नई दिल्ली: जिन नेताओं ने हाथरस की घटना के बाद 24 घंटे का भी इंतजार नहीं किया था और राजनैतिक पर्यटन के लिए रातों रात हाथरस पहुंच गए थे वो सभी नेता निकिता तोमर (Nikita Tomar) की हत्या के दो दिन बीत जाने के बाद भी उनके घर नहीं पहुंचें हैं, जबकि ये सारे नेता निकिता के घर से सिर्फ 30 से 40 किलोमीटर की दूरी पर रहते हैं. आज हम आपको निकिता हत्याकांड (Nikita Murder Case) पर इन नेताओं की उदासीनता की वजह बताएंगे और ये भी बताएंगे कि हाथरस (Hathras) और बल्लभगढ़ (Ballabgarh) में क्या फर्क है?


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

हाथरस पहुंचने के लिए इन नेताओं ने पुलिस के सारे बंदोबस्त तोड़ दिए थे और बिना देर किए आरोपियों और पीड़ित की जाति ढूंढ ली थी और इसी आधार पर अपनी राजनीति की दुकानें सजा ली थी. लेकिन क्योंकि निकिता की हत्या के आरोपी एक विशेष धर्म से हैं इसलिए ये सारे नेता मौन हैं. कांग्रेस (Congress) अध्यक्ष सोनिया गांधी इस हत्याकांड पर खामोश हैं, राहुल गांधी खामोश हैं, हाथरस में पीड़ित के परिवार को गले लगाने वाली प्रियंका गांधी वाड्रा भी चुप हैं. अरविंद केजरीवाल की पार्टी, लेफ्ट पार्टियां, दलित चिंतक, अर्बन नक्सल, टुकड़े टुकड़े गैंग, सबके सब इस हत्याकांड पर पूरी तरह खामोश हैं और आज हम इन्हीं लोगों की खामोशी पर सवाल उठाएंगे. इसके साथ ही हम आपको ये भी बताएंगे कि निकिता की हत्या करने वाले तौसीफ की हिम्मत इतनी कैसे बढ़ गई.


क्या तौसीफ से डरकर निकिता के परिवार ने सबसे बड़ी गलती की?
तौसीफ एक बड़े राजनैतिक खानदान से आता है और इसीलिए उसे ये गलतफहमी हो गई थी कि कोई उसका क्या बिगाड़ लेगा. इसलिए आज हम तौसीफ के सियासी खानदान को डिकोड करेंगे और ये समझने की कोशिश करेंगे कि क्या तौसीफ से डरकर निकिता के परिवार ने सबसे बड़ी गलती की थी?


भारत में महिलाओं की आबादी करीब 65 करोड़ है और इनमें से 42 करोड़ महिलाएं 35 वर्ष से कम उम्र की हैं. ये 42 करोड़ महिलाएं जब अपने घरों से बाहर निकलती हैं तो इनके मां बाप को यही डर सताता रहता है कि कहीं उनकी बेटी के साथ कोई अनहोनी न हो जाए, कोई मनचला उनकी बेटी को परेशान न करे, वैचारिक रूप से कट्टर हो चुका कोई युवक उनकी बेटी को अगवा न कर ले या फिर जबरदस्ती उनकी बेटी से शादी न कर ले. भारत के करोड़ों मां बाप हर रोज इसी डर के साए में अपनी बेटियों के सही सलामत घर वापस आने का इंतजार करते हैं. लेकिन फिर भी हर दिन भारत की कोई न कोई बेटी किसी न किसी तौसीफ का शिकार हो जाती है और अपनी बेटी के घर वापस आने का इंतजार कर रहे मां बाप फिर कभी अपनी बेटी का चेहरा नहीं देख पाते.


