नई दिल्ली: दुनिया में इस समय 112 से ज्यादा ऐसी संक्रामक बीमारियां मौजूद हैं जो वायरस, बैक्टीरिया या पैरासाइट की वजह से फैलती है और हर साल इनसे करीब 1 करोड़ 70 लाख लोगों की मौत होती है. लेकिन पिछले 200 वर्षों में इनमें से सिर्फ एक ही बीमारी को पूरी तरह से जड़ से मिटाया जा सका है और वो है स्मॉल पॉक्स. ये सफलता वर्ष 1980 में मिली थी. लेकिन इसके अलावा इंसानों को होने वाली ऐसी कोई संक्रामक बीमारी नहीं है जिसे जड़ से खत्म किया गया हो.


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हालांकि दुनिया भर के वैज्ञानिक कोशिश कर रहे हैं कि कोरोना वायरस (Coronavirus) को भी जड़ से समाप्त कर दिया जाए. लेकिन ये कैसे और कब होगा इस बारे में अब भी पुख्ता तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है क्योंकि, आम तौर पर एक वैक्सीन को तैयार करने में 5 से 10 वर्ष लग जाते हैं. लेकिन ये अकेली ऐसी वैक्सीन है जिसे 10 महीने में तैयार कर लिया गया है.


सफलता दर को लेकर बड़े-बड़े दावे
इसलिए ये जानना जरूरी है इसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे. अच्छी बात ये है कि दुनियाभर में अब कई वैक्सीन तैयार हो चुकी हैं और जल्द ही दुनिया के 750 करोड़ लोगों को वैक्सीन दिए जाने का काम बड़े पैमाने पर शुरू हो सकता है. लेकिन इन तमाम वैक्सीन की सफलता की दर को लेकर जो दावे किए गए हैं उसने लोगों को कंफ्यूज कर दिया है. जैसे बाजार में बिकने वाले स्मार्टफोन के हर मॉडल के फीचर्स अलग अलग होते हैं, किसी का प्रोसेसर तेज़ होता है तो किसी की RAM ज्यादा होती है. उसी प्रकार इन सभी वैक्सीन के फीचर्स अलग अलग हैं. लेकिन फिलहाल सबसे ज्यादा बहस इनकी सफलता की दर को लेकर हो रही है.


ये दर गिरकर 50 प्रतिशत तक भी जा सकती है
फाइजर का दावा है कि उसकी वैक्सीन 95 प्रतिशत तक प्रभावशाली है. Moderna 94.5 प्रतिशत. रूस की स्पूतनिक 95 प्रतिशत, ऑक्सफोर्ड और Astra-zeneca की वैक्सीन 90 प्रतिशत और भारत में बन रही Covaxin के 60 प्रतिशत तक सफल होने का लगाया गया है. लेकिन ये सारे नतीजे तीसरे चरण के ट्रायल से निकले हैं और ये एक नियंत्रित माहौल में हासिल किए गए नतीजे हैं. लेकिन जब ये वैक्सीन आम लोगों को उपलब्ध होंगी तो इनकी सफलता दर गिरकर 50 प्रतिशत तक भी जा सकती है


ट्रायल में 95% लेकिन असल जीवन में Vaccine कितने लोगों को ठीक करेगी?
ऐसा इसलिए है क्योंकि ट्रायल के दौरान लोगों को दो समूहों में बांटा जाता है और इनमें से आधों को वैक्सीन दी जाती है और आधे लोगों को कोई वैक्सीन नहीं दी जाती. फाइजर के ट्रायल में 43 हज़ार लोग शामिल थे, इनमें से 170 लोगों को कोराना का संक्रमण हुआ. लेकिन इनमें से भी 162 लोगों को कोई वैक्सीन नहीं दी गई थी, जबकि 8 लोगों को वैक्सीन लगी थी. इस आधार पर इस वैक्सीन के 95 प्रतिशत तक सफल होने की बात कही गई है. लेकिन ये इस वैक्सीन की Efficacy है, Effectiveness नहीं है. Efficacy का अर्थ है ट्रायल के दौरान इस वैक्सीन में 95 प्रतिशत लोगों को ठीक करने की क्षमता पाई गई है. लेकिन असल जीवन में ये जितने लोगों को ठीक करेगी, उससे इसकी Effectiveness आंकी जाएगी.



