नई दिल्ली: आजकल बॉलीवुड (Bollywood) में थाली पर जंग छिड़ी हुई है. लेकिन जनता की थाली में भोजन देने वाले किसान (Farmers) को सब भूल चुके हैं. बॉलीवुड का किसानों से पुराना नाता रहा है. बड़े-बड़े फिल्म अभिनेताओं ने किसानों की भूमिका निभाकर देश की जनता की खूब तालियां बटोरी हैं और मुंबई में अपने आलीशान बंगले खड़े किए हैं. लेकिन अन्नदाता का हाल वैसा का वैसा है. क्योंकि ये कैमरे के सामने एक्टिंग नहीं करते. कई फिल्मों में किसानों के मुद्दे को बहुत प्रभावी तरीके से दिखाया गया है.


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वर्ष 1953 में किसानों की समस्या पर 'दो बीघा ज़मीन' नामक एक फिल्म बनी थी. इसमें साहूकार के कर्ज से परेशान किसानों की हालत को दिखाया गया था.


इसके बाद वर्ष 1957 में किसानों के हालात पर अपने जमाने की सबसे महत्वपूर्ण फिल्म आई थी. इस फिल्म का नाम था मदर इंडिया. हमारे देश में किसान और उसका पूरा परिवार ब्याज, गरीबी और मेहनत के कभी ना ख़त्म होने वाले चक्रव्यूह में फंसा रहता है. इस फिल्म ने किसानों की इसी मजबूरी को चित्रित किया.


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फिल्मों में अब नहीं दिखता किसानों का मुद्दा
वर्ष 1967 में अभिनेता मनोज कुमार की फिल्म उपकार में भी किसानों की दुर्दशा दिखाई गई. इस फिल्म का नायक किसान है और वो हमेशा गरीबी से ही जूझता रहता है.


वर्ष 2001 में आजादी से पहले किसानों से लगान वसूलने की समस्या पर बनी एक फिल्म आई थी. इस फिल्म का नाम लगान था. लोगों ने इस फिल्म को बहुत पसंद किया और फिल्म को ऑस्कर नॉमिनेशन भी मिला था.


पुराने जमाने में किसानों के मुद्दे और गांवों में साहूकार जैसी समस्याएं भारतीयों फिल्मों की पटकथाओं का हिस्सा रही थीं. लेकिन बदलते वक्त के साथ अब ये परंपरा बंद हो चुकी है. इसलिए किसानों का मुद्दा खबरों के साथ-साथ फिल्मों से भी गायब होता जा रहा है.


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