भारत में ज्यादातर महिलाएं इसी डर के साथ बड़ी होती हैं और इसी डर के साथ उन्हें अपना पूरा जीवन बिताना पड़ता है. निकिता और उसके माता पिता के साथ भी ऐसा ही हुआ था. निकिता का परिवार भी तौसीफ और उसके परिवार के राजनीतिक रसूख से डर गया था और शायद यही डर निकिता के परिवार की सबसे बड़ी गलती बन गया था. दो दिन पहले तौसीफ ने कॉलेज के बाहर ही गोली मारकर निकिता की हत्या कर दी और मौके से फरार हो गया. वारदात में शामिल तौसीफ और उसके दोस्त रेहान को गिरफ्तार तो कर लिया गया है. लेकिन निकिता का परिवार हमेशा के लिए टूट गया है. जो निकिता कभी IAS बनने का सपना देखा करती थी वो आज इस दुनिया में नहीं है.


इस हत्याकांड की शुरुआती जांच में सामने आया है कि तौसीफ पिछले काफी समय से निकिता को परेशान कर रहा था. उसकी हिम्मत इसलिए इतनी बढ़ गई थी क्योंकि वह एक बहुत बड़े राजनैतिक खानदान से आता है और अपने खानदान की वजह से ही उसे शायद ये गलतफहमी हो गई थी कि कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता और इसी गलतफहमी का शिकार होकर उसने दो दिन पहले निकिता की जान ले ली. आज हम आपको तौसीफ की खानदानी राजनैतिक फैमिली ट्री के बारे में भी बताएंगे और ये भी जानेंगे कि उसके खानदान का उस मेवात से क्या संबंध है, जो पिछले कुछ वर्षों में भारत में अपराध और कट्टर इस्लाम के सबसे बड़े केंद्र के रूप में उभरा है. 



जिन गलियों में निकिता तोमर ने अपना बचपन बिताया, उन गलियों में आज निकिता की मौत के बाद गम और गुस्से का माहौल है. जो पड़ोसी निकिता की सफलताओं पर गर्व किया करते थे वो आज उसे न्याय दिलाने की मुहिम में जुटे हैं. निकिता बी.कॉम ऑनर्स के आखिरी वर्ष की छात्रा थी और 26 अक्टूबर वो अपने घर से इस भरोसे के साथ निकली थी कि ये परीक्षा पास करके वो IAS की तैयारी में जुट जाएगी.


घर से अग्रवाल कॉलेज के तक के इस आठ किलोमीटर के सफर के दौरान भाई, बहन और मां के बीच न जाने भविष्य के सपनों को लेकर कितनी बातें हुई होंगी. परीक्षा निकिता को देनी थी, लेकिन परेशान मां और भाई थे, बेटी की परीक्षा अच्छी जाए, मन में यही प्रार्थना करते हुए निकिता की मां और भाई कॉलेज के पास ही उसके लौटने का इंतजार करने लगे. लेकिन उन्हें इस बात का जरा सा भी अंदाज़ा नहीं था कि तौसीफ, निकिता की जान लेने के इरादे से कॉलेज के गेट तक पहुंच चुका है.


सवाल पुलिस की भूमिका पर भी उठ रहे
सवाल पुलिस की भूमिका पर भी उठ रहे हैं क्योंकि, परीक्षाओं के दौरान पुलिस की जिस गाड़ी को अग्रवाल कॉलेज के बाहर होना चाहिए था वो हत्याकांड के समय वहां नहीं थी, पुलिस वहां होती तो शायद तौसीफ निकिता को मारने की हिम्मत नहीं कर पाता. पुलिस की लापरवाही की बात अग्रवाल कॉलेज के प्रिंसिपल भी मानते हैं.


आरोप है कि तौसीफ न सिर्फ निकिता के साथ जबरदस्ती शादी करना चाहता था, बल्कि उस पर अपना धर्म बदलने के लिए भी दबाव डाला जा रहा था. इस बात की तस्दीक खुद निकिता के साथ बी कॉम ऑनर्स के थर्ड ईयर में पढ़ने वाले उसके दोस्तों ने की है.