आम तौर पर ट्रायल में जो लोग शामिल होते हैं वो स्वस्थ होते हैं यानी उन्हें पहले से कोई बीमारी नहीं होती. लेकिन जब ये वैक्सीन दुनिया के करोड़ों लोगों को दी जाएगी, तो इसके असली असर के बारे में पता चलेगा. The Lancet Medical Journal के मुताबिक दुनिया के 95 प्रतिशत लोगों को पहले से कोई न कोई बीमारी है. इसलिए जब दुनियाभर के लोगों को ये वैक्सीन दी जाएगी तब जाकर ये पता चल पाएगा कि ये वैक्सीन अलग-अलग लोगों पर और अलग-अलग परिस्थितियों में कितने प्रतिशत कारगर हैं.


Vaccine लोगों को मिलेगी कैसे?
अब एक पल के लिए आप ये मान लीजिए आम लोगों के बीच भी ये सारी वैक्सीन बहुत हद तक सफल रहती है. लेकिन सवाल ये है कि ये Vaccine लोगों को मिलेगी कैसे और इसके लिए आपको कितने रुपये खर्च करने होंगे?


Oxford Astrazenca ने कहा है कि उसकी वैक्सीन की 300 करोड़ डोज वर्ष 2021 तक तैयार हो जाएगी और पूरी दुनिया में ये एक ही कीमत पर मिलेगी जो करीब 222 रुपये के बराबर होगी.


फाइजर की वैक्सीन की एक डोज करीब 1400 रुपये में उपलब्ध हो सकती है. मॉडर्ना की वैक्सीन सबसे ज्यादा महंगी होगी जिसकी कीमत 4 हजार रुपये प्रति डोज हो सकती है जबकि भारत में बन रही कोवैक्सीन के लिए ये क़ीमत सिर्फ़ 100 रुपये तक हो सकती है. रूस की Sputnik V की एक डोज 740 रुपये में मिलेगी.


दुनियाभर के देशों ने इन अलग अलग Vaccines को खरीदने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. अमेरिका ने सबसे ज्यादा संख्या में वैक्सीन्स के लिए ऑर्डर दिए हैं, दूसरे नंबर पर यूरोप के देश हैं और तीसरे नंबर पर भारत है. लेकिन फिर भी सभी देश अगले एक वर्ष में सिर्फ 20 से 25 प्रतिशत लोगों को ही वैक्सीन दे पाएंगे.


पहले चरण में ये Vaccines स्वास्थ्य कर्मियों को मिलेगी, दूसरे चरण में सोशल वर्कर्स को, तीसरे चरण में 65 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों और चौथे चरण में आम जनता को ये वैक्सीन दी जाएगी.


आम तौर पर वैक्सीन्स को 2 से 8 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर स्टोर रखने की जरूरत होती है, अमीर देशों के लिए ये काम मुश्किल नहीं है. लेकिन जिन गरीब और विकासशील देशों में संसाधनों की कमी है और बिजली की उपलब्धता एक बड़ी समस्या है वहां इन्हें स्टोर करके रखना मुश्किल काम हो सकता है.


भारत पूरी दुनिया के लिए वैक्सीन्स बनाता है इसलिए हो सकता है कि भारत के लोगों को ये वैक्सीन मिलने में इतनी समस्या न आए. भारत में हर साल करीब 300 करोड़ वैक्सीन बनाई जाती है. इनमें से 100 करोड़ वैक्सीन्स का निर्यात किया जाता है.


अब आप ये समझिए कि दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक वैक्सीन्स की सप्लाई कैसे की जाएगी? इसके लिए Airplanes यानी हवाई जहाज का सहारा लिया जाएगा. एक अनुमान के मुताबिक इस काम के लिए 8 हज़ार जम्बो जेट्स की जरूरत पड़ेगी. वैक्सीन लेकर ये हवाई जहाज़ अलग अलग देशों में उतरेंगे, फिर वहां से एक ​रेफ्रिजरेटेड वाहन से कोल्ड रूम तक लाया जाएगा. फिर इन्हें आइस बॉक्स में डालकर स्थानीय स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंचाया जाएगा. इन केंद्रों में वैक्सीन को 2 से 8 डिग्री सेल्सियस तापमान के बीच स्टोर किया जाएगा. फिर इन्हें छोटे आइस बॉक्सेज में रखकर वैक्सीनेशन कैम्पों तक लेकर जाया जाएगा.


वैक्सीन सही समय पर सही जगह पहुंचे. इसके लिए के बक्सों पर GPS ट्रैकर्स भी लगाए जाएंगे.


