने के लिए वो ख़ुद को घायल दिखाए और रोने लगे कि उस पर इसलिए हमला किया गया ताकि उसका कॉलेज में दाख़िला न हो सके. इस तरह इस छात्र को कॉलेज की हमदर्दी भी मिल जाएगी और वहां दाख़िला भी, जबकि इस सहानुभूति की वजह से नुक़सान उन छात्रों का होगा, जिनके परीक्षा में 90 प्रतिशत से ज़्यादा नंबर होंगे, लेकिन इसके बावजूद उन्हें कॉलेज में दाखिला नहीं मिलेगा.


यानी कम नंबरों वाले रिपोर्ट कार्ड को अगर आंसुओं में भिगो दिया जाए तो 40 प्रतिशत नंबर भी 100 प्रतिशत बन जाते हैं और पश्चिम बंगाल का चुनाव भी इसी Sympathy Factor की ओर मोड़ने की कोशिश हो रही है. 


चोट से वोट पैदा करने वाली ये राजनीति उस धागे की तरह है, जो दिखता तो कमज़ोर है लेकिन जब यही धागा उलझ जाता है तो इसे सुलझाना आसान नहीं होता और चुनाव में खेला गया Sympathy Card भी इसी तरह है. अब कोई ममता बनर्जी से उनका रिपोर्ट कार्ड नहीं मांग रहा. कोई उनसे ये नहीं पूछ रहा कि उन्होंने पिछले 10 वर्षों में बंगाल को क्या दिया. हर कोई उन पर हुए कथित हमले की चर्चा कर रहा है और इसमें कुछ लोग उनका समर्थन कर रहे हैं तो कुछ लोगों का मानना है कि ये सब राजनीति का हिस्सा है और ये कथित हमला पश्चिम बंगाल के चुनाव का टर्निंग पॉइंट भी बन सकता है.


1984 के तमिलनाडु विधान सभा चुनाव में भी कुछ ऐसा ही हुआ था


आपने पूरे दिन ममता बनर्जी की अस्पताल में खींची गई तस्वीरें सोशल मीडिया और न्‍यूज़ चैनलों पर देखी होंगी, लेकिन आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि 1984 के तमिलनाडु विधान सभा चुनाव में भी कुछ ऐसा ही हुआ था. तब स्वर्गीय नेता MGR की न्‍यूयॉर्क के एक अस्पताल में खींची गई तस्वीर काफ़ी चर्चित रही थी और इस तस्वीर को उनकी पार्टी AIADMK ने चुनाव में खूब भुनाया था. तब MGR अस्पताल से चुनाव लड़े थे और उन्हें इसमें कामयाबी भी मिली थी.


राजनीतिक करियर और चोट का पुराना रिश्‍ता


ममता बनर्जी के राजनीतिक करियर का सड़क, चोट और कैमरे से पुराना रिश्ता है. अब हम आपको उनके जीवन से जुड़ी कुछ घटनाएं बताते हैं जिनमें वो सड़क पर उतरीं. उन्हें चोट लगी और कैमरे ने उन्हें अच्छी तरह से कवर भी किया और फिर उन तस्वीरों से उनको राजनीतिक फायदा भी हुआ. 


-वर्ष 1989 में ममता बनर्जी की लड़ाई लेफ्ट फ्रंट के लोगों से हुई थी और वो इसमें काफी घायल हो गई थीं. तब भी उनकी घायल अवस्था वाली तस्वीरें सुर्खियां बनीं थीं.


-16 अगस्त 1990 में ममता बनर्जी पर हमला हुआ था जिसमें उनके माथे पर गंभीर चोट आई थी, तब ममता बनर्जी यूथ कांग्रेस में थीं. वर्ष 1993 में वो कोलकाता की राइटर्स बिल्डिंग में घुस गई थीं. तब प्रदेश में ज्योति बसु की सरकार थी और ममता यूथ कांग्रेस की नेता थीं.