जबरन शादी और निकिता का धर्म परिवर्तन कराने की जिद
निकिता के साथ पढ़ने वाले कह रहे हैं कि तौसीफ निकिता को पिछले ढाई महीनों से बहुत ज्यादा परेशान करने लगा था और इसका असर निकिता के मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ने लगा था. लेकिन हमारी पड़ताल में ये पता चला है कि तौसीफ, निकिता को ढाई महीनों से नहीं, बल्कि कई वर्षों से परेशान कर रहा था और इसकी शुरुआत होती है, फरीदाबाद के रावल इंटरनेशनल स्कूल से. निकिता ने इस स्कूल से 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई की थी और तौसीफ भी इसी स्कूल में पढ़ा करता था. यहीं से तौसीफ, निकिता से एकतरफा प्यार करने लगा और आरोपों के मुताबिक ये एकतरफा प्यार, जबरन शादी और निकिता का धर्म परिवर्तन कराने की जिद में बदल गया.


इस हत्याकांड ने सिर्फ फरीदाबाद नहीं, बल्कि पूरे देश की आत्मा को झकझोर दिया है. हर शहर, हर मोहल्ले,हर गांव और हर घर में रहने वाली निकिता जैसी करोड़ों बेटियां आज डरी हुई हैं सहमी हुई हैं क्योंकि, उन्हें नहीं पता कि कब कौन सा तौसीफ उनके तमाम सपनों को अपनी जिद की आग में जला देगा. ये सवाल बहुत संजीदा है और पूरे देश को आज इस सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए.


तौसीफ पर सिर्फ निकिता की हत्या का आरोप नहीं है, बल्कि निकिता के परिवार का ये भी कहना है कि तौसीफ उनकी बेटी के साथ जबरदस्ती शादी करके उसका धर्म परिवर्तन कराना चाहता था. कल हमने DNA में निकिता के पिता और भाई से बात की थी. उन्होंने भी जबरन धर्म परिवर्तन का मुद्दा उठाया था और कहा था कि वो तौसीफ और उसके खानदान से डर गए थे और वो फरीदाबाद छोड़कर चले जाना चाहते थे.


तौसीफ अहमद की फैमिली ट्री
जिस तौसीफ पर निकिता तोमर की हत्या का आरोप है वो एक बहुत बड़े सियासी खानदान से आता है और उसका संबंध एक विशेष धर्म से है. शायद इस मामले पर विपक्ष के नेताओं की चुप्पी की सबसे बड़ी वजह भी यही है. इसलिए आज तौसीफ के खानदान को डिकोड करेंगे. आप ये भी समझिए जिन नेताओं ने हाथरस में पहुंचने में जरा सी भी देर नहीं लगाई थी वो सभी नेता अपने बड़े बड़े बंगलों में आज मौन क्यों बैठे हैं. निकिता का घर दिल्ली में इन नेताओं के बड़े बड़े बंगलों से सिर्फ 30 से 40 किलोमीटर दूर है. लेकिन इन नेताओं ने अभी तक निकिता के घर जाने की जरूरत नहीं समझी. हाथरस की घटना के बाद ये तमाम नेता कैसे पुलिस के सारे बंदोबस्त तोड़ते हुए और लाठियां खाते हुए हाथरस पहुंचे थे. 


अब ये समझिए कि हम बार बार तौसीफ के सियासी खानदान का जिक्र क्यों कर रहे हैं?


तौसीफ के दादा का नाम है चौधरी कबीर अहमद जो वर्ष 1975 में हरियाणा के नूंह से कांग्रेस के विधायक थे और वर्ष 1982 में उन्होंने कांग्रेस की टिकट पर हरियाणा की तावडू विधानसभा सीट से भी चुनाव जीता था. चौधरी कबीर अहमद के 6 बेटे हैं जिनके नाम हैं चौधरी खुर्शीद अहमद, इकबाल , जाकिर हुसैन, जावेद, फारुक और गांधी हैं. निकिता की हत्या का आरोपी तौसीफ, जाकिर हुसैन का बेटा और कबीर अहमद का पोता है.