Vaccine लगने के बाद लोगों में कोविड-19 जैसे लक्षण
किसी को वैक्सीन तब नहीं लगाई जाती जब उसे संक्रमण हो जाता है, वैक्सीन इसलिए लगाई जाती है, ताकि संक्रमण न हो. अब क्योंकि ज्यादातर Vaccines के निर्माण में या तो इसी बीमारी के कमज़ोर हो चुके वायरस का इस्तेमाल किया जाता है या फिर मरे हुए वायरस से वैक्सीन बनाई जाती है.


इसलिए ये Vaccine लगने के बाद लोगों में कोविड-19 जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं. जैसे तेज़ बुखार आना, मांसपेशियों में दर्द, ध्यान में कमी, और सिर दर्द की शिकायत हो सकती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता इस वायरस को पहचानकर उससे लड़ने लगती है और यहीं से वायरस के खिलाफ इम्युनिटी तैयार होती है. इसके बाद वैक्सीन्स की दूसरी डोज लोगों को दी जाएगी लेकिन इसके दुष्प्रभाव पहले से कम होंगे. लेकिन हो सकता है कि वैक्सीनेशन के बाद आपको अपने काम से कुछ दिनों की छुट्टी लेनी पड़े.


संक्रमण के खिलाफ अक्सर चार तरह की वैक्सीन्स काम करती हैं. पहली होती हैं Genetic Vaccine. इसमें वायरस के ही जीन होते हैं जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को सक्रिय करते हैं.


दूसरी होती हैं Viral Vector Vaccines, ये vaccines शरीर की कोशिकाओं यानी Cells में प्रवेश करती हैं और कोशिकाएं वायरस से लड़ने वाले प्रोटीन का निर्माण शुरू कर देती हैं.


फिर आती हैं Protein-Based Vaccines इनमें कोरोना वायरस के प्रोटीन होते हैं.


चौथी हैं Inactivated Vaccines जो कमज़ोर या निष्क्रिय हो चुके वायरस से तैयार की जाती हैं.


किसी भी बड़ी बीमारी की वैक्सीन के रिसर्च, ट्रायल और लोगों तक पहुंचने में 10 वर्ष तक का समय लग सकता है.


उदाहरण के लिए पोलियो की वैक्सीन तैयार होने में 47 वर्ष का समय लगा. चिकन पॉक्स के ख़िलाफ़ वैक्सीन बनाने में 42 वर्ष और इबोला की वैक्सीन तैयार करने में 43 वर्ष लग गए थे. HEPATITIS B की वैक्सीन तैयार होने में 13 वर्ष का समय लगा और इसमें सबसे बड़ा उदाहरण है- HIV AIDS. जिसके संक्रमण का पहला मामला वर्ष 1959 में आया था. लेकिन आज 61 वर्ष बीत जाने के बाद भी इसका इलाज नहीं ढूंढा जा सका है.


कोरोना महामारी से निपटने के लिए पीएम मोदी का एक्शन प्लान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना महामारी से निपटने और वैक्सीन की तैयारी पर अलग अलग राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की. इस बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने कुछ जरूरी बातों का जिक्र किया. जिन्हें आप सभी को जानना चाहिए. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा-


- हर देशवासी का जीवन बचाना इस समय सरकार की प्राथमिकता है.
-Corona Vaccine सभी तक पहुंचे ये उनका Commitment है.
- देश में Corona Vaccine के रिसर्च का काम आखिरी दौर में है.
- वैक्सीन कब आएगी और कितने डोज दिए जाएंगे, ये वैज्ञानिक बताएंगे.
- वैक्सीन प्राथमिकता के आधार पर लोगों को दी जाएगी.
-वैक्सीन के रखरखाव और डिस्ट्रिब्यूशन  पर राज्य सरकारें अपनी तैयारी तेज़ करें.


प्रधानमंत्री ने ये भी कहा कि  वैक्सीनेशन कार्यक्रम लंबे समय तक चलने वाला है, इसलिए राज्य, जिला और ब्लॉक स्तर तक टास्क फोर्स बनाने की जरूरत है. नरेंद्र मोदी की मुख्यमंत्रियों के साथ हुई बैठक का संदेश साफ है कि सरकार Corona Vaccine को लेकर किसी भी तरह की जल्दबाजी नहीं करना चाहती है.