चौधरी कबीर अहमद के बेटे और तौसीफ के चाचा, चौधरी खुर्शीद अहमद भी कांग्रेस के बड़े नेता रहे हैं. खुर्शीद अहमद वर्ष 1962 में संयुक्त पंजाब में कांग्रेस की टिकट पर पहली बार विधायक बने थे. इसके बाद उन्होंने कई बार चुनाव जीता और वो हरियाणा की कांग्रेस सरकार में तीन बार मंत्री भी रह चुके हैं. खुर्शीद अहमद,  वर्ष 1988 में सांसद भी बने थे, खुर्शीद अहमद की मृत्यु इसी साल फरवरी में हुई थी. खुर्शीद अहमद के बेटे का नाम है, चौधरी आफताब अहमद है जो तौसीफ के चचेरे भाई हैं. आफताब अहमद अभी नूह से ही कांग्रेस के विधायक हैं. आफताब अहमद ने अपनी वेबसाइट पर खुद इस बात की जानकारी दी है कि उनके पिता खुर्शीद अहमद गांधी परिवार खासकर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बहुत करीबी रहे हैं. आफताब अहमद खुद भी गांधी परिवार के करीबी हैं और उनके सोशल मीडिया अकाउंट्स पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ उनकी तस्वीरें इस बात का प्रमाण भी हैं.


तौसीफ के चाचा, जावेद अहमद भी राजनीति में सक्रिय हैं और उन्होंने पिछले वर्ष हरियाणा के विधान सभा चुनावों में सोहना सीट से बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ा था. हालांकि वो हार गए थे. तौसीफ के एक और चाचा इकबाल के पुत्र अमन अहमद जन नायक जनता पार्टी के नेता हैं.


इतना ही नहीं, तौसीफ की बहन की शादी हरियाणा पुलिस में डीएसपी के पद पर तैनात शाकिर हुसैन के बेटे तारिक हुसैन से इसी वर्ष हुई थी. शाकिर हुसैन फरीदाबाद में एसीपी भी रह चुके हैं. फरवरी 2019 में ही शाकिर हुसैन का तबादला हरियाणा की रेलवे पुलिस में हुआ था.


निकिता की हत्या के आरोपी तौसीफ के सियासी खानदान का ये सच देखकर आपको भी कांग्रेस के बड़े नेताओं की चुप्पी का राज समझ में आ गया होगा. तौसीफ के चाचा जावेद अहमद ने लव जेहाद के आरोपों पर Zee News से बात की है.


क्या दुनिया का कोई भी धर्म जबरन धर्म परिवर्तन की इजाजत देता है?
यहां हम इस पर भी बात करेंगे कि क्या दुनिया का कोई भी धर्म जबरन धर्म परिवर्तन की इजाजत देता है और कुरान में इस विषय पर क्या लिखा है? तौसीफ पर सिर्फ निकिता की हत्या का ही आरोप नहीं है, बल्कि उस पर ये भी आरोप है कि वो निकिता से जबरदस्ती शादी करके उसका धर्म परिवर्तन कराना चाहता था. लेकिन आज देशभर के मुसलमानों और बल्कि सभी धर्मों के लोगों को ये समझना चाहिए कि क्या इस्लाम, धर्म परिवर्तन की इजाजत देता है?


कुरान मुसलमानों का सबसे पवित्र धर्म ग्रंथ है. जिसमें धर्म परिवर्तन के विषय पर कई बातें लिखी हैं. लेकिन इसमें जो सबसे महत्वपूर्ण बात कही गई है वो आज मैं आपको बताना चाहता हूं. कुरान में लिखा है कि धर्म में जबरदस्ती की कोई गुंजाइश नहीं है. कुरान में कहा गया है कि किसी के साथ किसी भी प्रकार की जबरदस्ती इस्लाम में पूरी तरह से प्रतिबंधित है. चाहे ये जबरदस्ती शादी के नाम पर कि जाए या फिर प्यार के नाम पर.


इस बारे में आज हमने इस्लाम के एक जानकार से भी बात की और उन्होंने भी साफ किया कि इस्लाम किसी का भी जबरन धर्म परिवर्तन कराने की इजाजत नहीं देता.